Learning Point
Contact Us

Kundali Ke Bhaav

Houses in Astrology- Kundali ke Bhaav- वैदिक ज्योतिष में जिस तरह राशियों, नक्षत्रों, ग्रहों, लग्न और योगों के माध्यम से फलित करते हैं, उसी तरह से भावों का भी कुंड़ली मे विशेष महत्व हैं।     

प्रथम भाव:- कुंडली का प्रथम भाव, जातक की ज़िंदगी का पुरा नक्शा है। इस तनु भाव से आपका आचरण, चरित्र, आप क्या है, सब जान पाते है। यह भाव शरीर, स्वरूप, वर्ण, रंग, आकार, व्यक्तितत्व, सामान्य समृद्धि, बाल्यवास्था, प्रारम्भिक जीवन, स्वास्थ्य और चरित्र को समझा पाता है। इस भाव से शुभाशुभ समय जिसमे बालारिष्ट या बाल्यावस्था में मृत्यु, प्रसन्नता या अप्रसन्नता, निवास-स्थान और विदेश में निवास को भी दर्शाता है। लग्न में उदित राशि जितनी पवित्र एवं बली होगी जातक उतना ही दीर्धायु होगा। पराशर के अनुसार लग्न सूर्य एवं चन्द्रमा को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। लग्न भाव ही हमारे जीवन एवं जीवनारम्भ को इंगित करता है।

द्वितीय भाव:- इस भाव से हम परिवार, चेहरा, दाई आँख, भोजन, धन-सम्पत्ति, साहित्य सम्बन्धित उपहार, वाकशक्ति, मृत्यु, परिवार का इतिहास, स्मरण शक्ति, नाक, दांत, मारक भाव, संगीत कला, खाने का स्वाद और पसंद धन की बचत, नाखून, जीव्हा, सत्य-असत्य, आभूषण एवं बहुमुल्ये रत्न, दूसरो की सहायता करने की प्रवृति, समृद्धशाली जीवन जैसे अन्य विषय भी विचार करते है।  अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें मिलनें के लिए सम्पर्क करें।   

तृतीय भाव:- इस भाव से हम अनुज अर्थात छोटे भाई-बहन, पराक्रम, साहस, शौर्ये, रिशतेदार, गला, बहस करना, कान, नवम से सप्तम होने के कारण पिता की मृत्यु, मार्कीटिंग का कार्य, पत्रकारिता, पत्र-व्यवहार, लेखन, पोस्ट, संचार, मीडिया, मानसिक स्थिरता, दृढ़ता, कंधा, बाजु और वाणी जैसे सभी विषय का विचार किया जाता है। इस भाव से औषधि, मित्र, छोटी यात्रा, युद्ध, व्यर्थ का भटकना, निकट सम्बन्धी, भोजन की स्वच्छता, शौक, अच्छे परिवार का उत्तराधिकारी, डाक-सेवा संचार व्यवस्था और पड़ोसी देश के बारे मे भी जान सकते है।

चतुर्थ भाव:- कुंडली के चतुर्थ भाव से माता, भवन, भू-सम्पति, पैतृक सम्पत्ति, विद्या, वाहन, सुख, खुशहाली, मानसिक शांति, (यदि चतुर्थेश पाप कर्तरी योग में हो तो जातक कुसंगति मे फंसता है।) छाती, श्वसन प्रक्रिया, सुख-सुविधाएं, गुप्त अथवा संरक्षित धन और वस्त्र, प्रारम्भिक जीवन, राजनीतिक जीवनवृति को देखा जाता है। इस भाव मे हमारी अपने जीवन की खुशहाली, विद्या और चरित्र निर्भर है। यह भाव माता के प्रेम और माता से मिलने वाली विरासत भी है।  

पंचम भाव:- यह भाव विद्या, (पराशर ने इस भाव को सीखने का और शीघ्र समझने की क्षमता का भाव कहा है), बौद्धिक क्षमता, ज्ञान कार्य करने की मौलिक योग्यता, पूर्वपुण्य, रचनात्मक, मनोरंज़न, गतिशील व संस्कृति शिक्षा, सिनेमा, अभिनेता की प्रतिभा, कुछ निर्माण करना, भाग्य (वह भाग्य जो पूर्वजन्मो के कर्म के आधार पर सुनिश्चित है) मंत्र, संतति, भावनाये, कीर्ति, दादा आदि के लिए मुख्य रुप से देखा जाता है। महाऋषि पराशर के अनुसार पंचम भाव राज्याधिकारी के साथ-साथ जातक के उच्च स्तर से पतन को भी इंगित करता है क्योंकि यह दशम से अष्टम भाव है। उत्तरकालामृत के अनुसार यह भाव शासक, शासक का मंत्री, काव्य और प्रबंधको की रचना का भाव करना है। इस भाव से उपासना अथवा प्रयश्चित के साथ आराधना करना, साहित्य में प्रवीणता, प्रेम, प्रेम सम्बन्ध, लाटरी, जुआ, शेयर बाज़ार अर्थात आकस्मिक धन लाभ, पूर्व पुण्य, गर्भावस्था और संतान आदि के लिए देखा जाता है।      कोई भी सवाल! जवाब के लिए  यहां क्लिक करे!

