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दिपावली पंचदिवसिय त्यौहार

Diwali  Deepawali Dhanteras Goverdhan Puja Bhai Duj भारतीय दिवाली क्यों सेलीब्रेट करते हैं?

दीवाली हिंदूओं का धार्मिक व आध्यात्मिक त्यौहार हैं। इस उत्सव को सब मिल कर उत्साह व खुशियों से मनाते हैं। घर-घर में प्रकाशमय वातावरण होने से दिन-रात में कोई फर्क नहीं लगता हैं। प्रत्येक जगह पर दीप जला कर रोशनी की जाती हैं तभी इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। अमीर हो या गरीब सभी इस उत्सव को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। दीवाली का उद्देश्य मिल-जुल कर भाई-चारे को बढाना हैं। इस पर्व पर सभी एक-दूसरे को उपहार व मिठाईयां तोहफे के रुप में देते हैं। बच्चे इस दिन का इंतजार बहुत ही पहले से करते हैं क्योंकि उनको इस दिन नए-नए कपड़े‌ व उपहार मिलते हैं साथ ही पटाखे जला कर वह हर्षोंउत्साहित होते हैं। दीवाली का पर्व सभी धर्मों में मनाया जाता हैं। दीवाली पाप पर सत्य की विज़य का प्रतीक हैं। दीवाली का त्यौहार पाँच दिन तक मनाया जाता हैं जिस में प्रत्येक दिन का अपना ही महत्व हैं। यह धन तेरस से शुरु हो कर भाई दूज तक मनाया जाता हैं।

दीवाली क्यों मनाई जाती हैं, इन खास दिनों को मनाने के और भी बहुत से मुख्य कारण हैं।

  1. इस दिन समुंद्र मंथन के दौरान धन की देवी का अवतार हुआ था। भगवान धनवंतरी व कुबेर की उत्पत्ति भी समुंद्र मंथन के दौरान इसी दिन हुई थी।
  2. इस दिन श्री राम जी लंका पर विज़य पाने के पश्चात सीता व लक्ष्मण सहित अयोध्या वापिस लौटे थे जिससे उनके स्वागत के लिए घर-घर घी के दीपक जलाए गए थे।  
  3. इस दिन से दो दिन पहले भग्वान कृष्ण ने नरकासुर को मार कर 16,000 स्त्रियों को उसकी कैद से बचाया था, जिस वज़ह से दिवाली के दिन तक जीत का त्यौहार मनाया गया था।
  4. आर्य समाज के संथापक व जैन धर्म के संस्थापक ने इस निर्वाण प्राप्त किया था।
  5. अमृतसर मे स्वर्ण मंदिर की स्थापना भी इसी दिन की गई थी और गुरु हरगोविंद जी को इसी दिन हिरासत से रिहा किया गया था।
  6. इस दिन पांड़्व 12 वर्ष के वनवास के बाद वापिस लौटे थे जिससे आने के पश्चात उन्होंने दीपक जला कर प्रकाश किया था।   
  7. राजा विक्रमादित्य का इस दिन राज्याभिषेक हुआ था। तभी से ये दिन ऐतिहासिक रुप से मनाना शुरु हुआ।   
  8. इस दिन भग्वान विष्णु ने अपने वामन अवतार में देवी लक्ष्मी को राजा बाली की कैद से बचाया था।

दीवाली के समय में सूर्य व चंद्रमा की एक विशेष स्थिति बनती हैं, जिस समय में अनुष्ठान व सिद्धि करने से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं। दीवाली का त्यौहार कई धर्म के लोग अपने रिवाज़ों के अनुसार खुशी व उल्लास से मनाते हैं। कुछ ही दिन पहले घरों व कार्य-स्थल की साफ सफाई व रंग-रोगन करवाया जाता हैं, जहाँ साफ-सफाई होती हैं वहाँ लक्ष्मी ज़रुर आती हैं, फिर घर को रोशनी व आकर्षक वस्तुओं से सजाया जाता हैं। व्यापारी लोग अपने बही-खातों की जॉच करते हैं और व्यापार के नए नियम उत्साह के साथ लागू करते हैं।

  पंच-दिवसीय दीपावली पर कैसे पूजा करे!

