वैदिक ज्योतिष में लग्न का विशेष महत्व
वैदिक ज्योतिष में जन्म लग्न कुण्डली का विशेष महत्व हैं। जातक के जन्म के समय पूर्व क्षितिज़ में जो राशि उदित होती हैं। उसे लग्न (प्रथम भाव) मुख्य भाव कहा जाता हैं। लग्न जातक का प्रारंभिक समय हैं। जातक जन्म लेने से अंत तक अपने कर्मों को भोगता हैं और नये कर्मों का निर्माण करता हैं।
प्रथम भाव से जातक का शरीर, स्वास्थ्य, सुन्दरता, वर्ण, आकृति रूप, चिन्ह, मस्तिष्क, स्वभाव, मानसिक स्थिति, यौवन, आचरण, सुख-दु:ख, आयु, व्यक्तित्व, प्रतिष्ठा, आत्मबल, मानसम्मान, यश, प्रारव्ध, जिज्ञासा, प्रवास, तेज, आचार-विचार, विवेक, ज्ञान-अज्ञानता आदि का विचार किया जाता हैं। अन्य सवालों के जवाब के लिए यहां क्लिक करें।
लग्न भाव जातक का शरीर और शरीर के अंग हैं। यदि शरीर स्वस्थ, ऊर्जावान, शक्तिवान होगा तभी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से धन, वैभव, यश, मानसम्मान का सुख प्राप्त कर सकता हैं। यदि जातक का शरीर अस्वस्थ, बलहीन, कमज़ोर हैं तो जातक सुख, वैभव आदि उपभोग नही कर सकता इसलिये सर्वप्रथम लग्न से शरीर, स्वास्थ्य, सुन्दरता, वर्ण, आकृति, रूप, मानसिक स्थिति आदि पर विचार करते हैं।
लग्न भाव में शुभ ग्रह हो व लग्नेश बलवान होकर त्रिकोण में हो या लग्न पर गुरु की दृष्टि हो जातक का शरीर स्वस्थ्य, सुन्दर और हष्टपुष्ट होता हैं।
अगर कर्क लग्न में चन्द्र-गुरू एक साथ हो तब जातक स्वस्थ्य, सुन्दर व बुद्धिमान होता हैं। कोई भी सवाल! जवाब के लिए अभी बात करे!
लग्नेश, लग्न में शुभ ग्रहों से युक्त हो तो जातक, सुन्दर, स्वस्थ और अच्छे विचारों वाला होता हैं।
चन्द्रमा बली होकर लग्न में हो तो जातक, सुन्दर, ज्ञानी और मानसिक रुप से मज़बूत होता हैं।
लग्नेश, एकादश भाव में शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो और लग्न पर भी शुभ ग्रह का प्रभाव हो जातक, निरोगी व सुखी होता हैं। अपनी हेल्थ रिपोर्ट मंगवानें के लिए सम्पर्क करें।
लग्नेश अपने नवांश या उच्च नवांश में हो और केन्द्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह के साथ हो तो जातक को शरीर से अच्छा सुख प्राप्त होता हैं।
लग्नेश 6, 8 या 12 भावों में और लग्न में पापी ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक रोगी और कष्ट में रहता हैं।
लग्न में शनि, राहु युक्त हो तथा सूर्य की दृष्टि हो जातक को मस्तिष्क रोग और नेत्र रोग भी होता हैं ।
लग्नेश व षष्ठेश साथ हो और शनि की दृष्टि हो तो जातक को गुप्तरोग या मूत्र रोगी होता हैं।
लग्न में मंगल पाप प्रभाव में हो तो जातक को सिर में रोग होता हैं।
कर्क लग्न में पापी ग्रहों की युति हो चन्द्रमा निर्बल हो तो जातक मानसिक रोगी होता हैं ।
लग्न में शनि चन्द्र का योग हो व लग्नेश षष्ठं भाव में हो तो जातक का शरीर कमजोर होता हैं और मानसिक रोग से ग्रस्ति होता हैं।
लग्नेश-अष्टमेश के साथ हो तथा कुंडली के पहले घर में राहु हो तो जातक अस्वस्थ व विचारहीन होता हैं।
लग्न से जातक का व्यक्तिव देखा जाता हैं उसका समाज में क्या प्रभाव हैं उसका यश, मान सम्मान, आचरण आदि का विचार कुंडली के लग्न से करना चाहिये बिना व्यक्तिव के जीवन में प्रतिष्ठा नही मिलती समाज में कई महान व्यक्तिव के धनी हुये हैं जैसे विवेकानंद, महात्मा गांधी, रामकृष्ण परमहंस, शंकराचार्य आदि महापुरूष जिन्होने महान विचारों से प्रतिष्ठा व यश की प्राप्ति की हैं।
लग्नेश चतुर्थ भाव में उच्च या स्वराशि होकर बैठा हो तो जातक प्रसिद्ध होता हैं।
लग्न में तुला का गुरू हो व लग्नेश चतुर्थ भाव में चन्द्र के प्रभाव में हो तो जातक धनी होता हैं।
जन्म पत्रिका के प्रथम भाव में उच्च का मंगल या उच्च का मंगल लग्नेश हो कर दशम भाव में हो तो जातक वीर होता हैं और अपनी वीरता के बल से प्रसिद्ध होता हैं।
लग्न में शुभ ग्रह की दृष्टि हो तथा लग्नेश व नवमेश एक साथ त्रिकोण में हो तथा गुरू की दृष्टि हो तो जातक अपने बल पर प्रतिष्ठा प्राप्त करता हैं।
लग्न में गुरू, चन्द्र या शनि एक साथ हो और लग्नेश नवम में हो तथा चतुर्थेश व पंचमेश से दृष्टि हो तो जातक संत बनता हैं।
कुंडली के पहले घर में पंचमेश व लग्नेश एक साथ हो शुभ ग्रह गुरू की दृष्टि से व और भाग्येश के साथ चन्द्रमा, शनि हो तो जातक संत बनकर अपने महान विचारों से प्रसिद्ध होता हैं ।
बुध शुक्र लग्न में और गुरू की दृष्टि हो तो जातक अपने कला के बल से प्रसिद्ध प्राप्त करता हैं ।
मीन लग्न में गुरू, बुध और शुक्र एक साथ हो तो जातक अपने महान विचार से नाम प्राप्त करता हैं।
लग्न में उच्च का सूर्य हो तथा लग्नेश मंगल दशम में हो तो जातक देश का प्रधानमंत्री या मंत्री होकर महान प्रतिभावान होता हैं। उच्च का चन्द्रमा जन्म कुंडली के प्रथम भाव में तथा लग्नेश एकादश भाव में गुरू के साथ हो तो जातक अपनी वाणी व कला से प्रतिष्ठा प्राप्त करता।
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