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Vaastu Directions

वास्तु और दिशायें

एक भवन का निर्माण करते हुए हमारा सबसे पहले ध्यान दिशाओं की ओर जाता हैं, कि किस ओर कौनसी दिशा हैं और वह किस कार्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। एक भवन भी इंसान की तरह ही सास लेता हैं। जिस तरह ज्योतिष में दशायों के माध्यम से फलित करते हैं, उसी प्रकार वास्तु में दिशाओं को वास्तु के लिए मुख्य रुप से देखा जाता हैं। सभी दिशाओं का अपना विशेष महत्व और गुण-धर्म निर्धारित किया गया हैं।

ईशान दिशा- उत्तर-पूर्व की यह दिशा मुख्य रुप से शुभ मानी जाती हैं, इस दिशा का स्वामी बृहस्पति ग्रह हैं। यहां वास्तु पुरुष का मुख होता हैं। यहां सात्त्विक ऊर्जाएं होती हैं। सर्वप्रथम सूर्य यही से उदय होता हैं, जो ऊपर आने पर पूर्व से निकलता दिखाई देता हैं। सूर्योदय के समय यहां अनंत पराबैंगनी किरणों का आगमन होता हैं। यह दिशा योग, पूजा-पाठ, ध्यान, धार्मिक ग्रंथ और आध्यात्मिक कार्य के लिए सबसे उत्तम मानी जाती हैं। इस दिशा में सबसे कम भार होना होना चाहिए और इसी दिशा में ही ढ़लान होनी चाहिए। ईशान को सबसे अधिक खुला व साफ रखना चाहिए। पृथ्वी उत्तर से लगभग 23.5 कोण पर झुकी हुई हैं और पृथ्वी के भार का बड़ा भाग उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं, इसलिए यहां हल्का सामान रखना चाहिए। इसी झुकाव के कारण ईशान से ब्रह्मांड़ीय ऊर्जा मिलती हैं।              Click here for other Vaastu Articles

इसी स्थान को पानी, बोरिंग और खुदाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। ईशान में बढ़ा भुखंड़ भी इस दिशा में ढ़लान होने के समान शुभ माना जाता हैं। यहां कटाव, कूड़ा, बंद होना अशुभ होता हैं। यहां कटाव होना यानि वास्तु पुरुष का सिर कटा होना हैं। ईशान में कटाव होने का कारण जातक को अपना चेहरा छुपाने के लिए बाध्य होना पड़ता हैं और संवादहीनता के कारण घर में झगड़ा बना रहता हैं, भाई-बहनों से रिशता मधुर नहीं रह पाता और साहस की भी कमी बनी रहती हैं। साथ ही जातक को आंख नाक, कान और गले की समस्या बनी रहती हैं क्योंकि ज्योतिष में यह कुंड़ली का दूसरा व तीसरा भाव होता हैं।

यहां दोष होने से स्वास्थय सम्बंधित परेशानी आती हैं जैसे माईग्रेन, दिमाग भ्रमित, ब्रेन हेमरेज़, गलत निर्णय और अवसाद रहता हैं। कर्ज़ लेने व देने में परेशानी होती हैं और धन का नुकसान होता हैं। परिवार में आपस में गलत-फहमी की वज़ह से झगड़ा रहता हैं। यहां ऑफिस गेट होने से बिज़ली से जुड़ी परेशानी होती हैं। यहां दरवाजा होने से आग, नुकसान और दुर्घटनाओं होती हैं। यहां रसोई होने से गुस्सा, निराशा और मानसिक उलझन रहती हैं। यहां स्टोर होने से दिमाग बंद हो जाता हैं। यहा शौचालय होने से मानसिक दोष होता हैं। यहां ज्यादा बैठने से जिंदगी में उदासीनता रहती हैं।           

यहां बड़े-बड़े पेड़ न हो केवल छोट-छोटे रंग-बिरंगे फूलों वाले पौधे ही यहां शुभ माने जाते हैं। तुलसी, पुदिना, हल्दी, धनिया आदि के पौधे और कोई आयुर्वेदिक पौधे भी इसी जगह लगाये जा सकते हैं। इस दिशा में अपने गुरु और आदर्श व्यक्ति की तस्वीर लगा सकते हैं।              Ask any Question

