- "Rahu" in 12 Houses as per Astrology


प्रथम भाव मे राहु:-
प्रथम भाव मे राहु:- राहु शुभ हो तो सम्मान की प्राप्ति, धार्मिक क्रिया-क्लाप से धन प्राप्ति, शिक्षा एवं वैज्ञानिक उपलब्धियां, राज़नीतिज्ञ, पायलट, एस्ट्रोनौट और तुरंत धन कमाने की सोच देता है। ऐसे जातक को समझना बहुत कठिन होता है, हकीकत कुछ होती है और दिखाते कुछ है, भ्रम मे रखने वाले, रहस्मय प्रवृति और खोज़ी होते है। जातक की ज़िंदगी मे उतार-चढाव आते रहते है। वह कुछ न कुछ सोचते रहते है और अपने पिछले ज़न्म का कोई अधुरा कार्य पुरा करने आते है। ये दूसरी की बातों को लेकर भ्रमित रहते है और खुद ही सवालों के ज़वाब बना लेते है, कभी कभी इनको पता भी नही चलता की कब कैसे ज़वाब देना है और हवा मे ही ख्याली पुलाव बनाते रहते है। अपने सिद्धांतों के पक्के होते है और इनके विवाहित ज़ीवन मे वाद-विवाद बना रहता है।
राहु का दूसरे भाव में फल:-
राहु का दूसरे भाव में फल:- ऐसे जातक के पास सम्पत्ति होने के बाद भी असंतुष्टि, व्यर्थ का धन खर्च, झूठा, कठिन परिश्रमी, अपवित्र व भ्रमित वाणी एवं नाक-गले की समस्याओं से पीड़ित रहता है। ऐसे जातक की चाहत होती है, कि तुरंत कही से भी धन मिल जाए। जातक के पास इतना धन नही होता जितना दिखावा करता है या लोग समझते है। ऐसे लोग किसी के घर का और कही भी भोज़न कर लेते है। ये अपने को हमेशा शाही दिखाना चाहते है। इनका परिवार से अलगाव रहता है और शुरुवाती शिक्षा मे रुकावट आती है। इन्हें किसी गुप्त विद्धा का ज्ञान भी अवशय होता है।
तृतीय भाव में राहु:-
तृतीय भाव में राहु:- जातक अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा या छोटा, साहसी, भाग्यशाली एवं धनवान व्यक्ति, मित्रो से युक्त, यात्राएं, पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध, लेखन अथवा प्रकाशन में सफलता देता है। उच्च राशि अथवा स्वग्रही राहु अनुकूल परिणाम देता है। सिंहस्थ राहु प्रभावशाली व्यक्तित्त्व को इंगित करता है। ऐसा राहु किसी से डरता नही है और अपने ही साहस से मुकाबला करने वाला होता है। वह यात्राओ मे बहुत रुचि रखने वाला होता है और उसका एक स्थान मे अधिक देर तक मन नही लगता है।
चतुर्थ भाव में राहु:-
चतुर्थ भाव में राहु:- ऐसा जातक मूर्ख, धोखेबाज़, छल-कपटी, माता व घर से अलगाव, प्रारम्भिक शिक्षा में विघ्न व स्त्रियों की कुंडली में वैवाहिक जीवन में असंतोष देता है और संसारिक भोग-विलास की इच्छाएं जाग्रत करता है। जातक की माता सौतेली भी हो सकती है या जातक अपने घर से दूर रहता है, उसका विदेशी भूमि मे अधिक लगाव होता है। ऐसा जातक को गुप्त विधा और खोज़ मे रुचि होती है। ऐसे जातक के जीवन मे संतुष्टि कम होती है जिससे वह भ्रमित और तनाव ग्रसित जीवन यापन करता है।
पंचम भाव में राहु:-
