प्रथम भाव में बृहस्पति-
प्रथम भाव में बृहस्पति- ऐसा जातक सौभाग्यशाली, आशावादी, ऊर्जावान, कभी हार न मानने वाला, बड़े-बड़े कार्यो को करने वाला, सामाजिक, सहजता से कार्य करने वाला, सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार, सम्मोहित, ज्ञान, आध्यात्मिकता, आत्मानुभूति, सत्यता, नैतिकता, शिक्षा का ज्ञान, सीखने के इच्छुक व हुनर, शेयर का व्यापारी, वैज्ञानिक, कलात्मक अभिव्यक्ति, वकील, नेता, कानुन मे दक्ष और काउंसलर होते है। इनके बच्चों को सभ्यता का पूर्ण ज्ञान होता है और इनका समझदार व धार्मिक ज़ीवनसाथी होता है। ये अपने बडों व अध्यापक की बहुत इज्जत करते है और आशावादी होते है। निर्बली बृहस्पति जातक को बड़ा-चढ़ाकर बाते करने वाला, आडम्बर युक्त, उत्साह की कमी, निर्बल इच्छा-शक्ति एवं अंधविश्वास देता है।
द्वितीय भाव का बृहस्पति:-
द्वितीय भाव का बृहस्पति:- ऐसा जातक काव्य रचना में कौशल, न्यायधीश, जिलाधीश, कम एवं मीठी बात बोलने वाला, धनवान, आभारी, सुंदर व्यक्तित्व, बुद्धिमान, ऊर्जावान, दयावान, प्रसिद्ध, सुंदर जीवन साथी और कई स्त्रोतों से धन अर्जित करता है। ऐसा जातक लेखक, धनी, बैंक अधिकारी, वकील, पारिवारिक व्यापारी और विपक्ष से धन अर्जित करते है। जातक अपने ज़ीवनसाथी से किसी सार्वजनिक कार्यक्रम, किताबों के मेले या किसी पारिवारिक सम्मेलन मे मिलते है, ऐसे जातक अधिकतर प्रेम-विवाह करना पसंद नही करते। ऐसा जातक अध्यापक या उपदेशक की तरह बात करता है। जातक देखने मे धनवान लगता है और उसका रुझान किसी न किसी खोज़ मे रहता है।
तृतीय भाव में बृहस्पति:-
तृतीय भाव में बृहस्पति:- ऐसे जातक का बड़ा भाई होता है लेकिन बहन नहीं होती है, बृहस्पति बली हो तो प्रयास से सफलता मिलती है और जातक आशावादी, सुसंस्कृत, दयालु, धार्मिक, दार्शनिक, अच्छे मित्रो वाला, निष्कपट, लिखने और बोलने में विनम्र शैली व ज्ञानवान, पत्रकार, फाइनैंस का कार्य, शिक्षा, साहित्य, प्रकाशक, मित्रों और बंधु-बांधवो से लाभान्वित होता है। यहा बृहस्पति अकेला ही दिमागी शक्ति के लिए शुभ होता है। यदि गुरु अग्नि तत्व राशियों में हो तो सामाजिक कार्यो में सफलता मिलती है, पृथ्वी तत्व राशियों में व्यापार वाणिज्य एवं शेयर बाजार से लाभ देता है, वायु तत्व राशियों में बुद्धिमता द्वारा और जल तत्व राशियों में समुंद्री यात्राओं द्वारा लाभ देता है। यदि गुरु निर्बली हो तो जातक कृतध्न, कम लाभ पाने वाला, धूर्त, भार्या एवं संतान से प्रेम न करने वाला, इच्छा विहीन, अस्थिर, विषादपूर्ण, आलसी और दुर्बल होता है ऐसा जातक समुंद्री यात्राएं करने वाला भी होता है।
चतुर्थ भाव में बृहस्पति:-
चतुर्थ भाव में बृहस्पति:- ऐसा जातक शिक्षित, सुखी, धार्मिकता से भाग्योदय, सम्पन्न और सुखी पारिवारिक जीवन, बाल्यावस्था मे चारो और खुशियों भरा वातावरण रहता है। जातक तीर्थ यात्रा और आध्यात्मिकता से मोक्ष को सुनिश्चित करता है। ऐसा जातक अपने जन्मस्थान से प्रेम व वाहन युक्त, सुसज्जित घर व माता से ज्ञान पाता है। बृहस्पति नीच राशि का हो तो वह विदेशी यात्रा का प्रेमी होता है। जातक के अपने ज़ीवनसाथी के साथ बहुत अच्छे संबंध होते है और ज़ीवनसाथी मददगार होता है। जातक अध्यापक, वकील, बैंक अधिकारी, धार्मिक कार्य व रहस्यमयी ज्ञानी होता है।