ईशान में होने वाले दोष व दोषो के लिए उपाय:-

अगर ईशान में शौचालय हैं तो तीन कांस्य के कटोरे ऊपरी हिस्से में रखे। समुद्री नमक का कटोरा रखे। दरवाज़ा हमेशा बंद रखे। 

यहां रसोईघर होने से गैस स्टोव के ठीक ऊपर कांस्य के कटोरा किसी स्लैब पर रखे।

यहां ऑवर हैंड़ टैकं हो या सीढियां हो तो दो ताम्बे के कछुयें एक-दूसरे की ओर मुख करके सबसे नीचे के स्टेप पर रखे।      

ईशान क्षेत्र उत्तरी पूर्वी दीवार कटी हो तो दीवार पर एक दर्पण लगाये। 

अगर आपके घर में कामचोर या आलसी लोग हो तो यहां सुबह-सुबह के सूर्य के साथ उड़ते हुए पक्षियों का चित्र लगाये।

बर्फ से ढ़के कैलाश में महादेवजी की ध्यान मग्न मुद्रा में बैठे हुए एक चित्र लगाये जिसमें उनकी जटा से गंगा जल निकल रहा हैं।    Learn Vaastu and Astrology 

पूर्व- यह सूर्य की दिशा हैं जो सभी ग्रहों का राजा हैं। यहां के दिकपाल देवता इंद्र हैं जो देवताओं के राजा हैं। इस दिशा में बना मार्ग सबसे श्रेष्ठ माना जाता हैं। कोई भी नया कार्य करते हुए पूर्व दिशा में मुख कर बैठने से ऊर्जा व नये प्राणशक्ति का संचार होता हैं। सूर्योंदय के साथ ही नये दिन का आरम्भ होता हैं, जिससे इस दिशा को नव कार्य के प्रारम्भ करने की दिशा कहा जाता हैं। इस दिशा में स्नानघर बनाना शुभ माना जाता हैं, लेकिन यहां शौचालय नहीं होना चाहिए। इस दिशा में तरण ताल, अध्ययन कक्ष, भोजन कक्ष, बैठक, बच्चों का कमरा और रसोईघर बनाने के लिए उत्तम रहेगा। इस दिशा को भी हल्का रखना चाहिए और ये दिशा बड़ी हुई ही शुभ हैं क्योंकि सूर्य की प्रात:काल की किरणे यही अधिक देर तक रहती हैं। यह एक प्रकाशित क्षेत्र हैं, जो ईशान और आग्नेय के मध्य स्थित हैं, जो तमस व रज़स गुणो के बराबर अनुपात में हैं।    

वैदिक ज्योतिष में सूर्य सिंह का स्वामी और मेष में उच्च का माना जाता हैं। प्रथम भाव को पूर्व दिशा का स्वामी कहा जाता हैं जो सिर और मस्तिष्क से जुड़ा हैं। पूर्व दिशा का कटा होना, ऊंचा या बंद होना आपके दिल और दिमाग के कार्य को कमज़ोर बनाता हैं। सिरदर्द, गंजापन, कमज़ोर आंखे, पीलिया, बवासीर, पेट का अल्सर और हड्डियों की समस्या भी तभी होती हैं। सूर्य सत्ता का कारक हैं, जिससे ये दिशा खराब हो तो राज़नीति में समस्याएं होती हैं। राज़नीति में कार्य की सफलता और सरकारी पद प्राप्त करने के लिए पूर्व दिशा का दोष रहित होना चाहिए।      Take Appoinment 

पूर्व दिशा के दोष दूर करने के लिए कुछ वैदिक उपाय:-

अगर पूर्व दिशा कटी हो तो पूर्व दिशा में एक आईना लगाना चाहिए।

सूर्यदेव की ताम्बे से बनी प्रतिमा पूर्व दिशा में लगाये।

सुबह सूर्य को जल को चढ़ाये और गायत्री मंत्र का जाप करे। गुड़ और चने बंदरों को खिलाये।

इस दिशा में सुनहरे पीले रंग का बल्ब लगाये। पूर्व की दीवार में उगते सूर्य के साथ उड़ते पक्षियों का चित्र लगाये।    

