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Mansik Preshani मनोरोग होने वाले कुछ ज्योतिषीय योग:

आज के तेजी से बढ़ते समय में सभी को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पढ़ता हैं। जिसमें कुछ लोग तो इससे लड़ जाते हैं और कुछ लोग बहुत ही जल्दी नकारात्मकता के शिकार हो कर अवसाद (ड़िप्रेशन) या मनोरोग के शिकार हो जाते हैं। जिसमें महिलाओं का मन कमज़ोर होने पर वह इस बीमारी का शिकार जल्दी हो जाती हैं क्योंकि जो महिलायें घर में रहती हैं और अपने मन की बात किसी से खुल कर नहीं कर पाती हैं वह बहुत जल्दी ड़िप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। अधिकतर लोगों को यही कहते सुना हैं कि जिंदगी में सब कुछ हैं, परंतु सुकून नहीं हैं, जिसका कारण यही अवसाद और ग्रहों का कमज़ोर होना हैं। कुछ लोग बहुत जल्दी बात मन को लगा लेते हैं, जिससे उसी बात को लेकर घुटन होती हैं और नकारात्मक सोच के कारण अवसाद में आ जाते हैं।

वैदिक ज्योतिष में कुंड़ली के ग्रहों और भावों के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि किस योग के कारण हम इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं और चाह कर भी इससे निज़ात नहीं पा सकते हैं।

  1. चन्द्रमा: चन्द्रमा मन का कारक हैं इसका कमज़ोर या मज़बूत होना किसी की मानसिक अवस्था को प्रतिबिम्बित करता हैं। यह दुसरों के प्रति अनुराग, भावनायें, भावनात्मक, प्रेम, प्रतिक्रियायें, मानसिक योग्यता आदि का सूचक हैं और इस प्रकार की बाते किसी गणितीय तर्क पर नहीं चलती हैं। चन्द्रमा का कोई ग्रह शत्रु नहीं हैं फिर भी कुछ ग्रहों के प्रभाव से यह बहुत नकारात्मक हो जाता हैं।
  2. बुध: बुध नसों, नाड़ी मंड़ल, शिक्षा, मानसिक स्थिति, ज्ञान, शक्ति एवं व्यवहार की समझ तथा जटिलताओं को दर्शाता हैं। बुध ग्रह शत्रु मानता हैं चन्द्रमा को। मन यानि चन्द्रमा का विवेक एवं ज्ञान यानि बुध से गहरा योगी-प्रतियोगी सम्बन्ध हैं।     हमसें मिलनें या बात करने के लिए सम्पर्क करें!
  3. गुरु: गुरु ज्योतिष में सबसे शुभ ग्रह हैं क्योंकि गुरु विचारों में ज्ञान, परिपक़्वता एवं बुद्धिमता का कारक हैं। गुरु ग्रह बुध के लिए सम हैं परन्तु बुध गुरु का शत्रु हैं। यहां ये स्पष्ट हैं की तर्क की कठोर सीमायें बुद्धिमता के प्रयोग को रोक सकती हैं। जब चन्द्रमा बुध और गुरु बलि हो व अच्छी स्थिति में हो तो जातक का मस्तिष्क/मन पुष्ट होता हैं उसके पास विवेक तथा बुद्धिमता होती हैं। जब इन तीन ग्रहों पर पाप प्रभाव, दुर्बल या अशुभ स्थिति में हो तो मानसिक बीमारी, नाड़ियों की दुर्बलता, भ्रमित बुद्धि तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने तथा उन पर अमल करने की अयोग्यता होती हैं।

जिस तरह अवसाद को पहचानने में ऊपर दिये ग्रहों का योगदान हैं उसी तरह कुंड़ली में भावों का भी उतना ही महत्व हैं। किसी भी प्रशन के लिए यहां क्लिक करें!

पंचम भाव: वैदिक ज्योतिष में यह भाव कल्पना शक्ति, मानसिक ऊर्जा, चिंतन, तर्क तथा बुद्धिमता का हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए पंचम/पंचमेश पीड़ित न होकर शुभ प्रभावों में होने चाहिए।

लग्न तथा मेष राशि: कालपुरुष कुंड़ली में मेष राशि का प्रथम भाव होने के कारण यह सिर हैं। जिससे लग्न को प्रथम भाव यानी जातक का सिर मानते हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए दोनों शुभ स्थिति में होने चाहिए।

शुभाशुभ योग: इन तथ्यों के अतिरिक्त कुंड़ली में कुछ विशेष शुभाशुभ योग होते हैं जो मानसिक रोग को बढ़ावा देते हैं अथवा उसे रोकते हैं। जिनमें ये योग विशेष महत्वपूर्ण हैं।

  1. केमद्रुम योग: जब चन्द्रमा के साथ या दूसरे अथवा द्वादश भाव या चन्द्रमा से केंद्र में कोई ग्रह न हो। यह एक प्रतिकूल योग हैं क्योंकि स्वस्थ मन के लिए चन्द्रमा को सम्बल की आवश्यकता होती हैं। जब चन्द्रमा से दूसरे तथा बारहंवे स्थान में कोई ग्रह न हो तो यह कुंड़ली में मानसिक दुर्बलता का सूचक हैं।      ज्योतिष सीखनें के लिए यहां देखें!   
  2. गजकेसरी योग: चन्द्रमा से केंद्र में गुरु का होना एक अतिबली शुभ योग हैं। केंद्र में बैठे ग्रह एक दूसरे पर शुभ प्रभाव ड़ालते हैं। चन्द्रमा से केंद्र में बैठा गुरु चन्द्रमा को बलि बनाता हैं।
  3. चन्द्राधि योग: चन्द्रमा से छठे, सातवें, आठवें स्थान में ग्रह हो तो चन्द्राधि योग होता हैं। इन भावो में शुभ ग्रह चन्द्रमा की शक्ति में वृद्धि करते हैं तथा पाप ग्रह वृद्धि में बाधा ड़ालते हैं।