पंचम भाव में बृहस्पति:-
पंचम भाव में बृहस्पति:- ऐसा गुरु जातक को बुद्धिमान, आस्तिक, शिक्षित, ज्योतिष में रुचि, पुराणों व मंत्रों मे रुचि, धार्मिक, समृद्धिशाली और सुशिक्षित बनाता है। यदि गुरु पीड़ित हो तो शिक्षा मे रुकावट, पेट की समस्या व संतान के सम्बन्धों में मधुरता नहीं देता है। बच्चों मे देरी या सुख मे कमी देता है, परंतु उच्च का हो तो परेशानी नही आती। ऐसा गुरु जातक को शेयर के कार्य मे ज्ञान, व्यापारी, कलात्मक, अध्यापक, गणितज्ञ, अर्थव्यवस्था का अध्यापक, धार्मिकता मे व सभ्यता मे विश्वास तथा उच्च शिक्षा के लिए यात्रा करता है। पिता भी उच्च शिक्षित होते है और जातक अपने पेशेवर दोस्तों व सहयोगियों से धन की प्राप्ति करता है।
षष्टम भाव में बृहस्पति:-
षष्टम भाव में बृहस्पति:- षष्टम भाव में स्थित बृहस्पति यहां से दशम भाव को दृष्ट करता है जो सरकारी पद व कार्य क्षेत्र के लिए अच्छा होता है। वह अपने विरोधियों पर नियंत्रण व उनका मददगार होता है। ये किसी का वाद-विवाद हो तो पुरी आशा दिलाते है कि सब ठीक होगा। इनके ज़ीवन साथी नौकरी के क्षेत्र मे होते है और पहली बार ज़ीवन साथी से किसी सामाजिक कार्य मे मुलाकात होती है। ऐसा जातक गलत कानून के लिए लडता है, वह सामाजिक कार्यकर्ता और अपने से नीचे लोगो की मदद भी करता है। इनकी पेट, पाचन शक्ति व लीवर मे कमज़ोरी होती है। बृहस्पति नीच का हो तो जातक झुठा, परिवार से वाद-विवाद करना और अपने ही व्यवहार से नुकसान करने वाला होता है। जातक मे छिपा हुनर, विदेश मे कार्य व धनी बनाता है। निर्बली बृहस्पति मधुमेह, जिगर, लीवर, खून और पाचन तंत्र से सम्बन्धित रोगों की ओर अग्रसर करता है। गुरु संतान एवं धन कारक होने के कारण इनसे कष्ट और परेशानियां तथा मदिरा, परस्त्रियों और लाटरी आदि मे आसक्ति देता है।
सप्तम भाव में बृहस्पति:-
सप्तम भाव में बृहस्पति:- ऐसा गुरु जीवन में उच्च स्तर, स्त्रियों से अत्याधिक आनंद की प्राप्ति, आकर्षक, सुसंस्कृत, उदारहृदय, प्रखर वक्ता, कवि, साहित्य प्रेमी, बुद्धिमान, धनवान, फिलोस्फर, ज़ज़, वकील, पत्रकार, सलाहकार, उपदेशक, कानुनी पेशा और ऊर्जावान बनाता है। जातक के साथ स्नेह रखने वाली सुंदर भार्या और वह पुत्रों से अनुग्रहित होता है। ऐसा जातक शिक्षित, धार्मिक, तुलनात्मक और निष्ठावान जीवन साथी प्राप्त करता है जो जातक के जीवन को प्रसन्न्तायुक्त और समृद्धशाली बनाता है। जातक प्रेमविवाह पसंद नही करता और विवाह के पश्चात उसके जीवन में आर्थिक और सामजिक उत्थान होता है। ऐसा जातक व्यापार में साझेदारी में सफल होता है। गुरु यदि द्वितीयेश अथवा पंचमेश से दृष्ट हो तो जातक भाग्यशाली होता है और जातक के भाई-बहनों से अच्छे रिशते होते है।