इस दिशा में गुलाब के फूल और यहां लाल या सुनहरे पीले रंग का प्रयोग करे।

आग्नेय दिशा- यह दक्षिण-पूर्व दिशा शुक्र की दिशा हैं इसके दिकपाल अग्नि देवता हैं। इस दिशा में अग्नि से जुड़े रसोईघर के कार्य, विधुत उपकरण, हीटर, बॉयलर, इलेक्ट्रानिक, टेलिविज़न, कम्पयुटॅर, जनरेटर और विधुत से जुड़े कार्य तथा उत्साही करने वाले मनोरंज़न के उपकरण हो सकते हैं। यह दिशा प्रकाश का मध्य बिंदु हैं तभी यहां सूर्य अपनी चर्म सीमा में होता हैं और यहां दिन भर प्राकृतिक रोशनी बनी रहती हैं जो भोजन को रुचिकर, तेजस और पोषक बनाता हैं। आग्नेय दिशा वायव्य से भारी लेकिन नैऋर्त्य से हल्की होनी चाहिए।         Know about Career Astrology 

यहां का क्षेत्र बढ़ा हो या यहां ढ़लान/गड्ढा हो तो आग को जगह मिल जाती हैं, जिससे रहने वालों का पित्त बढ़ जाता हैं और ह्रदय रोग, रक्तचाप, पेट में अल्सर और आंखो का रोग हो सकता हैं। आग्नेय दिशा के कटने या कम होने से शरीर में सुस्ती, निम्न रक्तचाप, नपुंसकता और जीवन में अरुचि देता हैं। यहां कभी जल के लिए खुदाई नहीं करे नहीं तो बेवज़ह खर्चे, मीन-मेख निकालने का स्वभाव, विवाह में अरुचि और झगड़े होते हैं।            

इस दिशा से अच्छी आय, स्वास्थय, आपसी प्रेम और शारीरिक शक्ति मिलती हैं। यहां दोष होने से घर में आग लगना, दिल की बीमारी, अवसाद, अच्छी नौकरी न मिलना, तलाक, बाहरी संबंध, कोर्ट केस और जीवन साथी के साथ अनचाहे विवाद रहते हैं।      

ज्योतिष अनुसार एकादश व बारहवां भाव आग्नेय दिशा को बताता हैं। जिससे यह इस दिशा में दोष हो तो बेवज़ह के मूकद्दमों, बीमारियों, बच्चों के विवाह और अपनी ही ईच्छाओं में धन खर्च होता हैं। इन भावो में राहु हो तो आग्नेय में जूते व पूराने सामान रखे जाते हैं। द्वादश भाव में शनि, राहु केतु य मंगल हो तो आग्नेय में भारी बोरिंग, गड़ढ़ा, या कोई दोष होगा या अनावशयक वस्तुयों के रखने का स्थान बन जाएगा। केतु के होने से यहां सुरंगनुमा कुछ होगा। राहु व शनि के होने से यहां सीलन या अंधेरा हो सकता हैं। यहां रहने वालो की कामनायें बहुत बढ़ जाती हैं और घर में संतुष्टि न मिलने पर बाहर भटक जाता हैं। ऐसे में विवाह का कारक शुक्र, मंगल के प्रभाव में आकर घर में अशांति लाता हैं और पति-पत्नि बेवज़ह आपस में लड़ते ही रहते हैं। जिससे समाज में हंसी का कारण बनते हैं।      Contact for Pooja Path 

आग्नेय में दोष होने पर कुछ उपाय अपनाये।

यहां सोने का कमरा होतो पलंग को दक्षिण-पश्चिम के किनारे रखे। अपना सिर दक्षिण की ओर रखे।    

यह दिशा बड़ी हो तो यहा कोई परदा लगाये, जिससे यह सामान्य आकार में लगे और ईशान दिशा को बढ़ाये।

अगर यहां गड़ढ़ा हो तो उसको मिट्टी से भर दे। यह दिशा कटी हो तो यहां अग्नि का दीपक जलाये और एक शीशा भी लगा सकते हैं।

यहां ऊंचे पेड़ नहीं लगाये बल्कि रंग-बिरंगे लाल और सुनहरी फूलों वाले पौधे लगाये।

यहां खिड़की नहीं हो तो सुनहरे पीले या नारंगी-लाल रंग का बल्ब जलाये।

प्रत्येक शुक्र्वार को गाय को रोटी खिलाये और संगरमर की गाय की मूर्ति इस दिशा में रखे।

