Mansik Preshani मनोरोग होने वाले कुछ ज्योतिषीय योग:
आज के तेजी से बढ़ते समय में सभी को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पढ़ता हैं। जिसमें कुछ लोग तो इससे लड़ जाते हैं और कुछ लोग बहुत ही जल्दी नकारात्मकता के शिकार हो कर अवसाद (ड़िप्रेशन) या मनोरोग के शिकार हो जाते हैं। जिसमें महिलाओं का मन कमज़ोर होने पर वह इस बीमारी का शिकार जल्दी हो जाती हैं क्योंकि जो महिलायें घर में रहती हैं और अपने मन की बात किसी से खुल कर नहीं कर पाती हैं वह बहुत जल्दी ड़िप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। अधिकतर लोगों को यही कहते सुना हैं कि जिंदगी में सब कुछ हैं, परंतु सुकून नहीं हैं, जिसका कारण यही अवसाद और ग्रहों का कमज़ोर होना हैं। कुछ लोग बहुत जल्दी बात मन को लगा लेते हैं, जिससे उसी बात को लेकर घुटन होती हैं और नकारात्मक सोच के कारण अवसाद में आ जाते हैं।
वैदिक ज्योतिष में कुंड़ली के ग्रहों और भावों के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि किस योग के कारण हम इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं और चाह कर भी इससे निज़ात नहीं पा सकते हैं।
जिस तरह अवसाद को पहचानने में ऊपर दिये ग्रहों का योगदान हैं उसी तरह कुंड़ली में भावों का भी उतना ही महत्व हैं। किसी भी प्रशन के लिए यहां क्लिक करें!
पंचम भाव: वैदिक ज्योतिष में यह भाव कल्पना शक्ति, मानसिक ऊर्जा, चिंतन, तर्क तथा बुद्धिमता का हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए पंचम/पंचमेश पीड़ित न होकर शुभ प्रभावों में होने चाहिए।
लग्न तथा मेष राशि: कालपुरुष कुंड़ली में मेष राशि का प्रथम भाव होने के कारण यह सिर हैं। जिससे लग्न को प्रथम भाव यानी जातक का सिर मानते हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए दोनों शुभ स्थिति में होने चाहिए।
शुभाशुभ योग: इन तथ्यों के अतिरिक्त कुंड़ली में कुछ विशेष शुभाशुभ योग होते हैं जो मानसिक रोग को बढ़ावा देते हैं अथवा उसे रोकते हैं। जिनमें ये योग विशेष महत्वपूर्ण हैं।
चन्द्रमा पर पाप प्रभाव: प्राय: चन्द्रमा के पीड़ित होने से मानसिक असंतुलन होता हैं। ये साधारण मतिभ्रम से लेकर न्यूरोसाइकोटिक ड़िसऑर्डर देता हैं। चन्द्रमा तभी पीड़ित होता हैं जब वह दुर्बल हो, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो या पाप ग्रहों से युक्त या दुष्ट हो। कुछ ग्रहों के प्रभाव से चन्द्रमा का फल बदल जाता हैं। जैसे:-
सूर्य के प्रभाव से तीक्ष्ण स्वभाव, झगड़ालू प्रवृर्ती, स्वयं के तर्को से प्रेरित रहता हैं।
मंगल के प्रभाव से तीक्ष्ण स्वभाव, आक्रमण व हिंसक होता हैं। इससे मानसिक आघात लगने की सम्भावना भी रहती हैं।
शनि के प्रभाव से तीव्र अवसाद, सनकपन, मानसिक रोग, उदासी युक्त पागलपन और नकारात्मकता होती हैं।
राहु के प्रभाव से चलाक, व्यवहार में विसंगति, अकारण भय, आत्मघाती प्रवृति व छलियापन होता हैं। इससे मानसिक बीमारी बढ़ती हैं क्योंकि राहु मन को भ्रमित करता हैं और व्यक्ति में मन में घोड़े दौड़ने लगते हैं और वह बहुत हवाई किले बनाता हैं। अन्य योगों के बारे में जानने के लिए यहां देखें!
केतु के प्रभाव से सनकपन/आत्मघाती प्रवृति, भय, दुसरों पर आकारण संदेह करना होता हैं। इससे व्यक्ति जिद्दी हो कर सेजोफ्रेनिया का शिकार हो जाता हैं।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण योग जिससे जानने से अवसाद रोगों का पता चलता हैं।
गुरु लग्न में तथा मंगल सप्तम भाव में हो अथवा समसप्तम हो क्योंकि गुरु आदर्शवाद का ग्रह हैं तथा मंगल आक्रमकता का कारक हैं। इनका अत्यधिक पारस्परिक प्रभाव वैवाहिक जीवन को बर्बाद कर सकता हैं, सप्तम भाव विवाह का हैं। इसी योग में मंगल की जगह शनि होने से भी वही फल आएगा बस पाप ग्रह की प्रकृति बदलने से स्पष्ट रूप से यह आक्रमकता अवसाद में परिवर्तन हो जायगी।
शनि लग्न में तथा मंगल पांचवे, सांतवे या नवे भाव में हो। शनि लग्न में तथा सूर्य द्वादश भाव में मंगल या चन्द्रमा त्रिकोण में हो।
शनि बारहवें स्थान में क्षीण चन्द्रमा के साथ हो (शनि के साथ चन्द्रमा की युति नकारात्मक सोच में परिवर्तन करती हैं। शनि और द्वितीयेश की युति सूर्य या मंगल के साथ हो।
राहु तथा चन्द्रमा लग्न में हो तो तथा पापग्रह त्रिकोण में हो। (पिशाच योग)
बुध तथा गुरु पर पाप प्रभाव भी व्यवहार में असामान्यता लाते हैं। उदहारण के लिए छठे स्थान में बुध शनि के द्वारा दुष्ट हो तो मानसिक रोग होता हैं। गुरु-शनि या गुरु-मंगल एक-दूसरे के सम्मुख होने का प्रभाव पहले ही स्पष्ट किया जा चुका हैं। इन सब योगों में ग्रहों की अंशात्मक निकटता अवश्य देख लेनी चाहिए। अन्य रोगों के बारें मे भी पढ़े!
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