अष्टम भाव में बृहस्पति:-
अष्टम भाव में बृहस्पति:- यदि बृहस्पति या शुक्र अथवा दोनों ही अष्टम भाव में हो तो असुर योग बनाते है जिसके परिणाम स्वरूप जातक मिथ्या बोलने वाला, मनगढ़त कहानियां सुनाने वाला, गहरी खोज़ करना, दूसरो के कार्य बिगाड़ने वाला और मात्र स्वहित की सोचने वाला होता है। वह हठी एवं घृणास्पद होगा और अधर्म कार्य करेगा। यदि बृहस्पति नीच अथवा वक्री हो तो यह योग अधिक अशुभ होगा। ऐसा जातक एक दुखी, ऊर्जावान और लम्बी आयु वाला व्यक्ति हो सकता है, क्योंकि अष्टम में स्थित शुभ ग्रह भी लम्बी आयु देता है। ऐसे जातक के पेट में पीडा होती है, लेकिन शांतिपूर्ण मृत्यु पाता है।
नवम भाव में बृहस्पति:--
नवम भाव में बृहस्पति:-- यदि शुभ ग्रहों के साथ हो तो जातक अत्याधिक धनवान और अचल सम्पत्ति वाला होता है। ऐसा जातक धार्मिक, दानी, समझदार व पिता से अच्छे सम्बंध रखता है। बृहस्पति शनि की युति हो तो यह आध्यात्मिक ज़ीवन के लिए अच्छा योग होता है, व जातक सिद्धांतों का पक्का और अपना जीवन उपदेशक के रुप में व्यतीत करता है। ऐसा जातक कानूनी कार्य मे रुचि लेता है और किसी अच्छे पद पर आसीन होता है। ऐसा जातक विदेश घूमने मे बहुत रुचि रखता है और वहा अपनी पहचान भी बनाता है।
दशम भाव में बृहस्पति:-
दशम भाव में बृहस्पति:- ऐसा जातक तेजस्वी, भलाई के कार्य, सम्मानित, दयालु, वाहनों से युक्त, मित्रवान, पुत्रवान, सम्पत्तिवान, यशस्वी, धार्मिक, वेदो का उच्चारण करने वाले ब्राहम्णो के साथ रहता है। बृहस्पति, सूर्य की युति में हो तो जातक सफल, न्याय-प्रयाण, निष्ठावान और पिता के द्वारा सम्पति प्राप्त करने वाला होता है। यदि चन्द्रमा के साथ हो तो माता से, यदि बुध के साथ हो तो मित्रों से, मंगल के साथ हो तो शत्रुओं से और शनि के साथ हो तो नोकरों से धन-सम्पति प्राप्त करता है।
एकादश भाव में बृहस्पति:-
एकादश भाव में बृहस्पति:- ऐसा जातक धनवान, मुखिया, बुद्धिमान, कुलीन, धन-सम्पति वाला, मित्रों वाला, संगीत का आसक्त, धार्मिक, भगवान से डरने वाला, दूसरों पर निर्भर, लेखक, प्रकाशक व दान करने वाला होता है। ऐसा जातक अपनी ही मेहनत से ज्ञान को अर्जित करने वाला होता है और कानून के मामले मे बहुत रुचि रखता है और वकील व जज़ बनने मे रुचि रखता है। ऐसे जातक को धार्मिक कार्य के प्रति भी अच्छी रुचि होती है।
द्वादश भाव में बृहस्पति:-
द्वादश भाव में बृहस्पति:- यदि बृहस्पति उच्च या स्वग्रही हो तो यह आध्यात्मिकता और मोक्ष की उच्च स्थिति को प्राप्त कराने के लिए शुभ होता है। पीडित हो तो अधार्मिक, मध्य आयु तक रतिसुख के प्रति रुझान व आयु के उत्तरार्ध में आध्यात्मिक रुझान हो जाता है। यहां बृहस्पति मोक्ष के लिए तो शुभ है, लेकिन संतान के लिए शुभ नहीं होता है। यदि बृहस्पति सुस्थित न हो तो इसके नकारात्मक गुण, जैसे की धन की बर्बादी, घमंडी होना, कार्य न करना एवं दूसरो से ईर्ष्या करना व यात्राओं में रुचि रखता है।