दक्षिण दिशा:- यह यम की दिशा हैं जिसका स्वामी ग्रह मंगल हैं। मंगल का शरीर (प्रथम भाव) और मृत्यु (अष्टम भाव) दोनो पर अधिकार हैं। इसी दिशा को सबसे अधिक गर्म और प्रकाश देने वाली दिशा कहते हैं। इस दिशा में सूर्य की किरणें लगभग सीधी और पीड़ादायक पड़ती हैं और वर्षभर सामान्य तापमान उच्च बना रहने के कारण तीव्र गरमी रहती हैं।

यम की यह दिशा शयनक्ष के लिए सर्वोत्तम हैं, जो यम के स्वभाव से मेल करती हैं। यहां भारी निर्माण करने और दिशा को कम खुला रखने से सूर्य की अवर्क्त किरणें रोकी जा सकती हैं। इस दिशा को एकदम बंद भी नहीं रखना चाहिए। इस दिशा में मोटी और भारी दीवारे तथा भारी गहरे रंग के पर्दे होने चाहिए। यहां ऊंचे पेड़ लगाये जा सकते हैं। अंदरुनी पौधे जैसे पाम, रबर प्लांट या भारी गमले क्रिसमस ट्री रख सकते हैं।      

दक्षिण दिशा खुली या बढ़ी हुई हो तो शरीर में पित्त होना, नशे का आदि होना, वैवाहिक सुख में कमी, वाद-विवाद या जिद्दपन होता हैं।          

दक्षिण दिशा के लिए उपाय:-              Read Your palm

यह दिशा बढ़ी हुई हो तो किसी तरह आकार में लाने की कोशिश करे।

यहां गड़ढ़े हो तो मिट्टी से भर दे और यहां भारी सामान रखे।

घर या कार्यलय में इस दिशा में पीठ करके बैठे।

इस दिशा में हनुमानजी का चित्र या बच्चो के मनपसंद एक्शन हीरो का चित्र लगा सकते हैं।

नैऋर्त्य दिशा:- इस दक्षिण-पश्चिम की दिशा को अशुभ माना जाता हैं जिसका स्वामी ग्रह राहु हैं। इस दिशा का दिकपाल निऋर्प्ति राक्षसी हैं। यहां वास्तु पुरुष के पैर होते हैं। इस दिशा को सबसे ऊंचा रखना चाहिए और ढ़लान ईशान की ओर रखनी चाहिए। यहां द्वार न हो, न ही यह दिशा खुली हो, यहां ठोस मोटी दीवारे होनी चाहिए। इस दिशा में घर के मुखिया का शयनकक्ष और पूर्ण विश्राम की जगह का निर्माण करना चाहिए। यह दिशा सीढियों, बैंक/तिजोरी, भारी फर्नीचर, गहने, अलमारियों और गुप्त कार्य के लिए बेहतर हैं।

यहां तक सूर्य के आते-आते किरणे रेडियोधर्मी रंग की हो जाती हैं। जो सबसे विषैली होती हैं। यहां पड़ने वाली किरणे पेयजल को विषैला बना देती हैं। अत: यहां भूमिगल जल-टंकी, पम्प या अधिक देर तक ठहरा पानी निषिद्ध कहा गया हैं। यह सबसे तामसिक दिशा हैं। इस दिशा को भारी और ऊंचा बनाना चाहिए।

यहां दोष होने से व्यापार में नुकसान, खर्चे, पैसा ब्लॉक होना, कर्ज़ की परेशानी, पैरो में परेशानी, पैरालाईज़, किड़नी की परेशानी, बच्चो का गलत संगति में और पति-पत्नि के बीच विवाद के साथ वे एक दूसरे को धोखा देने लगते हैं।  

यह दिशा गतिहीनता व गोपनीयता की दिशा हैं, जिससे यहां आराम करने से नींद पूरी होती हैं। यहां घर के मुखिया और धन कमाने वाला प्रमुख सदस्य को सोना चाहिए। इस दिशा को ऊंचा रखने से आत्मविश्वास भरा रहता हैं। यहां गर्भवति स्त्री या नवज़ात शिशु को अपनी माँ के साथ सुलाना चाहिए। यहां बच्चों को नहीं सुलाना चाहिए नहीं तो बच्चे जिद्दी हो जाते हैं। इस दिशा की दीवारे मोटी बनानी चाहिए और यहां खिड़कियां कम बनानी या कम खुली होनी चाहिए।       

