कालसर्प दोष:
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कालसर्प दोष:

According to Vedic astrology, neither of the Parashar Rishi has given importance to this in their astrological books. According to other scholars, when all the planets come between Rahu and Ketu in the horoscope, then Kalsarp dosha is formed.

कालसर्प योग- वैदिक ज्योतिष के अनुसार हमारी कुंडली में बहुत से शुभ-अशुभ योग और दोष पाये जाते हैं जिसें ग्रहों के योग से ही जाना जा सकता हैं। यहां हम कालसर्प योग के बारे मे बात करतें हैं कि हमारी कुंडली में यह योग कैसे बनता हैं और इसके परिणाम क्या आते हैं। वैदिक ज्योतिषी महाऋषि पराशरजी और हमारे श्रद्देय गुरु जी श्री के. एन. रावजी ने इस कालसर्प के बारे मे चर्चा नही की हैं ना ही पुराने शास्त्रों मे इसका कही जिक्र किया गया हैं। परन्तु हमारें महानुभव इसको मानते हैं, जिससे अकसर व्यक्ति कालसर्प का नाम सुनते ही डर जाता हैं लेकिन यह बहुत बड़ी घटना नहीं हैं क्योंकि 70 प्रतिशत लोगों की कुंडली में यह योग बनता हैं। इस योग के बारे में आजकल के ज्योतिष ही बताते हैं और इससे लोगो को बहुत डराते भी हैं कि इसी के अनुसार इस दोष की वज़ह से जातक को उसकी जिंदगी में बहुत संघर्ष करना पड़ता हैं और जातक के जीवन में असफलताएं, बीमारियां और तनाव बढ़ जाता हैं।

राहू का अधिदेवता काल हैं तथा केतु का अधिदेवता सर्प हैं इन दोनो के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हो तो कालसर्प योग बनता हैं। राहू-केतु हमेशा वक्री होते हैं और सूर्य-चंद्र मार्गी गमन करते हैं। जब राहू केतु के बीच यानि एक तरफ सभी ग्रह आ जाते हैं तो इस योग का निर्माण होता हैं। कहते हैं कि सभी ग्रह राहू केतु के आगोश में आने से अपने फलों को निष्फल कर देते हैं जिससे सभी कार्य में बाधाएं, रुकावटे, विवाह मे देरी, नौकरी मे असफलता और धन से जुड़ी परेशानियां आती हैं। राहु को सर्प का मुख और केतु को सर्प की पूंछ कहा गया हैं, अगर सभी ग्रह मुख से पूंछ के अंदर आ जाये तो ग्रहों में सर्प के विष की वज़ह से फलों में निष्फलता आती हैं और सभी कार्यों में संघर्ष ही संघर्ष रह जाता हैं। जातक को सभी कार्य के फलों में देरी से फल मिलता हैं, जिससे उसके साथी और समान उम्र के व्यक्ति आगे निकल जाते हैं और ऐसे लोग पीछे ही रह जाते हैं जिससे ऐसे लोग अपनी किस्मत को ही दोष देते रह जाते हैं।           अपनें जीवन की समस्यायों के बारें में जाननें के लिए सम्पर्क करें।

वैदिक ज्योतिष अनुसार कुंडली में बारह भावों की तरह के कालसर्प योग होते हैं, जिससे इस योग के होने से जातक को राहु-केतु की दशा में अधिक कष्ट मिलता हैं। इस योग के कारण जातक अचानक असाधारण तरक्की भी करता हैं। जिसका उदाहरण सचिन तेंदुलकर और जवाहर लाल हैं क्योंकि उनकी कुंडली में यह योग हैं। यह योग एक दम पतन भी देता हैं, जिससे इस योग की वज़ह से जातक को समय के साथ सफलता नहीं मिलती और उसके साथ के साथी उससे आगे बढ़ जाते हैं और वह उनकी तरक्की के मुकाबले खुद कम उंचाईयों पर पहुंच पाते हैं। आईये हम बात करते हैं इस कालसर्प योग के क्या नाम हैं और जातक को ये कैसे फल देते हैं।                 

