प्रथम भाव मे शनि:-
प्रथम भाव मे शनि:- ऐसा जातक गंभीर, निष्कपट, विचारक, वैरागी, धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करता है। जातक निष्ठावान, अनुशासित, वकील, जज़, दंत-चिकित्सक, सैल्समैन, संघर्ष भरी मेहनत का कार्य, नेतृत्व और सभी कार्य समय पर करते है। वह वैवाहिक जीवन में वफादार व अपने ज़ीवन साथी की पूरी मदद करते हैऔर उनका विवाह भी देरी से होता है। जातक के मित्र भी उम्र से बडे होते है और भाई-बहनों से भी अनुशासित तरिके से रहते है। शनि पीडित होने पर जातक दुर्बल, असन्तोषी और रहस्यपूर्ण प्रवृति, भाग्यहीन, शिथिलता, देरी के कारण हानि, नाक, नसें और साँस सम्बन्धित रोग, अधिक आयु का साथी और वह खुद षड्यंत्र रचने वाला होता है।
दूसरे भाव का शनि:-
दूसरे भाव का शनि:- ऐसा जातक विदेशी भूमि में सभी सुख एवं खुशियां प्राप्त करता है। तेज़ व स्पष्ट वाणी, झूठ न बोलेने वाला, सोच-समझ कर धन खर्च करना, धन की बचत देरी से, रुढीवादी, अनुशासित, मेहनती, नशे की आदत, आवाज़ मे हिचक, इंज़िनियर, फिलोस्फीकल अध्यापक, अकेला महसूस करना, कम बात करना, दोस्तों से मिलना कम पसंद करते है, 32 साल की उम्र के बाद ही मिलना ज़ुलना पसंद करना और इनकी ज़िंदगी मे अचानक बदलाव ही आते है। पीडित शनि होने से जातक अपने मित्रो से अप्रसन्न, झगडालु, झूठा, वाणी दोष, परिवार से विरक्त, कठोर एवं विकृत चेहरा होता है।
तृतीय भाव में शनि:-
तृतीय भाव में शनि:- शनि के इस भाव मे होने से जातक की छोटी बहन होती है और भाई-बहनों पर अपना रौब रखते है| यदि बली हो तो उत्तरदायित्व, व्यवहार कुशल, राजनीतिक चतुराई, चिंतन-मनन एवं मन को एकाग्रचित, दर्शनशास्त्र में रूचि, लेखन और अध्ययन देता है। यदि उच्च अथवा स्वराशि का हो तो भाइयों को लाभ देता है| जातक की पढाई मे एकाग्रता कम होती है। फिलोस्फी मे रुचि, सामाजिक सेवा, मोटी पुस्तके पढ्ने व लिखने का शोकीन, अपना कार्य देरी से खत्म करना और जो ज्ञान अर्ज़ित करते है वह ज़िंदगी भर काम आता है।
चतुर्थ भाव में शनि:-
चतुर्थ भाव में शनि:- शनि यहां केंद्र का आधार होता है जिससे जातक को बहुत मज़बूती मिलती है। यदि लग्नेश बली न हो तो यह स्थिति माता-पिता के लिए शुभ नहीं होती है। शनि दुःख का कारण होता है, माता से अलगाव व माता बहुत अनुशासित होती है, जिससे जातक की शिक्षा सही से नही हो पाती है और जातक अकेलेपन की और अग्रसर होता है। घर व वाहन होने के बाद भी सुख से वंचित होता है। जातक वकील, दवाईयों का कार्य और सरकारी कार्य पसंद करता है।
पंचम भाव में शनि:-
पंचम भाव में शनि:- ऐसा जातक परिश्रमी एवं निष्कपट, कलात्मक व मनोरंज़न मे अनुशासित होता है। शनि यहां अहसास दिलाता है कि अपनी जिम्मेदारी सम्भालों, हंसी मज़ाक मे समय व्यर्थ न करों और यदि यहां शुक्र हो तो बहुत कलात्मक भी होते है व कॉलेज़ की शिक्षा बहुत मनोरंज़न से पूर्ण करते है। शनि यहां शिक्षा को लेकर पाबंदी लगाते है, परंतु अपनी उच्च की राशि मे होने पर पाबंदी से दूर रहते है। वह बच्चों की बहुत चिंता करते है, उनको जिम्मेदारी का अहसास दिलाते है। यदि पीड़ित हो तो क्षीण एवं संतान के साथ सम्बन्धो में कटुता देता है।