धनतेरस:-  धनतेरस के दिन घर में धन-समृद्धि का आगमन होता हैं। लक्ष्मी पूजा का अर्थ धन से नहीं हैं, लक्ष्मी का अर्थ हैं, समृद्धि, सुख व स्वास्थय। इस दिन स्वास्थय के देवता धनवंतरी औषद्धि कलश लेकर धरती पर प्रकट हुए थे। इस दिन कोई भी धातु या किसी भी धातु का बर्तन खरीद कर घर लाया जाता हैं। परंतु ये बर्तन खाली न लेकर आए इसमे किसी भी प्रकार का धान्य लेकर आए जिससे घर में धन-धान्य की कभी कमी न आएगी। शाम को मुख्य द्वार पर यमराज के लिए अन्न से भरे पात्र में दक्षिण की ओर मुख कर के दीपक जलाए और अपने व अपने परिवार की परेशानी व कष्टों से बचने की प्रार्थना करें। इस दिन गाय को चारा जरुर खिलाना चाहिए। यह अमृत का दिवस हैं, इस दिन ऋण दोष, बुरे प्रभाव, विशेष कष्ट से मुक्ति से निजात पाने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, तभी यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता हैं। इस दिन अगर नारायण मंत्र और महामृत्युंज़य मंत्र को सिद्ध किया जाए तो सभी प्रकार की परेशानियों को दूर किया जा सकता हैं। साफ-सफाई के साधन इस दिन ज़रुर खरीदे। इस दिन व्यापारी अपनी गद्दी व विधार्थी अपनी बैठने की कुर्सी की भी पूजा करते हैं। शाम को 13 आटे के दीपक तिल के तेल के जला कर अपनी तिज़ोरी व कुबेर का पूजन करें, फिर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर यम को जल अर्पण करें, पूजा में दान करने के लिए अनाज़ ज़रुर निकाले। किसी विशेष सिद्धि की प्राप्ति के लिए विशेष मुहूर्त में ही अनुष्ठान करें।    

छोटी दीवाली-: धंनतेरस के दूसरे दिन जिसे छोटी दीवाली कहते हैं। इसी दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता हैं, इस दिन सूर्य उदय से पहले स्नान करने से अनेक समस्याओं से छुटकारा मिलता हैं। शुभ मुहूर्त में ही साधना व अनुष्ठान करें, शाम को  चार मुख मिट्टी के दीपक में शुद्ध तेल डाल कर और दीपक के नीचे थोडा सा अनाज व दीपक में कुछ सिक्के डाल कर रात भर जलने दे। सुबह यही अनाज किसी गरीब को दान दे व कुछ घर में दूसरे अनाज में मिला ले व सिक्का अपनी तिजोरी में रख ले।

दीवाली:- दीवाली के दिन शाम को घर के बाहर रंगों व फूलों से सुंदर रंगोली बनाई जाती हैं। अमावस्या की काली रात को दीवाली के दिन शुभ मुहूर्त में धन की देवी “श्री” की विधि-विधान से आराधना की जाती हैं जिसके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया हैं। इस दिन पंच धातु का पिरामिड स्थापित करने से धन का आगमन बना रहता हैं। पूजा के उपरांत घरों व चौराहे पर घी के दीपक जलाए जाते हैं जिस से अमावस्या की काली रात उजाले में बदल दिया जाए।  

गोवर्धन पूजा:- दीवाली के अगले दिन गोर्वधन पूजा की जाती हैं, इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान भंग करने के लिए गोर्वधन पर्वत को सबसे छोटी उंगली पर उठाया था। तभी इस दिन भगवान कृष्ण की प्रतिमा बना कर, पूजा आराधना कर 56 भोग लगाने का विधान हैं। इस दिन भी घर के बाहर शुद्ध तेल का दीपक जलाया जाता हैं।

भाई दूज़:- पांचवें दिन को भाई बहन के प्रेम के रुप मे मनाया जाता हैं, बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगा कर उसके जीवन की मंगलकामना करती हैं भाई भी उपहार दे कर अपनी बहन को खुश करता हैं।                 

              लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रदोष काल माना जाता हैं यह पूजा के लिए सबसे उत्तम समय हैं, जो सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता हैं। जब स्थिर लग्न होता हैं, उसी दौरान लक्ष्मी पूजा की जानी चाहिए। माना जाता हैं की स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं, वृषभ व सिंह स्थिर लग्न होता हैं। इसलिए इस मुहूर्त को याद रखे, मुहूर्त के समय में पूजा न करने से लाभ नहीं मिलता। पर ये भी सच्चाई हैं, लक्ष्मी जी चंचल हैं कभी एक जगह स्थिर नहीं रहती तभी कभी लक्ष्मी जी की पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए, हमेशा विष्णुजी के साथ करनी चाहिए। दीवाली के दिन ही विष्णुजी लक्ष्मी जी सहित बैकुंठ लौटे थे।     

दीवाली की रात को देवी लक्ष्मी जी की पूजा का विधि-विधान से पूजन करने से श्री जी का वरदान मिलता हैं। इस दिन के लिए लक्ष्मी जी व गणेश जी की नई बैठी हुई प्रतिमा लानी चाहिए। गणेश जी के बाई ओर लक्ष्मी जी की मूर्ति न रखें। पूजा करते हुए आपका मुख उत्तर या पश्चिम दिशा में हो, उत्तर दिशा कुबेर व धन की दिशा हैं व पश्चिम दिशा प्राप्ति की दिशा हैं। अपनी ग्रहों की दशा के अनुसार ही रंगोली में रंगों का प्रयोग करें। जिससे किसी भी कार्य में बाधा नहीं आती। गणेशजी को मुख्य द्वार पर नहीं रखे वह द्वारपाल नहीं हैं। स्वास्तिक का प्रयोग मुख्य द्वार पर करने से घर में समृद्धि आती हैं।        

 

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