षष्टम भाव:- यह भाव रोग, शत्रुओं से परेशानियां, चोट, घाव, कानूनी मुक़दमेबाज़ी, दुःख, चिंताए, ममेरे भाई-बहन, सेनाये, ऋण, दुर्घटनायें, नौकर या सेवक, दुर्भाग्य, चरित्रहनन, वस्त्र, अपमान, सौतेली माता, चरित्रहीनता, गर्भपात, अकाल प्रसव, आंतरिक शक्ति, बीमारी, रोग, सेवा-सुश्रुषा, नौकरी, नौकर-चाकर, ऋण, पशु, किरायेदार, शत्रु, मामा, कंजूसी, चिंता, कमर, प्रतियोगिता, मूत्र की बीमारी, विशवास-घात, आंखों की बीमारी, नाभि, गुदा स्थान आदि का विचार करते है।     

सप्तम भाव:- यह भाव सांसारिक सम्बन्ध, पति-पत्नी, व्यवसाय में साझेदार, वैवाहिक जीवन, मुकदमेबाजी, विदेश में प्राप्त नाम और सम्मान, जीवन को संकट, प्रतिभा, ऊर्जा, मृत्यु (सप्तम भाव मारक स्थान भी माना जाता है) कानूनी कार्य, सार्वज़निक जीवन, जनता का सुख, विवाह, भार्या, वैवाहिक खुशियां, व्यापार, साझेदारी, विदेश (पराशर के मतानुसार यदि लग्नेश, सप्तम भाव में स्थित होता है तो जातक की भू-सम्पति उसके जन्म स्थान से दूर स्थान में होगी) पेट का निचला भाग, जननांगो के रोग, गुप्त रोग, दैनिक आय, काम- विकार, पथ या रास्ता, जातक का पथभृष्ट होना, (यह भाव +परिवर्तन और विदेश यात्रा को भी इंगित करता है), राजनैतिक सम्बन्ध, (यह भाव दशम से दशम होने के कारण सप्तम भाव, स्वामी का अनुग्रह और चतुर्थ से चतुर्थ होने के कारण जीवन में प्राप्त होने वाली खुशियों को भी इंगित करता है, ये दोनों भाव एक दूसरे की परछाई होते है)

अष्टम भाव:- कुंडली का अष्टम भाव, मृत्यु अथवा आयु का भी भाव कहलाता है। इस भाव से आयुष्य, दुर्भाग्य , ऋण, पापकर्म, षड्यंत्र, अभियोग, सार्वजनिक निंदा, शत्रुता, आकस्मिक एवं अकाल मृत्यु, मृत्यु का कारण, पूर्ण विनाश, परेशानियां, अड़चने, दुःख, पिछले जन्मों में किये पाप कर्मो से अप्रसन्नता, गुप्त शत्रु, संकट, चोरी, सप्तम से द्वितीय होने के कारण भार्या का धन, रुकावटे, शत्रुओं से सम्बन्धित भाव, रहस्यमय, अलौकिक विषयो के प्रति रुझान, प्रजनन अंगो और गुप्तांगो के रोग, अचानक अत्यधिक धन लाभ/हानि, कामुक प्रवृति, नैतिक आचरण, ज़मीन मे छिपी गुप्त वस्तुयें, गोपनीय सूचना, जीवन साथी के साथ संयुक्त धन, पैतृक सम्पत्ति, सर्ज़री, लम्बी बीमारी, खुद से न कमाया हुआ धन, अवसाद, अपमान आदि का विचार करते है।