षष्टम भाव में शनि:-
षष्टम भाव में शनि:- यदि शनि, षष्टम भाव में हो तो ऐसा जातक शत्रुओं, राजा या चोरो से भयभीत नहीं होता है वह निड़र सैनिक की तरह होता है। ऐसा जातक फिज़िशियन, चिकित्सक, साइक्लोज़िस्ट और रहस्मय विज्ञान से जुडा कोई कार्य करते है। वह परिश्रमी, देर तक कार्य करने वाला और कठिन से कठिन कार्यो को पूर्ण करने में सक्षम होता है। ऐसा जातक लम्बे समय तक वाद-विवाद मे उलझा रहता है, चाहे वह एक वकील के रुप मे ही क्यों न हो। जातक के ज़ीवन साथी के पास गुप्त धन होता है और विवाह के बाद धीरे-धीरे धन बढता है। शनि यहा के होने से कमर मे बहुत दर्द रहता है जिसका इलाज़ भी नही मिल पाता और वह वाद-विवाद की वज़ह से विदेश जाते है। पीड़ित शनि दुर्घटनायें, लम्बी बीमारी, दाई आँख का रोग और झगड़ालू प्रवृति देता है।
सप्तम भाव में शनि:-
सप्तम भाव में शनि:- सप्तम भाव में स्थित शनि जातक को मनचाहे ज़ीवन-साथी से वंचित करता है, विवाह में विघ्न उत्पन्न करता है और अपने से बडी उम्र के जातक से जीवन के उत्तरार्ध में विवाह देता है परंतु शनि वक्री हो तो समय से विवाह करवा देता है। यदि शनि पीडित हो तो जातक का जीवन-साथी बीमार होता है और जातक छल-कपट व धूर्त मित्रो से घिरा रहता है। वह धोखेबाज़ी एवं विश्वासघात से सम्पत्ति अर्जित करता है। जातक को अपने साथी से तलाक लेना हो तो बहुत कठिनाई से मिल पाता है। शनि यहां अनुशासित, स्थिरता व कानून से जुडा कार्य करवाता है। शनि शुभ हो तो जातक सभी कार्य समय व अनुशासन से करता है और लम्बा व खुशहाल विवाहित ज़ीवन जीता है और शनि अशुभ होगा तो फल इसके विपरीत होता है।
अष्टम भाव में शनि:-
अष्टम भाव में शनि:- नैसर्गिक अशुभ ग्रह होने के कारण अष्टम भाव में स्थित शनि समान्यता: शुभ नहीं होता है, क्योंकि यहां से यह दशम, द्वितीय और पंचम को दृष्ट करके क्रमश: कर्म, धन-सम्पति और संतति से सम्बन्धित विषयो में बहुत मेहनत व देरी से फल प्रदान करता है। लेकिन आयुष्यकारक होने के कारण ये लम्बी आयु देता है। जातक के कार्य मे उतार-चढाव, राज़नीति, गुप्त रहस्मय कार्य, खनिज़ का कार्य, ज्योतिष, फिलोस्फर, जासुस, दवाई का कार्य और मृत्यु से जुडा कोई कार्य करते है। ऐसा जातक अपने सामने आए व्यक्ति को अंदर तक पहचान लेते है। जातक अपने ससुराल से कोई धन-सम्पत्ति नही लेना चाहता या उसे कुछ मिलता ही नही है और उसके ससुराल से रिशता भी मधुर नही होता। शनि नीच का हो तो गैर कानुनी कार्य करते है। शनि यहां लम्बी आयु के साथ लम्बी बीमारी देता है। उनके विवाहित जीवन मे उतार-चढाव रहता है। वह ज़रुरतमंद लोगो की मदद मे हमेशा आगे रहते है। जातक का अपने परिवार से वाद-विवाद, अलगाव व भाई-बहनों से भी मधुर रिशता नही होता। बच्चों को अनुशासित रखते है और समय से चलना सिखाते है।
नवम भाव में शनि:-
