केतु का ज्योतिष में महत्व
राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं हैं, यह न दिखने वाले छाया ग्रह हैं। सूर्य और चंद्रमा के पाथ आपस में जहां कटते हैं, वही दो कटाव बिंदु को राहु व केतु माना गया हैं, जो इन चक्र पर स्थित गणितीय बिंदु हैं, जिन दो स्थानों पर चन्द्रमा का मार्ग, रविमार्ग को काटता हैं, उसके उत्तरी बिंदु को राहु और दक्षिण बिंदु को केतु कहते हैं, यह बहुत संवेदनशील और प्रभावशाली बिंदु हैं। इनका अपना अस्तित्व न होते हुए भी मानव जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव ड़ालते हैं। यह छाया ग्रह हैं, ऋषि पराशर के अनुसार इनकी कोई दृष्टि या कोई राशि का स्वामित्व नहीं होता हैं, लेकिन कई दूसरे महान ज्योतिषियों के अनुसार इनकी 5, 7, 9 की दृष्टि से होती हैं और राहु को मिथुन राशि में उच्च व् केतु को धनु में उच्च का माना जाता हैं, यह सदैव वक्री दिशा में चलते हैं। हमसें मिलनें या बात करने के लिए यहां क्लिक करें!
छाया ग्रह केतु के बारे में कुछ ज्योतिषिय रहस्य की बात करते हैं। शास्त्रों के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय जब अमृत निकला तो देवता-दानवो में युद्ध होने लगा की अमृत किसे मिलेगा, फिर विष्णु जी मोहिनी अवतार में आये और अमृत देवता को देने लगे फिर राहु नामक राक्षस धोखे से पंक्ति में आकर बैठ गया, परन्तु सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया और भगवान विष्णु को सब बताया। भगवान विष्णु जी, मोहिनी अवतार में देवताओं को अमृत पान करवा रहे थे। वह अपने रूप में आए और क्रोधित होकर अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया, पर राक्षस अमृत पान कर चुका था, इसलिए अमर हो गया। अब सिर राहु और धड़ केतु हैं, दोनों ही अमृत पान की वजह से अमर हो चुके हैं। जिनका छाया के रूप में जिक्र होता हैं, ये हैं तो छाया ग्रह लेकिन इनकी छाया पूरे मानव जीवन की कुंड़ली पर गहरा असर ड़ालती हैं। सातों ग्रहों के साथ इन दो छाया ग्रहों का भी मानव जीवन पर बहुत महत्व हैं। ये पूरे जीवन में उथल-पुथल मचाने में सक्षम हैं। मानव जीवन में इन नौ ग्रहों की सम्पूर्ण छाया चल-चित्र हैं। जन्म होते ही इन नौ ग्रहों का प्रभाव व फल एक बैंक पास-बुक की तरह मानव जीवन के लिए लिख दिया जाता हैं, कि कितना प्रारब्ध के रुप में धन हैं और कितना ब्याज़ हैं जो अभी बकाया हैं। हमारे संचित कर्मो के अनुसार दशा से ज़ीवन की दिशा निर्धारित होती हैं।
केतु ग्रह जो सूर्य व चंद्रमा के कारण अपने शरीर से अलग होकर सिर्फ धड़ में रह गए, तभी मानव के मन पर सबसे अधिक खराब फल केतु व चंद्रमा के साथ होने से होता हैं। चंद्रमा के साथ केतु होने पर चंद्रमा को ग्रहण लगता हैं, यह ग्रहण दोष मानव जीवन पर ग्रहण लगा देता हैं। आपके सवाल हमारे जवाब, यहा क्लिक करें!
केतु की चंद्रमा से युति या प्रभाव होने पर मन में बैचेनी रहती हैं, हमेशा परेशान रहने की आदत होती हैं। जातक व्यर्थ की सोच व चिंता से भराअ रहते हैं, सब होते हुए भी मन में शांति व सुकून नहीं रहता और अस्थिरता का अनुभव रहता हैं। ऐसा मांनव कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। मन हमेशा चलायमान रहता हैं, हर बात पर शक व वहम करने की आदत बन जाती हैं।
यही चंद्रमा केतु बहुत अच्छी कल्पना शक्ति तो देता हैं, परन्तु अच्छे फलों में रुकावटे भी लाता हैं। बिना बात का भय, ड़र, वहम व शंकालु प्रवृति रहती हैं। आत्म हत्या का विचार, अवसाद, रक्तचाप में उतार-चढ़ाव, हार्मोन संबंधी और किसी भी बात पर रोना आ जाता हैं। एकाग्रता का स्तर कमजोर होना, आत्म-विशवास की कमी, मानसिक रोगी, मिर्गी, हिस्टीरिया और माईग्रेन जैसे रोगों की आशंका रहती हैं। जिसका सीधा प्रभाव मन पर पढ़ता हैं, तभी केतु की अशुभ स्थिति सीधा मन को प्रभावित करती हैं, जिससे आत्मबल भी गिर जाता हैं। ज्योतिष/अंक ज्योतिष सीखें!