ज्योतिष के अनुसार कुंड़ली का अष्टम और नवम भाव नैऋर्त्य भाव पड़ता हैं।  

दक्षिण-पश्चिम दिशा के वास्तु दोषों के लिए कुछ उपाय:

यह दिशा बढ़ी या नीची या यहां गढ़े होने से असहनीय परेशानियां होती हैं। इस दिशा किसी तरह संतुलन कर व मिट्टी से गढ़े को भर देना चाहिए और भारी सामान रख कर ऊंचा बनाना चाहिए। इस दिशा में चार दिवारी बना कर बड़े-बड़े भारी गमले रखने चाहिए।

यहां रसोई हो तो गैस को आग्नेय दिशा में रखे। रसोई में पीला रंग करवाये।

यहां बोरिंग होतो यहां उल्टे हाथ में गद्दा सहित खड़े हुए पंच मुखी हनुमानजी की मूर्ति लगाये।      

घर या कार्यस्थल में इस दिशा की ओर पीठ करके सोना चाहिए। 

यहां भारी मुर्तियां रखे या पहाड़ का चित्र लगाये।

नीव रखते समय यहां ताम्बे के नाग-नागिन दबा दे या किसी भी धातु के सिक्के दबा सकते हैं।    

पश्चिम दिशा- इस दिशा का स्वामी ग्रह शनि हैं। जिसे अंधेरे की दिशा भी कहा जाता हैं क्योंकि सूर्य यही आ कर छिपता हैं। शनि दीर्घायु और मृत्यु का ग्रह हैं जिसमें प्राणशक्ति देने वाली ऑक्सीजन हैं। कुंड़ली में सप्तम भाव को पश्चिम दिशा का स्थान दिया गया हैं। यहां शनि को दिग्बल भी मिलता हैं। यहां के दिकपाल समुद्री देवता रहस्यमय वरुण हैं जो विशाल जलराशियों के स्वामी हैं जिससे यहां की छ्त पर जल की टंकी रखी जाती हैं। यह दिशा तामसी व राजसी दिशा कहलाती हैं जिससे छ्त की टंकी पर खड़ा पानी तामसी ऊर्जा से भरा ही होता हैं और पानी का नियमित प्रयोग होने से राजसी ऊर्जा का प्रवाह भी रहता हैं।      

इस दिशा में अध्ययन कक्ष, भोजन कक्ष, पुस्तकालय, बैठक और सभी तनावों से मुक्त होने का कमरा होना चाहिए। अगर यहां का हिस्सा बढ़ा हुआ हैं, तो कोशिश करे इस दिशा को सही आकार दे या यहां अलमारी को स्थान दे सकते हैं। यहा गड्ढा हो तो इस दिशा को मिट्टी से भर दे और ऊंचा कर दे और यहां भारी सामान रखे। यहां की दिवारे भी भारी होनी चाहिए और यहां भी कम खिड़की व दरवाजे रखे, जिससे पूर्व से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहे। शनि की यह दिशा भूख बढ़ाने और भोजन को पचाने में सहायता करती हैं। इस दिशा में नांरंगी रंग करने से भूख बढ़ती हैं और खाना जल्दी पच जाता हैं।

पश्चिम दिशा के लिए उपाय:-

घर या कार्यालय में इस दिशा में पीठ करके ही बैठे जिससे कार्य में गम्भीरता आएगी।    

यहां भारी सामान या बड़े पेड़-पौधे लगा सकते हैं।     

वायव्य/ उत्तर-पश्चिम दिशा- यहां की दिशा का स्वामी चंद्रमा हैं और दिकपाल वायुदेव हैं। वायु का काम हैं बहना, वायु की दिशा होने से यहां रहने वाले व्यक्ति का स्वभाव चंचल हो जाता हैं। वैदिक ज्योतिष में यह दिशा कुंड़ली में पंचम (मानसिक कर्म) और षष्ठ भाव (रोग) दिखाती हैं। जिससे यह दिशा स्वागत कक्ष, नौकरों का कक्ष, नव-विवाहितों का कक्ष, अविवाहित कन्या कक्ष, वाहन, पालतु पशु, खाधान्नों के भंड़ारण और मनोरंजन कक्ष के लिए उपयुक्त हैं। यह दिशा काम-सुख, विदेश जाने वाले और जन्म स्थान से भी दूर जाने वालो के लिए उत्तम हैं।        