अन्नंत कालसर्पयोग- इस योग में लग्न में राहु हो और सप्तम भाव मे केतु हो और सभी ग्रह इन दोनो के एक तरफ हो यानि सभी ग्रह लग्न से सप्तम भाव में ही हो इस तरह इन दोनों के मध्य फंसे ग्रहों के कारण अनंत कालसर्पयोग बनता हैं। ऐसे जातक को व्यक्तित्व निर्माण के लिए व आगे बढ़ने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता हैं। इसका प्रभाव इनके गृहस्थ जीवन पर भी पड़ता हैं तथा इनका वैवाहाहिक जीवन कष्टमय होता हैं। ऐसा मनुष्य अपने कुटुम्बियों से नुकसान पाता हैं। मानसिक परेशानियां उसका पीछा नहीं छोड़ती और वह एक के बाद एक अनंत मुसीबतों में उलझा रहता हैं। उसकी जिंदगी में अपने व्यक्तित्व निर्माण हेतु निरन्तर संघर्ष ही बना रहता हैं। ऐसा व्यक्ति कई प्रकार के काम करके छोड़ देता हैं पर उसको सफलता नहीं मिलती हैं। जातक की किसी भी काम में स्थाई रुप से रूचि नहीं रहती हैं जिससे उसके जीवन में भटकाव बना रहता हैं। ऐसे मे जातक का जीवन संघर्षमय होता हैं और उसे अपने ही परिश्रम का समय से लाभ नहीं मिलता हैं।

कुलिक कालसर्पयोग- जब कुंडली में द्वितीय भाव से अष्टम भाव में राहु केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाये तो यह स्थिति कुलिक कालसर्पयोग बनाती हैं। इस योग के कारण धन और परिवार को लेकर जातक के जीवन में संघर्ष बना रहता हैं। उसको अपयश परेशानियां तथा खर्चों की बाहुलायता बनी रहती हैं। उसके पास पैसा नही टिकता हैं और स्वास्थय में नर्मी-गर्मी बनी रहती हैं। यह योग दूसरे योगों से ज्यादा पीड़ादायक हैं। इसमें जातक का दिमाग गर्म रहता हैं और वह निरन्तर परशानियों के कारण चिड़चिड़ा हो जाता हैं। उसके धन प्राप्ति हेतु किए गए सभी प्रयासों में उसको सफलता नहीं मिलती। वह व्यक्ति कुलीन होते हुए भी धन के मामलो में संघर्षशील रहता हैं। उसकी वाणी प्राय: अप्रिय, झुठी व दूषित होती हैं और वह किसी न किसी प्रकार के नशे में लत रहता हैं। उसके दांतों के दर्द की संभावना भी बनी रहती हैं और जीवन में मानसिक तनाव बना रहता हैं।

वासुकी कालसर्पयोग- जब किसी कुंडली में तृतीय से नवम भाव में राहु-केतु के मध्य आने वाले सभी ग्रह की स्थिति के कारण वासुकी नामक कालसर्पयोग बनता हैं। इस योग के कारण जातक को कुटुंब में भाई-बहनों की ओर से परेशानी बनी रहती हैं और उसको अपने मित्रो से धोखा मिलता हैं। उसकी नौकरी-व्यवसाय में उलझने बनी रहती हैं जिससे वह अपने कार्य में ही मन नही लगा पाता हैं। उसको अपने ही भाग्य का पूर्ण सुख नहीं मिलता हैं। वह धन कमाता हैं तो साथ में बदनामी भी मिलती हैं। उसे अपनें आत्मीय परिज़नों के कारण कोई न कोई मुसीबत एवं मानसिक तनाव बना रहता हैं। उसे अपने जीवन में किसी काम में यश नहीं मिलता और वह अपने नाम के लिए बहुत मेहनत करता हैं। उसकी किसी भी कार्य मे किसी के साथ भागीदारी ज्यादा नहीं चल पाती। उसे अपनी जिन्दगी में यश, पद-प्रतिष्ठा व पराक्रम के लिए बहुत संघर्ष करना पडता हैं। उसे समय से अपने परिश्रम का फल नहीं मिलता, जिससे उसकी मेहनत व्यर्थ जाती हैं।                 अपनी वर्षफल की जानकारी के लिए यहां सम्पर्क करें-

