- "Ketu" in 12 Houses as per Astrology


प्रथम भाव मे केतु:-
प्रथम भाव मे केतु:- केतु एक अलगाववादी ग्रह है। केतु के पहले भाव मे होने से जातक कमजोर, दुर्बल शरीर, अस्थिरता, व्यर्थ भटकने वाला, असंतुलित वैवाहिक जीवन, अलगाववादी व्यक्तित्व, चिकित्सक, योगी, आध्यात्मिक, विनम्र, शालीन, खोज़ी, तांत्रिक विधा और सच्चाई की खोज़ मे लगे रहते है। उनकी पहचान दूसरो से होती है, सबसे अलग रहने की चाह और अपने कार्य से ही तारीफ चाहते है। जातक के ज़ीवन साथी मे अहम की भावना होती है। बच्चों के लिए संघर्ष करना और लग्न कमज़ोर हो तो गर्भपात भी होता है।
दूसरे भाव मे केतु:-
दूसरे भाव मे केतु:- यदि केतु मेष, मिथुन, कन्या राशि अथवा शुभ ग्रह की राशि में हो तो अपार धन सम्पदा, लाभ, खुशिया, मृदुभाषा और सफलता प्रदान करता है। अन्य स्थितियों में मानसिक उग्रता, शासन द्वारा दण्डित, धनहानि, खर्चीला, धन की परवाह न करना, कठोरता एवं कटु भाषा, हकलाना, असत्य बोलना और झूठी शान भी दिखाता है। जातक दूसरों के धन खर्च करवा कर खुश होता है और लोग भी इनकी मदद करते है। इनके दिमाग मे वो वस्तु होती है जो इन्होनें कभी देखी भी नही होती है। ऐसे लोग चल सम्पत्ति अधिक पसंद करते है। किसी भी तरह के कर्ज़, शत्रुओं और वाद-विवाद से दूर रहना चाहते है। ऐसे लोग मित्रता व शांत वातावरण पसंद करते है। अपने जीवन साथी के प्रति वफादार रहते है। अपने ज़ीवन साथी की धन-सम्पत्ति नही चाहते फिर भी राहू की वज़ह से सब प्राप्त होता है। जातक चिकित्सक, ज्योतिष, फाईनैंस का कार्य और सच्चाई की खोज़ करने वाला होता है।
तृतीय भाव में केतु:-
तृतीय भाव में केतु:- यहां स्वग्रही अथवा उच्च का केतु अत्याधिक खुशिया प्रदान करता है और जातक धनवान, विषयासक्त एवं तीक्ष्ण होता है। अपने शत्रुओं का नाश, कार्यदक्ष, दीर्घायु, प्रसिद्ध, भाग्यशाली साथी एवं स्वादिष्ट भोजन करने वाला होता है। अपने भाई-बहनों से अलगाव, छोटे समूह मे रहना, धार्मिक संघर्ष, अपने ही विशवास पर चलना, खुद को अलग रखना, आध्यात्मिक प्रवृति के चिकित्सक होते है। जातक की अपने जीवन साथी के साथ भी कम बातचीत होती है। निर्बली केतु खुशियों की हानि, भय, स्त्रियों के प्रति आसक्ति, मानसिक अवसाद, भाइयों एवं पड़ोसियों से परेशानियां और लाभविहीन यात्राएं देता है।
चतुर्थ भाव में केतु:-
चतुर्थ भाव में केतु:- केतू यहां विदेश से सम्बन्ध, माता, भू-सम्पति एवं खुशियों से वंचित और भाग्यहीन बनाता है। यहां केतु-शनि की युति मानसिक अवसाद, अचानक घर से अलग, आश्रम मे रहना, यात्राएं और पागलपन देती है। माता का इनके साथ अलगाव रहता है और इस अलगाव की वज़ह से माता के वियोग बारे मे सोचते रहते है। घर के माहौल मे अकेलापन महसूस करते है। इनकी माता अपने कार्य मे व्यस्त रहती है, घर मे अधिक समय नही दे पाती, अपने कार्य से यात्रा अधिक करती है जिसकी वज़ह से इनको माता का पूर्ण सुख नही मिल पाता। जातक संसार के गुप्त रहस्य की खोज़ और रहस्मय विज्ञान की खोज़ मे लगा रहता है। केतु यहां ज़ीवन साथी की सम्पत्ति से भी अलग करता है और अपने कार्य-क्षेत्र मे भी भ्रमित रहता है।