पंचम भाव में राहु:- ऐसे जातक की बुद्धि भ्रमित व वाचाल, अति-आत्मविशवासी, पेट व ह्रदय का रोग, अधूरी या विदेश मे शिक्षा और यदि शुभ ग्रहो से दृष्ट न हो तो संतानहीनता या संतान से दूरी देता है। ऐसा जातक धन कमाने का छोटा रास्ता देखता है और अपनी एक पहचान बनाता है। जातक की अपने बच्चों से बहुत अभिलाषा रहती है और बच्चे न होने पर गोद लेते है। जातक विपरीत लिंगी मे मशहुर होता है व भ्रमित व्यक्तित्व का होता है। जनता मे खुद को ऊपर रखना चाहता है और अच्छा कलाकार होता है। जातक नियमों को तोडता है व लोगो से लाभ कमाना चाहता है।
षष्टम भाव में राहु:-
षष्टम भाव में राहु:- षष्टम भाव का राहु सभी शत्रुओं का नाश कर देता है। जातक का बल, साहस, दूसरों को प्रेरणा देने वाला, आकर्षक, बुद्धिमान, सम्मानित एवं शासक की तरह अपनी पहचान बनाने वाला होता है और विदेश गमन भी करता है। राहु यहां धन, संतति, सौभाग्य और हर प्रकार के सुख को इंगित करता है। यदि उच्च का हो तो जातक परेशानियों से मुक्त, बलशाली और शूरवीर होता है। यदि शुभ ग्रहों के साथ हो तो सरकार की अनुकम्पा, रोगो से दूरी, डाक्टर, वकील, बैंक मैंनेज़र, धन-सम्पति, सहनशीलता, समृद्धि, लम्बी उम्र और पारिवारिक खुशियां देता है। जातक बहुत पैसा कमाना चाहता है और नशे का कार्य करता है जिसमे कोई भी कानू तोडना पडे तो वह पीछे नही हटता। ऐसा जातक विवाह मे हो रहे वाद-विवाद का वकील होता है। राहु पीड़ित हो तो दांतो या होठों से सम्बन्धित रोग और सेना या नौसेना की नौकरी से भय देता है।
सप्तम भाव में राहु:-
सप्तम भाव में राहु:- ऐसे जातक का सगे-सम्बन्धियों से वियोग होता है तथा जातक क्रोधी, आलसी, अस्त-व्यस्त रहना और व्यर्थ में भटकने वाला होता है। ऐसा जातक जीवनसाथी से अलगाव व कष्ट पाता है। कई बार जातक निराशावादी, कामासक्त, अहंकारी, रोगी और दूसरों की स्त्रियों में आसक्ति रखने वाला होता है। स्त्रियों की कुंडली में सप्तम का राहु मासिकधर्म सम्बन्धित परेशानियां देता है। जातक विदेश से जुडा व्यापार करता है। वह अपनी जाति से बाहर विवाह और उसका ज़ीवन साथी बहुत मांग करने वाला होता है। राहु बहुत समझदार सैल्समैंन बनाता है जिससे जातक को अपने साझेदार से सावधान रहना सिखाता है। वह वकील होने पर बहुत धन अर्ज़ित करता है और कोर्ट-केस मे अपने विपक्ष से जीत हासिल करता है। ऐसा जातक बहुत दिखावा करता है और एक साथी की हमेशा प्यास बनी ही रहती है जिससे उसके बहुत से नाज़ायज़ संबंध भी होते है।
अष्टम भाव में राहु:-
अष्टम भाव में राहु:- राहु यहां क्रोधी, कूटनीति, चालाक, दूषित भाषा, तीखे शब्द, विदेश यात्रा, सरकार से सम्पति प्राप्त कराता है, परंतु धन को संग्रहित नही कर पाता। जातक को गहरा ज्ञान, तांत्रिक सिद्धि, दवाईयां, सर्ज़न, गुप्त धन और जातक अपने ज़ीवन साथी की सम्पत्ति पर कब्ज़ा करना चाहता है और ससुराल में अपना दिखावा दिखाता है। राहु के यहां होने से अपने परिवार से बहुत लगाव होता है परंतु प्रेम न मिल पाने पर अलगाव महसूस करता है। जातक को बात करते हुए पता ही नही चलता की वह क्या बोल रहा है और कभी कभी तो बिना सोचे समझे बोलता है।
नवम भाव में राहु:-