शंखपाल कालसर्पयोग- जब किसी कुंडली में चतुर्थ भाव से लेकर दशम भाव में राहु-केतु के मध्य सभी ग्रह कैद हो तो इस स्थिति के कारण शंखपाल नामक कालसर्पयोग बनता हैं। इस योग के कारण जातक के सुख में बाधा, अपनी माता से दूरी, वाहन के सुख में कमी और नौकर-चाकर को लेकर परेशानी बनी रहती हैं। जातक को पिता या पति की ओर से कष्ट, विद्याध्ययन में रुकावट और व्यापार-व्यवसाय में नुकसान की संभावना बनी रहती हैं। उसके साथ अपने ही विशवसनीय लोग जिस पर वह सबसे ज्यादा भरोसा करता हैं, वही उसके साथ विश्वासघात करते हैं। उसके दिमाग में परेशानी एवं तनाव की स्थिति बनी रहती हैं। वह चाहे कितना ही प्रयत्न कर ले पर सुख की प्राप्ति में निरन्तर बाधा व संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी। उसे वाहन भी सावधानी से चलाना चाहिए नही तो वाहन से दुर्घटना का भी ड़र बना रहता हैं।

पदम कालसर्पयोग- जब किसी कुंडली मे पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु हो और पंचम भाव से लेकर एकादश भाव में राहु-केतु के मध्य सभी ग्रहों की स्थिति बन जाये तो इसी कारण पदम नामक कालसर्पयोग बनता हैं। ऐसे जातक के विद्याध्ययन में रुकावट आती हैं। उसको पुत्र संतान में रुकावट आती हैं या पुत्र संतान उसके लिए चिंता का विषय बन जाता हैं। सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता दलीप कुमार की कुंडली में भी यही योग हैं। जातक के गुप्त शत्रु बने रहते हैं, वह परिवार में अपयश पाता हैं और जीवन साथी के साथ विश्वासघात मिलता हैं। उसको अपने वंशवृद्धि की चिंता विशेष रुप से बनी रहती हैं। उसको लाभ प्राप्ति में रुकावट, किसी न किसी कार्य मे निरन्तर चिंता व कष्ट के कारण जीवन में संघर्ष बना रहता हैं। वह जिस कार्य में हाथ डालता हैं उसको उसी में असफलता हाथ लगती हैं अथवा वही कार्य उसके लिए विवादास्पद हो जाता हैं। उसे अपनें परिश्रम का फल नहीं मिलता, जिससें जातक मानसिक तनाव में रहता हैं। ऐसे जातक को पेट और दिल से जुड़ी समस्या भी परेशान करती हैं। ऐसा जातक बहुत बार प्रेम में फंसता हैं, लेकिन उसको तृप्ति नही मिलती हैं।  

महापद्म कालसर्पयोग- जब कुंडली में षष्ठम भाव मे राहु और द्वादश भाव में केतु हो और राहु-केतु मध्य सभी ग्रहों की स्थिति बनने के कारण महापदम नामक कालसर्पयोग बनता हैं। इस योग के कारण जातक को बहुत से रोग परेशान करते हैं वह चाहे कितना भी इलाज करवाए उसे वह रोग समझ नही आता हैं। वह बहुत सी व्यर्थ यात्राएं करता हैं और उसको सफलता नहीं मिलती। ऐसे जातक के स्वयं का चरित्र संदेहास्पद रहता हैं और आत्मबल भी कमजोर रहता हैं तथा निराशा की भावना विशेष रुप से बनी रहती हैं। उसके कार्य में स्थिरता नहीं रहती और उसके गुप्त शत्रु सदा परेशान करते रहतें हैं। उसके कार्य में बाधा एवं निरन्तर संघर्ष के कारण जीवन कष्टमय बना रहता हैं और उसे श्रम का संपूर्ण फल नहीं मिलता। ऐसे जातक को कर्ज़ का लेन-देन बहुत सावधानी से करना चाहिए। जातक को अपने शत्रुओं से भी सावधान रहना चाहिए क्योंकि वह कभी भी उसका नुकसान कर सकते हैं।