पंचम भाव में केतु:-
पंचम भाव में केतु:- यहां केतु मंत्रसिद्धि, शिक्षा मे रुकावट, पेट का रोग, यदि पीडित हो तो संतान के लिए अरिष्टकारी माना जाता है। जातक राज़नीतिज्ञ, कलात्मक, खोज़ी, ऊच्च शिक्षा, वैज्ञानिक, चीज़ों की खोज़, जासूस व चिकित्सक होता है। ये अपने बच्चों को लेकर बहुत संघर्ष करते है और इनके बच्चे दूसरी जाति मे विवाह करते है जिससे बच्चों से अलगाव होता है। ये बहुत धन कमाने के पश्चात भी संतुष्ट नही रहते है।
षष्टम भाव में केतु:-
षष्टम भाव में केतु:- षष्टम भाव मे केतु की अच्छी स्थिति होती है और ऐसा जातक अपने जीवन मे कभी न समाप्त होने वाला यश पाता है। ऐसा जातक बीमारियों एवं चिंताओं से मुक्त, चिकित्सक कार्य, सर्वाधिक उत्तेजक, वाद-विवाद एवं चर्चा में सफल, सगे-सम्बन्धियों का प्यारा, उदार हृदय, कार्यदक्ष, सम्मानित, समाज़ सेवी, प्रतिष्ठित, आर्थिक लाभ प्राप्त करने वाला और किसी नशे की वस्तु का आदि होता है, लेकिन जातक को कीड़े-मकोड़ों, जानवरों और कृतघ्न सेवकों से भय रहता है। केतु यहां सूर्य के साथ हो तो अच्छी मर्किटिंग करते है। जातक को कुत्तों से बहुत प्रेम होता है और सबसे अलग रहना पसंद करते है।
सप्तम भाव में केतु:-
सप्तम भाव में केतु:- केतु यहां जल से, शत्रुओं व चोरों से धनहानि का भय देता है। जातक तिरस्कृत, व्यभिचार, आंतो का रोगी और वीर्य सम्बन्धित परेशानियां देता है। वृश्चिक राशि का केतु हो तो लाभदायक होता है। ऐसा जातक व्याभिचारणी स्त्रियों से रति करता है, ऐसे लोग विवाह करना कम पसंद करते है और बिना विवाह के ही संबंध से खुश रहते है और विवाह करते भी है, तो जातक अपने ज़ीवन साथी से बहुत उम्मीद व इच्छाएं करता है, जिससे भार्या से असंतुष्ट रहता है फिर वियोग होता है। इनको बिना बात का ड़र रहता है कि कही कुछ खो न जाए और जिससे अपनी आशा व इच्छाओं को दबा लेते है।
अष्टम भाव में केतु:-
अष्टम भाव में केतु:- केतु वृश्चिक, कन्या, मेष या मिथुन राशि का होने पर सरकार से धन लाभ, बैंक अधिकारी, खेल, कार्यक्षेत्र में चरित्रवान, प्रसन्न, बहादुर, उद्योगी व लम्बी आयु देता है। जातक को दूसरों से बहुत लाभ मिलता है और इनका ज़ीवन साथी भी धन सम्पत्ति अर्जित करने वाला होता है। ज़ीवन साथी के साथ साझे मे भी सम्पत्ति होती है। इनको रहस्यमय व गुप्त ज्ञान आसानी से प्राप्त होता है। इनके अंदर कई छिपी प्रतिभा भी होती है। जातक की ज़िन्दगी मे अचानक घटनाएं और दुर्घटनाएं होती है। धन को लेकर भी उतार-चढाव आते रहते है। राहु की वज़ह से यश मिलता है और माता का साथ भी कम मिलता है या माता कि वज़ह से कोई परेशानी होती है।