नवम भाव:- कुंडली के नवम भाव को भाग्य स्थान और धर्म स्थान कहा जाता है। इस भाव से कानून, अध्यापक, लम्बी यात्राये, नियम, समृद्धि, सदाचार, ज्ञान देने वाला अर्थात अध्यापक, शिक्षक, गुरु, पिता, पौत्र, (पाश्चातय ज्योतिष में दशम भाव को पिता का भाव माना जाता है क्योंकी यह माता के भाव यानि चतुर्थ का सप्तम भाव है। जबकि हिन्दू ज्योतिष में नवम भाव को गुरु के साथ-साथ पिता का भाव माना जाता है। प्राचीन काल में पिता को गुरु भी माना जाता था अत: नवम भाव को पिता का भाव माना जाता है। परीक्षण करने पर भी यह पाया गया कि नवम भाव को पिता के भाव के रूप में विश्लेषण करने पर अधिक सटीक परिणाम प्राप्त होते है। जबकि पिता की आयु को देखने के लिए दशम भाव को लेना चाहिए क्योंकी ये पिता से द्वितीय भाव होता है। इस भाव को अंर्तज्ञान, देवभक्ति, दया, पूजा स्थान, दान, तीर्थ यात्रा, तपस्या, प्रसिद्धि, दानवर्ती, नेतृत्व, लम्बी यात्राएं और विदेश यात्राएं, आध्यात्मिक पढ़ाई, कानून, दर्शनशास्त्र, विज्ञान, साहित्य, कल्पनाशक्ति, उच्च शिक्षा और घुटनो के लिए देखा जाता है। नवमेश के रूप में यह भाव कानून व इतिहास को बताता है। इस भाव मे शनि हो तो विदेश में भूमि और विदेशियों के संपर्क मे आकर कार्य और न्यायधीश की तरह कार्य करने वाला होता है। इस भाव से आत्मायों से संबंघ, सामुद्रिक यात्राये और वायुयान से याताओ को देखा जाता है।  
दशम भाव:- कुंडली का दशम भाव कर्मस्थान है जिसे अधिकारी और सरकारी कार्य के लिए भी देखते है। इस भाव से जीवनवृत्ति के साधन,जांघे, आजीविका, जीवन साथी की माता, पद, सत्ता, नेतृत्व, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, दत्तक पुत्र, आत्मसंयम, सरकारी, मोहर, राज्य का कर्मचारी, सरकार द्वारा सम्मान और पदवी, कीर्ति और उत्तरदायित्व, अनुशासनीय कार्य, उच्च धार्मिक कृत्य को देखते है। इस भाव मे शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक का मंत्रो, औषधीय, और धर्म स्थान से प्राप्त होने वाले धन पर अधिकार होता है। इस भाव से आदर-सम्मान, नौकरी मे स्थायित्व, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उच्च पद का विचार करते है।   
एकादश भाव:-  कुंडली का एकादश भाव दयनीय स्थिति से मुक्त का भाव है। मंत्रेश्वर ने एकादश भाव को सिद्धि और प्राप्ति का भाव कहा है। यह भाव धन देने वाला, दोस्तों से सम्पर्क, लाभ, प्राप्तियां, बड़े भाई-बहन, मित्र, शुभ समाचार, बायां कान, आभूषण, इच्छापूर्ति, वाणिज्य के द्वारा धन-सम्पति, लाभ, सम्मान, नोबल पुरस्कार, सौभाग्य, आमोद प्रमोद के रूप में संसारिक सुख, मित्र, समाज, आकांक्षाएं, इच्छापूर्ति, धन का लाभ, व्यवसाय में उन्नति, लाभ, भ्राता, रोग से छुटकारा, भाग्योदय, पिंडलियां दान, परोपकारी संस्थायें, सामाजिक लोग, एश्वर्य, द्वितीय पत्नी आदि का विचार किया जाता है।

द्वादश भाव:- इस भाव से हानि, विघ्न, अपव्यय, दुःख, धोखे का शिकार होना, दान में धन देना, कुटुंब में विद्रोह, दूर-दूर स्थानों की यात्राएं, पापमय जीवन, दुर्भाग्य, गरीबी, जेल, गुप्त शत्रु, अस्पताल में भर्ती होना, मोक्ष, पतन, कत्ल, जाल-फरेब, बदनामी, अपमान, गुप्त विद्या का ज्ञान प्राप्त होना, पैर, बाई आँख/कान, शयनसुख, ऋण, विदेश-यापन, छिपा खज़ाना, प्रतिभा, दैविय संबंध, आध्यात्मिकता, गूढ़ विद्या में परिपक्वता, हर्निया, व्यय (यदि द्वादशेश शुभ भावों/वर्गो में स्थित हो तो धन सम्मानीय कार्यो में व्यय होता है। यदि अशुभ में हो तो जातक का व्यय मदिरा, स्त्रियों, अनैतिक इच्छाओं की पूर्ति, जुआ खेलने में होता है।) यह भाव सर्वस्व, अपहरण, दूसरे की सम्पति का छल से हरण करने, धोखेबाज़ी और धन की गलय उपयोग की प्रवृति देती है। स्त्रियों की कुंडली में द्वादश भाव उनके चरित्र और शारीरिक रूप से प्रदर्शित होने वाली कामुकता को इंगित करता है। इस भाव के सकारात्मक पहलू मोक्ष और विदेश में निवास के अतिरिक्त जातक के पास स्वार्जित धन-सम्पति होती है और उसकी आयु लम्बी होती है जिससे वह एक प्रसन्न व्यक्ति कहलाता है।

 


Fill this form and pay now to book your Appointments
Our team will get back to you asap


Talk to our expert

 


Ask Your Question


Our team will get back to you asap