तक्षक कालसर्पयोग- जब कुंडली में सप्तम भाव में राहु और प्रथम भाव मे केतु हो और उनके बीच में सभी ग्रहों के कारण तक्षक कालसर्पयोग बनता हैं। ऐसे व्यक्ति का वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण रहता हैं तथा जीवन साथी से दूरी सहनी पडती हैं, उसे प्रेमप्रसंग में भी असफलता मिलती हैं। जातक को उसके बनते हुए कार्यो में धोखा मिलने की संभावना अधिक बनी रहती हैं। उस जातक के किसी न किसी कारण मानसिक परेशानियां व चिंताए पीछा नहीं छोड़ती। ऐसे व्यक्ति को जीवन साथी के साथ समझौते का रुख अपनाना चाहिए तभी गृहस्थ जीवन सुखी होगा। ऐसे जातक को अपने परिश्रम का समय पर फल नहीं मिलता और मानसिक परेशानी एक के बाद एक पीछा नहीं छोड़ती। उसे अपनें कार्य, व्यापार और नौकरी में बदलाव सहना पडता हैं। ऐसा जातक या तो खुद अपने जीवन साथी को धोखा देता हैं या वह उससे धोखा खाता हैं। जातक का अपने जीवन साथी के साथ संतुष्टि भरा जीवन नही रहता हैं।                                          अपनें जन्मदिन पर अपनें बारें में जाननें के लिए आर्ड़र दें-

कर्कोटक कालसर्पयोग- जब कुंडली मे अष्टम भाव में राहु और द्वितीय भाव में केतु हो व अष्टम से धनभाव तक राहु-केतु के मध्य पड़ने वाले ग्रह स्थिति के कारण कर्कोटक नामक कालसर्पयोग बनता हैं। इस योग के कारण जातक को अल्प आयु से ही दुर्घटना का भी भय बना रहता हैं और स्वास्थ्य की चिंता भी बनी रहती हैं। वह बिना बात पर ही धन की हानि करता हैं तथा उसका उधार दिया हुआ पैसा भी डूब जाता हैं। जातक के शत्रु भी बहुत होते हैं जो उसे नुकसान देते हैं। उसका अपनी वाणी पर भी नियंत्रण नहीं रहता और वाणी भी दूषित रहती हैं। ऐसे जातक को बोलते समय पता ही नही चलता कि कब क्या बोलना हैं। ऐसा जातक परिश्रम बहुत करता हैं पर उसे उसका फल नहीं मिलता और अपने कुटुंब में अपयश एवं आत्मीय परिजनों में यथेष्ट सम्मान भी नहीं मिलता हैं। जातक की आर्थिक हालात मे विषमता बनी रहती हैं और उसकी परेशानी एक के बाद पीछा नहीं छोड़ती हैं। ऐसा जातक तंत्र-मंत्र में रुचि रखे तो बहुत ज्ञान पाता हैं और वह शोध कार्य में भी अधिक रुचि रखता हैं।

शंखचूड़ कालसर्पयोग- जब कुंडली में नवम भाव में राहु और तृतीय भाव में केतु हो और तृतीय भाव से राहु-केतु के मध्य पड़ने वाली सभी ग्रह की स्थिति के कारण शंखचूड़ नामक कालसर्पयोग बनता हैं। इसके कारण जातक को भाग्योदय में परेशानियां, नौकरी व कार्य मे आगे बढ़ने में रुकावटे आती हैं। जातक को अपने मित्रों द्वारा कपट-व्यवहार, व्यापार में घाटा, राज्यच्युत तथा नौकरी में अवनति का भी ड़र बना रहता हैं। उसके लिए अदालत से दण्ड की स्थिति भी बन सकती हैं। उसके अपने बहनोई या मामा पक्ष से कपट व्यवहार रहता हैं। उसको शरीर में कोई न कोई रोग एवं परेशानी लगी रहेगी। ऐसे जातक कई प्रकार के कार्य करता हैं पर उसकी स्थाई सफलता सदैव संदिग्ध रहती हैं। फूटे घड़े में जिस प्रकार से पानी नहीं रहता उसी प्रकार मेहनत करने के बाद भी भाग्योदय हेतु किये गए प्रयत्नो में सफलता नहीं मिलती और पिता से सहयोग व प्रेम में कमी रहती हैं। ऐसे जातक को यात्रा में बहुत रुचि रहती हैं वह व्यर्थ के कार्य में भी अपना समय खराब करता हैं। ऐसे जातक को धर्म के कार्य में दिखावा नहीं करना चाहिए।  