केतु प्रधान लोग उदासीन व अलगाव महसूस करते हैं। केतु- धारणाएं, सन्यास, त्याग, उपासना, मोक्ष का कारक हैं। केतु की दशा में शारीरिक स्वास्थ्य में असर पढ़ता हैं, व्यक्ति स्वयं अपनी महत्वकांक्षाओं को मारता हैं, जिससे आध्यात्म, उपासना और वैराग्य की तरफ झुकाव होने लगता हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति चैतन्यहीन हो जाता हैं। उसकी बातों में उदासीनता, अकेलापन, चिंता व निराशा दिखाई देती हैं। जातक बैचेनी का अनुभव करता हैं। यह रहस्यमयी छाया ग्रह जातक को असमंजस व शंकालु बनाता हैं। केतु की दशा में कोई रोग हो जाए तो समझ नहीं आता सभी टेस्ट करवाने के बाद भी आखिर बीमारी क्या हैं, जो सामने नहीं आ पाती। जिसकी वज़ह से मानव अनचाही चिंता में ही रहता हैं। जातक को अचानक बाधाओं का सामना करता हैं, मन बेचैन रहता हैं, किसी काम में दिल नहीं लगता या समय पर नहीं कर पाता, अगर करता भी हैं, तो शीघ्रता में करता हैं।
केतु प्रधान लोग शीघ्रता से किसी पर विश्वास नहीं करतें और इन लोगों को समझना भी आसान नहीं होता। इनका चरित्र-आचरण भ्रमित व भरोसे लायक नही होता हैं, क्योंकि ये खुद वहमी व भ्रमित रहते हैं। कभी-कभी तो अपनी भावुकता, दूसरों पर अंधविश्वास या निर्भरता के स्वभाव से यह तरक्की नहीं कर पाते। अन्य ग्रहों के बारे में विस्तार से जानें!
केतु के पास मस्तिष्क नही हैं, तभी अपने फल देने में सक्षम नहीं हैं, जिस ग्रह के साथ युति हो, या दृष्टि पड़े, या जिस नक्षत्र में हो, उसी अनुसार फल देने में बाध्य होता हैं। यदि केतु (1,5,9) त्रिकोण में हो और (1,4,7,10) केंद्र के स्वामी के साथ युति में हो, निश्चित रूप से राजयोग बनाता हैं, यानी ऐसा त्रिकोण में बैठा हुआ केतु अपनी दशा-अन्तर्दशा में उत्तम फल देता हैं। राजयोग का फल किस प्रकार का होगा, यह इस बात पर निर्भर करता हैं की ग्रह पंचम या नवम भाव में हैं तथा बाकि केंद्र के स्वामी की क्या स्थिति हैं। यदि केतु केंद्र में हैं तो त्रिकोणेश {नवम व पंचम के स्वामी} के साथ हो तो भी विशेष राजयोग होता हैं। केतु त्रिकोण में हो तो और केंद्र के किसी भी ग्रह के साथ हो तो भी उस ग्रह की महादशा में केतु की अन्तर्दशा शुभ फल देती हैं। केतु 6,8,12 भाव में हो, अष्टमेश या पापी ग्रह के साथ हो तो इन दशा में अच्छा फल नहीं होता। केतु का खुद कोई अस्तित्व नहीं फिर भी कितना महत्वपूर्ण हैं। यह कुंड़ली में सभी ग्रहों की तरह राजयोग का फल भी दे सकता हैं और अशुभता का भी। अपनी कुंड़ली के बारे में जाने!
केतु के राजयोग के साथ मारक का भी फल देता हैं। यदि केतु मारकेश के साथ हो तो मारक हो जाता हैं। बाधकेश के साथ हो तो बाधक होने का भी फल देता हैं।
आप भी अपनी जन्म कुंड़ली में राहु केतु के महत्व या उनके फलों या राहु केतु की दशा के फल को जानना चाहते हैं तो हमसें सम्पर्क करें और जानें इन रहस्यमयी ग्रहों के हमारे जीवन में क्याा प्रभाव हैं!
+91-770-1950-631