कर्ण रोग तथा वाणी विकार
चिकित्सा ज्योतिष मे ग्रहों और भावों के माध्यम से हम पहचान पाते हैं, कि हमारी कुंडली मे कानों या वाणी मे कोई कमज़ोरी या परेशानी तो नही आने वाली अगर आने वाली हैं, तो कितनी ज्यादा बीमारी के साथ समय बिताना होगा। हम नीचे कुछ योगों के माध्यम से जान सकते हैं।
ग्रहों मे कान की बीमारी के लिए, सुनने तथा किसी भी प्रकार का संचार का कार्य बुध करता हैं। मज़बूत बुध शुभ ग्रहों के प्रभाव में अच्छी श्रवण शक्ति देता हैं। वही बुध पीड़ित हो तो विपरीत फल होते हैं।
भावों मे तीसरा भाव- कुंडली में तीसरा भाव या तृतीयेश पर शुभ प्रभाव हो तो अच्छी श्रवण शक्ति होती हैं।
ग्यारहवां भाव- तीसरा भाव/भावेश दांया कान एवं एकादश भाव/भावेश बांया कान को दिखाते हैं। बुध और तीसरे भाव/भावेश और एकादश भाव/भावेश पर शुभ तथा अशुभ प्रभावों के अनुसार ही कान की श्रवण शक्ति के बारे मे पता चलता हैं। Click here to know about houses in astrology
दोषपूर्ण वाणी के ज्योतिषीय योग- ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथो के अनुसार गूंगेपन के योग इस प्रकार से हैं।
बुध षष्टेश होकर मूक राशि (कर्क, वृश्चिक तथा मीन) में हो तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो वाणी मे दोष होता हैं क्योंकि बुध वाणी का भी कारक हैं तथा श्रवण शक्ति का भी कारक हैं।
बुध षष्टेश होकर लग्न में हो तथा पाप ग्रहों से प्रभावित हो। अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें सम्पर्क करें।
बुध नवें भाव में हो तथा शुक्र दसवें भाव में हो तो इस योग से हकलाने का दोष होता हैं।
कर्क, वृश्चिक या मीन इन मूक राशियों में पापग्रह हो और चन्द्रमा वृष में अंतिम अंशों मे हो और पाप दृष्ट हो तब भी वाणी दोष होता हैं। लेकिन जब उक्त योग में चन्द्रमा को शुभ ग्रह देखते हैं तो जातक देर से बोलना शुरू करता हैं।
द्वितीयेश गुरु के साथ आठवें भाव में हो क्योंकि जब द्वितीयेश गुरु के साथ अष्टम भाव में चतुर्थेश के साथ हो तो जातक की माता गूंगी होती हैं। जब द्वितीयेश गुरु के साथ अष्टम भाव में नवमेश के साथ हो तो जातक का पिता गूंगा होता हैं। पूर्ण चंद्र, लग्न में मंगल से युक्त हो क्योंकि बली मंगल, बुध और चंद्र इकट्ठे हो या एक दूसरे को देखते हो तो जातक प्रखर वक्ता होता हैं।
ग्रहों मे वाणी का कारक बुध छठे, आंठवें या बारहवें भाव में शनि के द्वारा दृष्ट हो तो वाणी मे परेशानी आती हैं। कोई भी सवाल! जवाब के लिए अभी बात करे!