नवम भाव में राहु:- राहु यहां दोष निकालने वाली एवं अहंकारी भार्या और जातक को कृपण, असभ्य, चरित्रहीन बनाता है। ऐसे जातक की अपने पिता से अधिक नही बनती, भगवान एवं धर्म की निंदा करने वाला होता है। यधपि ऐसा जातक धनवान और प्रसिद्ध होता है, लेकिन पारिवारिक खुशियों की कमी रहती है। वह व्यभिचारी होता है और माता पिता से क्रूर व्यवहार करता है। नवम भाव का राहु जातक को विदेशी भाषा में प्रवीणता देता है। अंग्रेजी के कई अध्यापको की कुंडली में नवम भाव में बली शनि और राहु होते है। ये अंग्रेजी साहित्य में सम्पन्न होते है। जातक सब कुछ जल्दी मे ही चाहता है और अपनी शिक्षा मे पहले अंक मे आना चाहता है। हमेशा कुछ न कुछ सीखना चाहता है। वह धार्मिक नेता, अपने ही सिद्धांतों पर चलना, अपनी सीमा से बाहर चलना, पिता की बात न मानना, लम्बी यात्रा, आध्यात्मिकता की तलाश, भ्रमित रहना, अपने नियम बनाना, कानून तोडना, अपने भाई-बहनों पर दबदबा रखना और बच्चों के साथ अहम मे बात करते है।
दशम भाव में राहु:-
दशम भाव में राहु:- ऐसा जातक अचल सम्पत्ति, स्त्रियों मे आनंद लेने वाला, नशा करने वाला तथा विदेशियों के साथ रहने वाला होता है। राहु मीन राशि में हो तो जातक कामातुर, अतिव्ययी और शत्रुओं को मृत्यु देने वाला होता है। ऐसे जातक की वाणी, अभद्र और झूठी होती है। राहु के यहां होने से घर मे परेशानी बनी रहती है। जातक जीवन मे ऊँचा उठना, राष्ट्रपति बनना, शक्तिशाली व्यक्तितत्व, पिता से अलगाव, राज़नितिज्ञ, दूसरों पर दबदबा, चालाक, प्रतिभाशाली, अपने कार्य-स्थल मे नेतृत्व, अभिनेता, संगीतकार, लोगो का प्रशंसक और कुशल व्यवसायी होता है।
एकादश भाव में राहु:-
एकादश भाव में राहु:- ऐसा जातक प्रसिद्ध, धन-सम्पत्तिवान, शिक्षित, सशस्त्र सेनाओं का प्रमुख, विदेशो से धन-सम्पति अर्जित करना व निम्न वर्ग का नेता होता है। जातक कही से भी बहुत धन-सम्पत्ति कमाना चाहता है और उसको बहुत से लोग जानने वाले भी होते है। वह शेयर मार्किट और कलात्मक कार्य से भी धन एकत्र करते है और व्यवसाय मे एक नामी व्यक्ति होता है जो बहुत समझदारी वाली चालाकी से मौद्रिक लाभ कमाता है। ऐसे लोग बहुत जल्दी आकृषित करते है और सोचते है इनके पास बहुत धन है। जातक भी यही चाहता है कि सब उसको जाने और एक ऊँची पहचान बने। इनके पास विवाह के उपरांत अधिक धन आता है। राहु के यहां होने से कर्ण पीडा, पेट का रोग और पैरों मे दर्द होता है।
द्वादश भाव में राहु:-
द्वादश भाव में राहु:- ऐसा जातक आर्थिक रूप से सम्पन्न, आध्यात्मिक, मददगार, अनैतिक कार्य, आँखों, पैर का रोग, भ्रमित तथा धूर्त लोगो की संगत का आसक्त बनाता है। यदि राहु, शनि द्वारा दृष्ट हो या शनि से केंद्र में हो तो कारावास का योग बनता है। जातक अंर्तराष्ट्रीय स्तर मे कार्य या आयात-निर्यात का व्यवसाय करता है। वह माता के प्रेम से वंचित रहता है। जातक मे तीव्र कल्पना शक्ति, दवाई का व्यवसाय, अस्पताल मे कार्य और शत्रुओं पर अधिक काबु रहता है। ऐसा जातक खर्चे करने मे माहिर होता है और बिना सोचे समझे विदेश यात्रा करने मे रुचि रखता है।

Planets In 12 Houses as per Astrology


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Rahu & Ketu In 12 Houses as per Astrology


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