घातक कालसर्पयोग- जब कुंडली में दशम भाव में राहु और चतुर्थ भाव में केतु हो और राहु-केतु के मध्य ग्रसित सभी ग्रहों के कारण घातक नामक कालसर्पयोग की सृष्टि होती हैं। इस योग के कारण जातक को व्यापार में घाटा, भागीदारी में मनमुटाव, सरकारी अधिकारियों से अनबन तथा सुख प्राप्ति के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं। उसका अपने घर-परिवार से अलगाव बना रहता हैं जिस कारण निरन्तर चिंता व परेशानी व्यक्ति के व्यावसायिक एवं गृहस्थ जीवन को कष्टमय बनाती हैं। उसको अपने ही नौकर धोखा देते हैं और वाहन दुर्घटना का भय रहता हैं। जातक को परिश्रम का उचित फल नहीं मिलता हैं, जिस कारण सफलता मे देरी होती हैं। ऐसा जातक बार-बार अपने कार्य में बदलाव करता हैं और इससे उसके कार्य मे स्थिरता नही रहती हैं। वह बहुत जल्दी बैचेनी महसूस करता हैं जिससे एक स्थान पर अधिक देर तक ठहरना उसके लिए कठिन हो जाता हैं। 

विषधर कालसर्पयोग- जब कुंडली में एकादश भाव में राहु व पंचम भाव में केतु हो और राहु-केतु के मध्य होने वाली सभी ग्रह स्थिति से विषधर नामक कालसर्पयोग की उत्पत्ति होती हैं। इस योग के कारण ज्ञानार्जन में दुविधा होती हैं और उच्च शिक्षा में बाधा व स्मरण शक्ति का ह्रास होता हैं। उसे अपने दादा-दादी, नाना-नानी से पूर्ण लाभ की आशा होते हुए भी हानि होती हैं व उसके अपने काका व चचेरे भाइयो से भी झगड़ा बना रहता हैं। उसकी संतान बीमार रहती हैं और लाभ में भयंकर बाधा बनी रहती हैं जिससे व्यक्ति चिंतातुर रहता हैं तथा धन के मामलों को लेकर बदनामी या संघर्ष की स्थिति झेलेनी पड़ती हैं। उसका अपने परिवार से अलगाव रहता हैं, जिसमे वह कभी-कभी अकेलापन भी महसूस करता हैं। ऐसे जातक को जिससे प्रेम होता हैं, वह उसके पिछले जन्म का साथी होता हैं। ऐसे जातक को राहु की दशा मे सर्वत्र लाभ मिलता हैं। ऐसे जातक को अपने परिश्रम का फल बहुत कम मिलता हैं और मानसिक परेशानी एक के बाद एक लगी रहती हैं।                               अगर आपके मन में कोई सवाल हैं तो हमसें बात करें।