जैसे सूर्य पश्चिम में अस्त होता हैं वैसे चंद्रमा वायव्य में उदय होता हैं। यह दिशा गर्म और ठंड़े क्षेत्र का मिलन स्थान हैं। यहां चंद्रमा का स्थान होने से मानसिक शान्ति भी मिलती हैं। सूर्य के अस्त होने और वायव्य में वायु के तीव्र प्रवाह होने के कारण यह क्षेत्र दिनभर के तनावों, रोगो, दुखों और क्रोध से मुक्ति पाने के लिए उत्तम हैं। रसोई घर के लिए दूसरी उत्तम दिशा हैं, वायु अग्नि को जलने में सहायता करती हैं और अनाज को नमी और कीटनाशकों से बचाती हैं।

जो देर रात तक टी.वी. देखना पसंद करते हैं उनकी आदत छुड़ाने के लिए यहां टी.वी. रख दे, जिससे देखने वाले को कुछ देर में ही बैचेनी होने लगेगी और वह उठ कर चला जाएगा। यह क्षेत्र भी सामान आकार का होना चाहिए, अगर यह क्षेत्र बढ़ा हुआ हैं या ऊंचा हैं तो वायु तत्व बढ़ जाएगा। जिससे बिना सोचे बोलना, ऊंचा बोलना, अधिक गतिशीलता जैसा व्यवहार हो सकता हैं। ऐसी स्थिति में चंद्रमा भी पीडित होता हैं जिससे मिर्गी, भय, मानसिक रोग, आत्मघात और जातक मतिभ्रम होने पर घर से भाग भी सकता हैं। बिगड़े वायव्य से बात-बात पर झगड़े हो सकते हैं और जिगर, पेट, गूर्दे और आंतो की बीमारियां हो सकती हैं। पडोसियों से रिशता मधुर नहीं रहता, कोर्ट-केस, दोस्तों से अधिक दुशमन होना, पुलिस केस, धन का नुकसान, फेफड़े की परेशानी, कैंसर और सांस की परेशानी होती हैं।   

यदि वायव्य कटा हो या ऊंचा हो तो जिससे चक्कर आना, सिरदर्द, आलस और बलहानि हो सकती हैं। जातक घर ही रहना पसंद करता हैं और स्त्रियों व बच्चों का स्वास्थय भी कमज़ोर रहता हैं। इस दिशा में पानी के लिए बोरिंग करना शुभ नहीं हैं।                

वायव्य दिशा से जुड़े उपाय:-

यह दिशा कटी हुई हो तो यहां मरुतदेव हनुमान जी की तस्वीर लगाई जा सकती हैं।

यहां के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए पूर्णिमा के चंद्र की भी तस्वीर लगाई जा सकती हैं।

यहां ताज़ा फूलों का गुलदस्ता रखे। यहां छोटा सा फव्वारा व मछलियों को भी रख सकते हैं।

प्रतिदिन गंगा जल मिला जल शिव-लिंग पर चढ़ाये।

उत्तर दिशा- वास्तु अनुसार यह दिशा शुभ मानी जाती हैं जिसका स्वामी ग्रह बुध हैं, यह दिशा अध्ययन कक्ष, बैठक के लिए बेहतर दिशा हैं। यहां के दिकपाल कुबेर हैं। कमज़ोर बच्चों के लिए यह दिशा बहुत उत्तम मानी जाती हैं। यहां जल्दी खराब होने वाले खाध पदार्थ, रेफिजरेटर, खर्च के लिए धन, औषधियों के लिए सर्वोत्तम स्थान हैं। कुंड़ली का चौथा भाव (माता व गहन-निद्रा) उत्तर दिशा हैं, दिन भर की थकान के बाद अंधकार, ठंड़क और आराम के साथ नींद लाने के लिए यह दिशा उत्तम हैं। वायव्य का स्वामी चंद्रमा (जड़ी-बुटियों का कारक) यहां दिग्बल प्राप्त करता हैं। तभी यह स्वास्थ्य व औषधियों की दिशा हैं। ईशान और उत्तर के मध्य की दिशा दवाईयां रखने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती हैं।  