नवम भाव में केतु:-
नवम भाव में केतु:- ऐसा जातक शीघ्र अनियंत्रित होने वाला, अहंकारी, धमंडी, छोटी-छोटी बातों पर परेशान होने वाला, माता पिता से प्रेम मे कमी, परंतु वह धन संचय करने में सक्षम होता है। ऐसा जातक धार्मिकता को नही अपनाता, पिता से अलगाव या दूरी और अपना ही रास्ता अपनाते है। ऐसे जातक को ऊँची शिक्षा की इच्छा होती है और एकांत जगह जाना पसंद होता है। वह अपनी आत्मा से भी खुद को अलग समझते है और अज़ीब से सवाल करते है।
दशम भाव में केतु:-
दशम भाव में केतु:- केतु मीन या धनु राशि में हो तो सर्वश्रेष्ठ सम्मान एवं मान्यता प्राप्त, ज्ञानी, विजय प्राप्त करने वाला, विदेश में रहने वाला, विदेश में भाग्योदय पाने वाला, प्रसन्न और परिपूर्ण होता है, लेकिन यह व्यापार के लिए अनुकूल नहीं होता है। जातक को सरकार से परेशानी रहती है और वह विज्ञान का खोज़ी, अध्यात्मिक नेता, परिवार से अलगाव और बात करते हुए सभी से बहस करते है। जातक को नशा पसंद, बिना सोचे खाना पीना, बेवज़ह इल्जाम लगा कर अपने दुशमन बना लेना और इन्हें पहचान मे न आने वाली बीमारी होती है।
एकादश भाव में केतु:-
एकादश भाव में केतु:- जातक लाटरी के द्वारा लाभ, कल्पनाशील, कुलीन, सफल, दिल-दिमाग से अच्छे गुणों वाला व कई क्षेत्रों की सुविधापूर्ण यात्रा करता है। केतु यहां कोई सीमा नही चाहता, हमेशा आज़ाद रहना चाहता है। जातक अपने पिछले जन्म मे बहुत धन कमा चुका था और खर्च भी कर चुका था तभी अब धन की कद्र नही कर पाता। ये दोस्तों की बहुत ज़रुरत महसूस करते है और चाहे जैसे भी हो खुद को सबसे ऊँचा देखना चाहते है। मनोरंज़न मे अधिक ध्यान नही देते और अपने ज़ीवन साथी से संतुष्ट नही रहते जिससे गलत संबंधों मे पढ जाते है।
द्वादश भाव में केतु:-
द्वादश भाव में केतु:- यहा केतु मोक्ष का कारक होने के कारण यहां शुभ माना जाता है, षष्टम भाव का केतु अधिक श्रेष्ठ होता है। केतु के यहां होने से जातक सदैव क्रियाशील रहता है, उसको घुमक्क्ड होने की प्रवृति, बार-बार हानि होना, खुले हाथ से व्यय, शत्रुओं का नाश व आँखों और पैरों का रोगी होता है। ऐसा जातक एकांत की तलाश करता है और मन मे भटकाव रहता है। वह जेल या अस्पताल मे कार्य करता है, परंतु संतुष्ट नही होता। ऐसे जातक का दिमाग हमेशा प्रतियोगिता मे ही लगा रहता है। वह वाद-विवाद से जुडा कार्य, धन के लिए संघर्ष और विदेश मे बसना चाहता है। ऐसे जातक को माता से अलगाव होता है और अचानक बदलाव आता है जिससे संसार से अलग होने की सोचता है। फिर आखिर मे समझ आती है कि ये संसार बेकार है, तब 43 साल की उम्र के बाद अध्यात्मिकता की खोज़ मे निकल जाते है।

Planets In 12 Houses as per Astrology


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Rahu & Ketu In 12 Houses as per Astrology


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