चन्द्रमा पर पाप प्रभाव: प्राय: चन्द्रमा के पीड़ित होने से मानसिक असंतुलन होता हैं। ये साधारण मतिभ्रम से लेकर न्यूरोसाइकोटिक ड़िसऑर्डर देता हैं। चन्द्रमा तभी पीड़ित होता हैं जब वह दुर्बल हो, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो या पाप ग्रहों से युक्त या दुष्ट हो। कुछ ग्रहों के प्रभाव से चन्द्रमा का फल बदल जाता हैं। जैसे:-

सूर्य के प्रभाव से तीक्ष्ण स्वभाव, झगड़ालू प्रवृर्ती, स्वयं के तर्को से प्रेरित रहता हैं।

मंगल के प्रभाव से तीक्ष्ण स्वभाव, आक्रमण व हिंसक होता हैं। इससे मानसिक आघात लगने की सम्भावना भी रहती हैं।

शनि के प्रभाव से तीव्र अवसाद, सनकपन, मानसिक रोग, उदासी युक्त पागलपन और नकारात्मकता होती हैं।

राहु के प्रभाव से चलाक, व्यवहार में विसंगति, अकारण भय, आत्मघाती प्रवृति व छलियापन होता हैं। इससे मानसिक बीमारी बढ़ती हैं क्योंकि राहु मन को भ्रमित करता हैं और व्यक्ति में मन में घोड़े दौड़ने लगते हैं और वह बहुत हवाई किले बनाता हैं।   अन्य योगों के बारे में जानने के लिए यहां देखें!

केतु के प्रभाव से सनकपन/आत्मघाती प्रवृति, भय, दुसरों पर आकारण संदेह करना होता हैं। इससे व्यक्ति जिद्दी हो कर सेजोफ्रेनिया का शिकार हो जाता हैं।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण योग जिससे जानने से अवसाद रोगों का पता चलता हैं। 

गुरु लग्न में तथा मंगल सप्तम भाव में हो अथवा समसप्तम हो क्योंकि गुरु आदर्शवाद का ग्रह हैं तथा मंगल आक्रमकता का कारक हैं। इनका अत्यधिक पारस्परिक प्रभाव वैवाहिक जीवन को बर्बाद कर सकता हैं, सप्तम भाव विवाह का हैं। इसी योग में मंगल की जगह शनि होने से भी वही फल आएगा बस पाप ग्रह की प्रकृति बदलने से स्पष्ट रूप से यह आक्रमकता अवसाद में परिवर्तन हो जायगी।

शनि लग्न में तथा मंगल पांचवे, सांतवे या नवे भाव में हो। शनि लग्न में तथा सूर्य द्वादश भाव में मंगल या चन्द्रमा त्रिकोण में हो।

शनि बारहवें स्थान में क्षीण चन्द्रमा के साथ हो (शनि के साथ चन्द्रमा की युति नकारात्मक सोच में परिवर्तन करती हैं। शनि और द्वितीयेश की युति सूर्य या मंगल के साथ हो।

राहु तथा चन्द्रमा लग्न में हो तो तथा पापग्रह त्रिकोण में हो। (पिशाच योग)

बुध तथा गुरु पर पाप प्रभाव भी व्यवहार में असामान्यता लाते हैं। उदहारण के लिए छठे स्थान में बुध शनि के द्वारा दुष्ट हो तो मानसिक रोग होता हैं। गुरु-शनि या गुरु-मंगल एक-दूसरे के सम्मुख होने का प्रभाव पहले ही स्पष्ट किया जा चुका हैं। इन सब योगों में ग्रहों की अंशात्मक निकटता अवश्य देख लेनी चाहिए।    अन्य रोगों के बारें मे भी पढ़े!

विभिन्न रोगो के योग:

  • एकादशेश षष्ट भाव में हो तो विविध रोग देता हैं।
  • शनि और मंगल छठे भाव में राहु व सूर्य से दृष्ट हो तो दीर्घस्थाई रोग देते हैं।
  • राहु या केतु सप्तम भाव में या शनि अष्टम भाव में हो और चंद्र लग्न में हो तो अजीर्ण होता हैं।
  • गुरु तथा राहु लग्न में दंत रोग देते हैं।
  • षष्टेश तृतीय भाव में हो तो उदर रोग देता हैं।
  • शनि षष्ट या अष्टम भाव में पैरों में कष्ट देता हैं।
  • राहु या केतु षष्ट भाव में हो तो दंत या ओष्ठ रोग होता हैं।
  • लग्नेश मंगल या बुध की राशि में हो तथा शत्रु से दृष्ट हो तो गुदा क्षेत्र में रोग होता हैं।
  • कर्क या वृश्चिक नवांश में चन्द्रमा पाप युक्त हो तो गुप्त रोग होता हैं। गुप्त रोग का अर्थ वह रोग हो सकता हैं जिसे व्यक्ति अन्य लोगो से छुपाता हैं या यौन सम्बन्धों से हुआ रोग हो सकता हैं।
  • मंगल बुध तथा लग्नेश एक-साथ सिंह राशि में चतुर्थ या द्वादश भाव में हो तो गुदा या गुदा क्षेत्र में रोग हो सकता हैं।
  • अष्टम भाव में पाप ग्रह गुप्त रोग देता हैं और द्वादश भाव में गुरु का भी यही फल होता हैं।
  • बुध षष्ठेश तथा मंगल इकट्ठे हो तो जननांग में रोग होता हैं। अष्टमेश अष्टम भाव में हो तो शरीर रोगोन्मुख होता है।

 


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