शेषनाग कालसर्पयोग- जब कुंडली में द्वादश भाव में राहु और षष्ठम भाव में केतु हो तो राहु-केतु के मध्य पड़ने वाले सभी ग्रह योग के कारण शेषनाग नामक कालसर्पयोग की सृष्टि होती हैं। इस योग के कारण जन्म-स्थान व अपने ही देश से दूरी, संघर्षशील स्थिति, नेत्रपीड़ा, निंद्रा में कमी तथा अंतिम जीवन में कष्ट के साथ एक डर बना रहता हैं। ऐसे जातक के गुप्त शत्रु बहुत होते हैं परन्तु ऐसे जातक को मृत्यु के उपरान्त ही ख्याति मिलती हैं। उसके जीवन मे निराशा अधिक रहती हैं। उसका मनचाहा काम पूरा नहीं होता और यदि कार्य होता हैं तो बहुत देरी से होता हैं जिससे मानसिक उद्विग्नता के कारण दिल-दिमाग परेशान रहता हैं। उसे धन की कमी होने से चिंता एवं क़र्ज़ उतारने हेतु किए प्रयासों में सफलता नहीं मिलती, जिससे अगर जातक ने क़र्ज़ ले भी लिया हैं तो वह समय पर उतार नही पाता है और वह बहुत बड़ जाता हैं और उतरता नही हैं। उसकी मानसिक परेशानी एक के बाद एक उसका पीछा नहीं छोड़ती और जातक षडयंत्रो में ही उलझा रहता हैं, जिससे जीवन की शांति भंग हो जाती हैं। ऐसे जातक को विदेश जाने में बहुत रुचि रहती हैं और वह घूमने में अपना समय व धन की परवाह नही करता हैं। 

इस काल सर्प दोष के उपचार के लिए हम कुछ सामान्य उपाय करके इस दोष का उपाय कर सकते हैं।                                                अन्य उपायों के लिए यहां देखें-
1. ज्योर्तिलिंग त्रिम्बकेशवर, नासिक या महाकालेशवर उज्जैन में जा कर किसी योग्य आचार्य से इस दोष की पूजा करवानी चाहिए।
2. सावन माह मे नियमित रुप से रुद्राभिषेक करना चाहिए व रुद्राक्षटम, रावण स्रोत्र या महामृत्युंज़य का पाठ करना चाहिए।
3. किसी शुभ महुर्त में शनिवार को सूखे नारियल या बादाम बहते जल में प्रवाहित करे।

 

अन्य दोषों जैसे मांगलिक दोषपितृ दोष, अंगारक दोष, गुरु-चण्ड़ाल दोष, गण्ड़मूल शांति आदि पूजा के साथ नव-ग्रहों की पूजा, महा-मृत्यंज़य पूजा या अन्य विवाह आदि कार्यक्रमों के लिए सम्पर्क कर सकतें हैं।  

यहां सभी सामान्य उपाय बतायें गए जो सभी कर सकतें हैं, अगर आप भी इस तरह से किसी परेशानी का सामना कर रहें हैं तो हमसे सम्पर्क करके अपनी समस्या का समाधान कर सकतें हैं और आने वाले जीवन मे सुकून का अनुभव कर सकतें हैं क्योंकि बहुत बार हम बहुत से उपाय करते हैं और जैसे जो कहता हैं उपाय करवानें धन भी खर्च करते हैं लेकिन घर में वास्तु दोष होने पर भी हम अपनी समस्या का समाधान सही जगह जाकर खोज़ ही नही पातें जिससें और भी उलझ कर परेशान हो कर विशवास ही खो बैठते हैं। हम आपकी समस्या के अनुसार आपको निदान देने का प्रयास करेंगें और वास्तु उपचार के साथ यज्ञ व पूजा-पाठ के माध्यम से भी आपकी परेशानी का निदान कर सकते हैं। जातक की कुंड़ली में अपनें ग्रहों के अनुसार योग और दोष बने होते हैं।

आप भी अपनी कुंडली के अनुसार अपने बारे मे जान सकते हैं। हमारे यहां सभी पूजा, हवन, मंत्रों व यज्ञ का भी सम्पूर्ण आयोजन किया जाता हैं और आपकी सुविधा अनुसार आपके घर तक भी ब्राहम्ण भेज़ने का इंतज़ाम हमारे माध्यम से हो सकता हैं। आप विधि अनुसार नव ग्रहो के मंत्रो और अन्य पूजा-पाठ करवा सकते हैं। आप हमसें सम्पर्क करके पितृ दोष या अन्य दोषों का पूजा विधि अनुसार उपचार करवा कर कुंडली मिलवा कर अपने जीवन को सुखद कर सकते हैं।    


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