हृदय रोग का ज्योतिष संबंध: Heart Rog
दिल की बीमारी- आज के तेज़ी से बदलते समय में और कार्य के बोझ के साथ मानसिक तनाव की भी समय के साथ वृद्धि हो रही हैं, हम अब समय देखकर काम नहीं करते खुद को एक मशीन बना रखा हैं, जिससे बीमारी अब उम्र देख कर नहीं आती क्योंकि आजकल के वक्त-बेवक्त के गलत खान-पान की वज़ह से भी कैलोरी और कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ने से ह्रदय की रक्त धमनियां में वसा की वज़ह से रुकावट होने से ह्रदय की बीमारी बढ़ रही हैं। आज के समय में कोई किसी की बात को सहन भी नहीं करता हैं और ज़रा सी बात पर क्रोध भी आजाता हैं, जिससे भी खून भी गरम होने से ह्रदय की धमनियों पर असर आता हैं।
वैदिक ज्योतिष में हृदय के रोगों को हम कुंडली के निम्नलिखित भाव/भावेश और ग्रहों से समझ सकते हैं।
ग्रह: सूर्य- सूर्य हृदय का कारक ग्रह हैं। जब सूर्य पर अधिक पाप प्रभाव हो तथा अन्य प्रतिकूल प्रभावों के होते हुए साथ में उपयुक्त दशा हृदय रोग की सूचक हो सकती हैं।
राशि: सिंह राशि- सिंह राशि कालपुरुष के हृदय को सूचित करती हैं। इसका पीड़ित होना हृदय के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव ड़ालता हैं।
भाव: पंचव भाव- जिस प्रकार भचक्र की पंचम राशि सिंह कालपुरुष के हृदय को सूचित करती हैं उसी प्रकार पांचवा भाव भी जातक के हृदय का सूचक होता हैं। हृदय रोग होने के लिए पंचम/पंचमेश पर पाप का प्रभाव का होना आवश्यक हैं। अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें सम्पर्क करें।
चौथा भाव: चौथा भाव जातक के वक्षस्थल को इंगित करता हैं। ह्रदय रोग की वक्षस्थल से जुड़ी जटिलताएं तथा हृदय रोग के शल्य उपचार जिसमें वक्षस्थल को खोलना आवश्यक होता हैं वहां चौथे भाव से लेना चाहिए।
जन्मपत्रिका में हृदय रोग को जानने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को अवश्य देखना चाहिए।
मधुमह/शुगर:
आज के बढ़ते युग में जहां खान-पान बहुत ही खराब हो चुका हैं, दिन रात में लोग कुछ भी खाने पीने में परहेज़ नहीं करते हैं और ना ही किसके साथ क्या खाने में बीमारी हो सकती हैं उसका भी ध्यान नहीं रखते। जिससे बहुत सी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं क्योंकि अब उम्र देख कर बीमारी नहीं आती हैं। आज के समय में मीठा खाने के सभी शौकीन हैं और मीठे के साथ दूसरी बहुत सी खाने की वस्तुओं में शर्करा होता हैं जिससे अगर हमारा यकृत और अग्नाशय इसे न सम्भाल सके तो हम मधुमेह के शिकार हो जाते हैं। चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों और भावों के माध्यम से हम जान सकते हैं कि किन योगों से हम मधुमेह को पहचान कर उसका सही समय में निदान कर पाये।
भाव: पंचम भाव: हमारे शरीर में यकृत शक्कर का पाचन करता हैं और अग्नाशय इन्सुलिन का उत्पादन करता हैं। यह दोनों उदर के ऊपरी भाग में स्थित हैं और यह पंचम भाव के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
ग्रह: गुरु ग्रह: यकृत तथा अग्न्याशय के भाग का कारक ग्रह गुरु हैं। शेष अग्न्याशय का कारक शुक्र हैं। शुक्र शरीर की हारमोन प्रणाली का भी कारक हैं। अत: इस प्रकार मधुमय के लिए गुरु व शुक्र तथा पंचम भाव की विशेष भूमिका रहती हैं। Click here to know about houses in astrology
यधपि यह सभी यकृत के रोगों के योग भी लगभग एकसमान ही होंगे परन्तु उनमें शुक्र की विशेष भूमिका को मधुमेह के लिए समझ सकते हैं।
मधुमह के योग: ज्योतिष सीखें!
मधुमह के लिए निम्नलिखित योग हैं- गुरु नीच राशि या आंठवें या बारहवें भाव में हो या शनि तथा राहु दोनो गुरु के साथ संबंध बनाये अथवा अस्त गुरु, राहु-केतु अक्ष पर हो।
शुक्र छठे भाव में हो और गुरु के द्वारा द्वादश भाव से संबंध बनाये।
पंचमेश 6, 8, 12 भावो से संबंध बनाये और वक्री गुरु त्रिकभाव में पीड़ित हो। अन्य योगों को जाननें के लिए यहां देखें।
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