दुर्घटना के ज्योतिषीय योग:
हम नित्य प्रति किसी न किसी कार्य से या घूमने के लिए बाहर आते जाते हैं और सड़क पर बहुत से वाहनों का सामना भी करना पड़ता हैं। हम भले ही कितनी सावधानी से वाहन चलाये पर वक्त खराब हो तो सामने वाले की गलती से भी दुर्घटना के शिकार हो ही जाते हैं। यह सब हम अपनी कुंड़ली में जान सकते हैं किस समय में हमारे साथ में छोटी या कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती हैं। कभी हम बहुत बडी दुर्घटना के शिकार होने के बाद भी शारीरिक रुप से क्षतिग्रस्त नहीं होते क्योंकि हमारी कुंड़ली में ऐसे खराब योग नहीं होते हैं। कुंड़ली ज्योतिष के कुछ नीचे दिये योग जातक को शारीरिक रूप से क्षति पहुंचाते हैं।
केन्द्रों में पाप ग्रहों की उपस्थिति स्वास्थ्य के लिए शुभ नहीं मानी जाती हैं क्योंकि केंद्र में पाप ग्रहों की स्थिति को अनवरत स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल बताया गया हैं। उनकी प्रतिकूल प्रवृति को केंद्र में शुभ ग्रहों की स्थिति ही उदासीन करती हैं।
भाव: चतुर्थेश की षष्टम भाव में स्थिति जो दुर्घटना का भाव हैं या षष्ठेश/चतुर्थेश में परिवर्तन योग क्योंकि चतुर्थ भाव का संबंध जातक के निवास व वाहन इत्यादि से हैं और छठा भाव दुर्घटना का हैं।
ग्रह: ग्रहों में चन्द्रमा और मंगल का संबंध या चतुर्थ भाव पर मंगल व केतु की दृष्टि या युति होने से इनकी दशा में दुर्घटना हो सकती हैं।
दशम भाव में स्थित सूर्य को चतुर्थ भाव से मंगल देखता हो तो इस योग में वाहन से दुर्घटना हो सकती हैं।
लग्न में सूर्य तथा शनि दोनों राहु-केतु अक्ष पर हो तो यह यह वृक्ष से गिरने का योग हैं।
चतुर्थ भाव में मंगल तथा सप्तम भाव में सूर्य या शनि हो या मंगल और शनि लग्न में तथा चन्द्रमा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना से मानसिक तनाव होता हैं।
चतुर्थेश तथा केतु षष्ठम भाव में हो या शनि, मंगल तथा राहु सब अष्टम भाव में हो तब भी अचानक शस्त्र से दुर्घटना के योग होते हैं।
राहु या केतु छठे, आठवें या बारहवें भाव में केंद्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ हो मृत्युतुल्य कष्ट के साथ दुर्घटना होती हैं। चतुर्थेश पाप ग्रह से युक्त होकर केंद्र में स्थित हो या लग्नेश चतुर्थ भाव में चन्द्रमा सप्तम तथा मंगल दशम भाव में हो तो डूबने के कारण चोट या मृत्यु देते हैं। अपने बारें में जाननें के लिए अभी बात करें!
क्षय रोग/तपेदिक/टी.बी./टुयबरक्लासिस:
यह एक ऐसी बीमारी हैं जो मायकोबैक्टीरियम नामक जीवाणु से होती हैं। इस रोग का मुख्य मार्ग श्वसन हैं, जो बीमार आदमी के छींकने से भी हो जाती हैं, जिससे यह मस्तिष्क और हड्डियों को भी संक्रमित कर देता हैं।
चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों व भाव के माध्यम से हम यह जान सकते हैं कि कुंड़ली में यह योग हैं तो इसका निदान कैसे किया जाये।
ग्रह: ग्रहों में शुक्र लग्नेश से संबंध बना कर त्रिकभाव में हो या कारकांश लगन से मंगल चौथे भाव में तथा राहु द्वादश भाव में हो। किसी भी राशि में सबसे अधिक अंश प्राप्त करने वाले ग्रह को आत्मकारक ग्रह कहते हैं और आत्मकारक ग्रह नवांश में जिस राशि में हो वह कारकांश लगन होता हैं।
राशि या नवांश कुंड़ली में सूर्य तथा चंद्र स्थान परिवर्तन योग में हो या कर्क या सिंह राशि में सूर्य व् चंद्र की युति हो तो भी जातक को क्षय रोग होने की संभावना होती हैं।
चन्द्रमा शनि से युक्त तथा मंगल से दृष्ट हो, इस मामले में प्राय क्षय रोगी के सम्पर्क में आने से यह रोग होता हैं और लग्न को मंगल व शनि देखते हो या बुध कर्क राशि में हो तो बहुत ही सावधानी से चलना चाहिए क्योंकि इन ग्रहों की दशा में आसामान्य रोग होता हैं। कोई सवाल! अभी पूछें!
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