जन्म से मूक बधिर बच्चे के ज्योतिषीय नियम:
यह कटुसत्य हैं की जो बच्चे जन्म से ही बहरे पैदा होते हैं उनमे वाणी द्वारा भावों को व्यक्त करने की समस्या पाई जाती हैं। यदि इस दृष्टिकोण से उनका विशेष ध्यान न रखा जाये तो वे कभी बोल नहीं सकते और ना ही अपने भावों को व्यक्त कर सकते हैं। प्राय: बालपन में बहरेपन को शीघ्र न जान पाने के कारण उचित आयु में वाक-चिकित्सा सुनिश्चित नहीं हो पाती। नवजात शिशुओं में श्रवण दोष तथा परिणाम वाक-दोष का पता लगाने के लिए निम्नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण रोचक तथा उपयोगी हैं।
हृदय रोग:
आज के तेज़ी से बदलते समय मे और कार्य के बोझ के साथ मानसिक तनाव की भी समय के साथ वृद्धि हो रही हैं, हम अब समय देखकर काम नही करते खुद को एक मशीन बना रखा हैं, जिससे बीमारी अब उम्र देख कर नही आती क्योंकि आजकल के वक्त बेवक्त के गलत खान-पान की वज़ह से भी कैलोरी और कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ने से ह्रदय की रक्त धमनियां मे वसा की वज़ह से रुकावट होने से ह्रदय की बीमारी बढ़ रही हैं। आज के समय मे कोई किसी की बात को सहन भी नही करता हैं और ज़रा सी बात पर क्रोध भी आजाता हैं, जिससे भी खून भी गरम होने से ह्रदय की धमनियों पर असर आता हैं।
वैदिक ज्योतिष मेंं हृदय के रोगों को हम कुंडली के निम्नलिखित भाव/भावेश और ग्रहों से समझ सकते हैं।
ग्रह: सूर्य- सूर्य हृदय का कारक ग्रह हैं। जब सूर्य पर अधिक पाप प्रभाव हो तथा अन्य प्रतिकूल प्रभावों के होते हुए साथ मे उपयुक्त दशा हृदय रोग की सूचक हो सकती हैं।
राशि: सिंह राशि- सिंह राशि कालपुरुष के हृदय को सूचित करती हैं। इसका पीड़ित होना हृदय के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव ड़ालता हैं।
भाव: पंचम भाव- जिस प्रकार भचक्र की पंचम राशि सिंह कालपुरुष के हृदय को सूचित करती हैं, उसी प्रकार पांचवा भाव भी जातक के हृदय का सूचक होता हैं। हृदय रोग होने के लिए पंचम/पंचमेश पर पाप का प्रभाव का होना आवश्यक हैं।
चौथा भाव: चौथा भाव जातक के वक्षस्थल को इंगित करता हैं। ह्रदय रोग की वक्षस्थल से जुड़ी जटिलताएं तथा हृदय रोग के शल्य उपचार जिसमें वक्षस्थल को खोलना आवश्यक होता हैं, वहां चौथे भाव से लेना चाहिए।
जन्मपत्रिका में हृदय रोग को जानने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को अवश्य देखना चाहिए ।
विभिन्न रोगो के योग:
एकादशेश षष्ट भाव में हो तो विविध रोग देता हैं।
शनि और मंगल छठे भाव में राहु व सूर्य से दृष्ट हो तो दीर्घस्थाई रोग देते हैं।
राहु या केतु सप्तम भाव में या शनि अष्टम भाव में हो और चंद्र लग्न में हो तो अजीर्ण होता हैं।
गुरु तथा राहु लग्न में दंत रोग देते हैं।
षष्टेश तृतीय भाव में हो तो उदर रोग देता हैं।
शनि षष्ट या अष्टम भाव में पैरों में कष्ट देता हैं।
राहु या केतु षष्ट भाव में हो तो दंत या ओष्ठ रोग होता हैं।
लग्नेश मंगल या बुध की राशि में हो तथा शत्रु से दृष्ट हो तो गुदा क्षेत्र में रोग होता हैं।
कर्क या वृश्चिक नवांश में चन्द्रमा पाप युक्त हो तो गुप्त रोग होता हैं। गुप्त रोग का अर्थ वह रोग हो सकता हैं जिसे व्यक्ति अन्य लोगों से छुपाता हैं या यौन सम्बन्धों से हुआ रोग हो सकता हैं।
मंगल बुध तथा लग्नेश एक-साथ सिंह राशि में चतुर्थ या द्वादश भाव में हो तो गुदा या गुदा क्षेत्र में रोग हो सकता हैं।
अष्टम भाव में पाप ग्रह गुप्त रोग देता हैं और द्वादश भाव में गुरु का भी यही फल होता हैं।
बुध षष्ठेश तथा मंगल इकट्ठे हो तो जननांग में रोग होता हैं।
अष्टमेश अष्टम भाव में हो तो शरीर रोगोन्मुख होता हैं।
+91-770-1950-631