नवम भाव में शनि:- यहां शनि अशुभ हो तो जातक को भार्या से वियोग, शूरवीर, कंज़ूस, अकेलापन, अविवाहित की इच्छा परंतु धनवान बनाता है। सूर्य के साथ शनि होने से पिता पुत्र में मतभेद होता है व पिता बहुत अनुशासित होते है। शनि शुभ हो तो जातक ज़ज, शिक्षा मे कठिन मेहनत से सफलता, अनुशासित पिता व अध्यापक, डॉक्टर, खोज़, गहराई से सीखना और प्रोफेसर होते है। जातक लम्बी यात्राएं, ऊंचे लोगो से संबंध और धनवान होता है। जातक को अपने भाई-बहनों से कम प्रेम होता है और बहुत ही मेहनत से कार्य कर अपना जीवन-यापन करते है।
दशम भाव में शनि:-
दशम भाव में शनि:- यदि शनि सुस्थित हो तो जातक राजसिक, प्रसन्न, मंत्री पद, शांत, साहसी, वरिष्ठ जिलाधिकारी, कृषि से सम्बन्धित कार्य, भयहीन, राजनीतिज्ञ और व्यापार व विदेश में अपने स्तर को बनाये रखने वाला होता है। शनि यदि प्रतिकूल राशि में हो तो सफलता के उपरांत विपत्ति, व्यापार में आर्थिक हानि व देरी, अपमान और पराजय देता है। जातक सरकार से जुडा कार्य करने की कोशिश करता है और अनचाहा यश भी प्राप्त करता है। ऐसा जातक अपने घर व कार्य क्षेत्र मे संतुलन बनाए रखता है, जिससे उसको बिना कुछ किए ही प्रशंसा प्राप्त होती है। जातक को धीरे-धीरे ऊंचाई प्राप्त होती है। वह वकील, लोहे का कार्य, सरकारी टैक्स अधिकारी होते है। जातक को यौन-सुख की चाहत कम होती है और विवाहित ज़ीवन भी साधारण होता है। जीवन-साथी भी किसी कार्य-क्षेत्र से जुडा होता है और उनके साथ अनुशासित संबंध होता है। जातक के पिता के साथ भी वाद-विवाद रहता है अगर शुभ हो तो जातक के पिता बहुत मेहनती भी होते है।
एकादश भाव में शनि:-
एकादश भाव में शनि:- जातक के पास कई स्त्री-पुरुष कार्य करते है। राजनीति-सरकार के द्वारा आय, आनंद में आसक्त, अल्प मित्रवाला, शिक्षा में विध्न, भूमि एवं अचल सम्पति, उद्योग, ईंटो का भट्टा, छ्पाईखाना, ठोस सामान, तेल शोधन के यंत्र, खाद्दाने, श्रमिक, लोहा आदि का व्यापार करने वाला होता है। शनि एकादश भाव मे खुद को अच्छा समझता है यह कालपुरुष की कुम्भ राशि का भाव है। जातक को व्यापार और शेयर मार्किट मे लाभ और अच्छी आय की प्राप्ति होती है। जातक को छोटी उम्र मे ही पैसे की अच्छी समझ आ जाती है जिससे खुद अपनी मेहनत से लाभ कमाते है। जातक के दोस्त भी समझदार व उम्र मे बडे होते है। जातक अपनी मेहनत से ही अपनी सभी इच्छाएं पूरी करते है। अगर शनि नीच का हो तो उसे मित्र धोखा देते है और गलत तरिके से लाभ अर्ज़ित करते है। ऐसे जातक को जोड़ो का दर्द और शिक्षा मे रुकावट आती है।
द्वादश भाव में शनि:-
द्वादश भाव में शनि:- शनि अशुभ हो तो जातक निराशावादी, विषादग्रस्त, अकेलापन, आलसी, आर्थिक हानि वाला, दूसरी स्त्रियों पर व्यय करने वाला, क़ानूनी मुक़दमेबाज़ी, शत्रुओं से चिंता, आंखों का रोग और मंगल की दृष्टि शनि पर हो तो स्त्री सरल व धर्म स्वभाव की होती है। जातक की लम्बे समय तक विदेश मे स्थायी स्थिति भी बनती है और वहां ज़रुरतमंद लोगो की मदद भी करते है। जातक परिवार से अलगाव होने पर खुद के लिए एकांत मे स्थान खोज़ते है। जातक लोगो से सामाजिक रिशता बनाता है और अपनी पहचान नही बताता है। यहां शनि होने से बचत मे देरी होती है और विवाह जल्दी होता है तो संबंधों मे वाद-विवाद रहता है। ये लोग धार्मिकता मे कम विशवास रखते है।