जातक को अपने जीवन की सफलता और धन के लिए उत्तर की ओर मुख रखना चाहिए। यहां खिड़की व दरवाजे होना सबसे शुभ माना जाता हैं यह दिशा खुली और साफ होनी चाहिए। यहां मनिप्लांट व तुलसी रखनी चाहिए और इस दिशा में बोरिंग होना व खुदाई करके कुछ पानी के लिए स्थान बनाना शुभ माना जाता हैं। उत्तर दिशा में ही पानी की ढ़लान होनी चाहिए। यह दिशा कटी होने से वाक शक्ति में कमी, अस्थमा या सांस की बीमरी, धन कमाने के अवसरो में कमी व असंतुलित शरीर होता हैं।

उत्तर दिशा के दोषो के लिए उपाय:

यह दिशा कटी हो तो यहां एक दर्पण लगाये। यह दिशा घटी हो तो यहां देवी लक्ष्मी जो कमलासन पर विराज़मान या चंद्रमा का कोई संकेत लगाये।

यहां खुला न होने पर चंद्रमा सी नारंगी सफेद रोशनी बिखरने वाला बल्ब जलाये।

उत्तरी दीवार पर हरे तोते का चित्र लगाये। यहां छोटे फूलों वाले सफेद फूलों के पौधे व सदाबहार फूलों के पौधे लगाये।

ब्रह्मस्थान: यह दिशा घर के केंद्र स्थान यानि मध्य भाग में स्थित हैं। इस दिशा में वास्तु पुरुष का पेट नाभी का स्थान हैं क्योंकि वह औंधे मुख उलटे होते हैं। यह ब्रह्माजी का स्थान हैं। इस स्थान पर किसी भी प्रकार का भार, बीम व दीवारों आदि का निर्माण नहीं रखे और इस दिशा को खुला रखे। पुराने समय में यहां तुलसी, कुल देवता का मंदिर या अन्य धार्मिक उत्सवों के लिए खुली छत के साथ खुला रखा जाता था। यहां की दिशा भवन के फेफडों के रुप में काम करती हैं। यहां गंदी वस्तुएं, जुठन या चप्पले रखने से घर के निवासियों को नुकसान पहुंचता हैं। 

ब्रह्मस्थान व पिशाच स्थान (भवन का सबसे बाहरी स्थान) में दबाव या बंद होने से जातक मानसिक रोग, अवसाद, पिशाच बाधा, त्वचा की परेशानी व मनोवैज्ञानिक रोग हो सकते हैं। ब्रह्मस्थान में दोष होने से स्त्रियों के पेट की समस्याओ के साथ संतान सुख में भी कमी आती हैं।

जिन लोगो की कुंड़ली में चंद्र राहू योग हो उनको ब्रह्मस्थान व पैशाच स्थान खुला रखना चाहिए।

ब्रह्मस्थान व पैशाच स्थान का खुला होना वायु की आवश्यकता को पूरा करता हैं। मकान में वायु की कमी के कारण आलस, सिरदर्द, अवसाद, भूख न लगना, मुख से दुर्गंध और एकाग्रता में कमी आती हैं। इस स्थान को आम उठने-बैठने,हॉल कमरे या खुले बरामदे के रुप में इस्तेमाल करना चाहिए। आज कल के फ्लैट वाले घरों में ऐसा सम्भव नहीं हैं तो कोशिश करे यहां खाली ही रखे और नहाने, खाने-पीने सोने जैसे कायों से बचे।                  

Vaastu is basically a traditional Indian system of architecture that originated in India. Vaastu Shastra is the textual part of Vaastu Vidhya. To simplify it “Vaastu” relates to the science of direction that combines all the five elements of nature and balances them with man and materials. It also consists of rules, formulas, and patterns for the execution of the process and for the construction of the houses. Vaastu helps to ensure prosperous and harmonious living in the house by eliminating all the negative energies around us, which have taken away peace from our lives. Vaastu aims to make harmonious buildings at places in tune with mother-nature so that the people residing in a particular building live a happy life.

It is believed that if a building is not constructed or built on the terms of Vaastu, then the thinking, action, and nature of the people inhabiting or working in these buildings is not harmonious and progressive. On the other hand, if the building follows principles of Vaastu then all Divine Powers help and support people’s positive thinking and progressive actions.

At Raghauv Astrology, our Vaastu Experts shall do a complete detailing of your Living as well as Business space so that you can lead a prosperous & harmonious life.

  • We shall visit the land for new construction and define the designated places as per Vaastu. Charges for the same shall be explained during the visit.
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