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दिपावली पूजन विधि और समय

दिपावली पूजा मंत्रोचारण सहित विधि समय दिवाली की पूजा विधि  दिवाली पर लक्ष्मी पूजा क्यों होती है? 

दीवाली की रात को देवी लक्ष्मी जी की पूजा का विधि-विधान से पूजन करने से श्रीजी का वरदान मिलता हैं। इस दिन के लिए लक्ष्मी जी व गणेश जी की नई बैठी हुई प्रतिमा लानी चाहिए। गणेश जी के बाई ओर लक्ष्मीजी की मूर्ति न रखें। पूजा करते हुए आपका मुख उत्तर या पश्चिम दिशा में हो, उत्तर दिशा कुबेर व धन की दिशा हैं व पश्चिम दिशा प्राप्ति की दिशा हैं। अपनी ग्रहों की दशा के अनुसार ही फूलो और रंगोली में रंगों का प्रयोग करें। जिससे किसी भी कार्य में बाधा नहीं आती। गणेशजी को मुख्य द्वार पर नहीं रखे वह द्वारपाल नहीं हैं। स्वास्तिक का प्रयोग मुख्य द्वार पर करने से घर में समृद्धि आती हैं।      

दिवाली का शुभ मुहुर्त: इस वर्ष अमावस्या तिथि 12 नवंबर दिन में 02: 44 से 13 नवंबर दिन 02:56 तक रहेगी। हमारे धर्म में सभी त्यौहार सूर्य उदय तिथि के अनुसार मनाये जाते हैं, लेकिन दिपावाली की पूजा प्रदोष काल में होती हैं जो 12 नवंबर को हैं। इस दिन शाम को 05:41 से 07:35 तक का पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा।  

धनतेरस खरिदारी मुहूर्त: 10 नवम्बर 2023 16:00 से 18:00 धनतेरस पूजा मुहुर्त समय: 17:47 से 19:43   

दीवाली पूजा मूहुर्त: 12 नवम्बर 2023 अमावस्या तिथि 14:44 से 14:56 13 नवम्बर तक    

प्रदोष काल 17:29 से 20:08, वृषभ काल: 17:39 से 19:35, सिंह काल: 00:10 से 02:27

भाई दूज:  14-15 नवंबर 2023, द्वितीया तिथि 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02.36 से शुरू होगी जो 15 नवंबर 2023 को दोपहर 01.47 पर समाप्त होगी|

दिवाली का पूज़न सामग्री: दिवाली पूजा के लिए लाल या पीले रंग का कपड़ा, गणेश लक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा, चंदन, चावल, गुलाब, इत्र, आम और पान के पत्ते, सुपारी, दुर्वा, पंचामृत, रुई, गुलाब, गेंदे, कमल  के फूल, फल, रोली, मोली, लौंग-इलायची, नारियल, खील पताशे, लड्डू, घी, धूप-दीप, कपूर, जनेऊ, चांदी का सिक्का और रुपए।       

दिवाली के दिन साफ सफाई के बाद लाल-पीले कपड़े पहन कर मंदिर के पास एक छोटी सी चौकी रख कर इस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाए उस पर स्वास्तिक बनाए। गणेश लक्ष्मी जी की प्रतिमा का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर स्थापित करके सामने कलश व नारियल रखे। कलश के पास चावल से नौ ग्रह की नौ ढ़ेरिया बनाए। अब पूजा का विधि अनुसार आरम्भ करें। प्रतिमा पर फूल माला अर्पण करें और फल, फूल, धूप-दीप, नैवेध सहित सामग्री अर्पित करें। लक्ष्मी पूजन के दौरान अष्टलक्ष्मी महा स्रोत्र या श्री सूक्त का पाठ करे‌।               

 विस्तार सहित पूजा विधि== **सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना करनी चाहिए—

आर्विभाव-- सुपारी को मोली से बांध कर गणेश जी को मंत्रों सहित अर्पित करें।

मंत्र:-- ऊँ गणानां त्वा गणपति हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियापति हवामहे। निधीनां त्वा निधि-पति हवामहे वसो मम्। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्। 

**आवाहन— हाथों मे अक्षत लेकर हाथों की आवाहन मुद्रा बना कर मंत्र का उच्चारण करें।

मंत्र—ऊँ भूर्भव: स्व: श्रीगण्पते! इहागच्छ, इह तिष्ठ, मम पूजां गृहाण्।

**प्राण-प्रतिष्ठा— श्री गणेश जी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करें।    

**दशोपचार पूजन— प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात दशोपचार पूजन करें। फिर गणेश जी कि प्रार्थना करें। तत्पश्चात श्री लक्ष्मी जी का पूजन आराधना करें।  

                            ***श्री लक्ष्मी पूजन***

      1. ध्यान— सबसे पहले देवी का ध्यान करते हुए मंत्र का जाप करे।  

“या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटि पद्म-पत्रायताक्षी, गम्भीरार्तव-नाभि: स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया। या लक्ष्मीद्रिव्य-रुपैर्मणि-गण-खचितै: स्वापिता हेम-कुम्भै:, सा नित्यं पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्त्ता॥“   

      1. आवाहन—माँ का ध्यान करने के बाद उनका मंत्रों से आवाहन किया जाता हैं। 

“आगच्छ देव-देवेशि! तेजोमयि महा-लक्ष्मी! क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वंदिते!

 ॥ श्रीलक्ष्मी- देवीं आवाहयामि॥“

      1. पुष्प-समर्पण—आवाहन पश्चात देवी माँ को मंत्रों सहित पुष्प सर्मपित करे।   

         “नाना-रत्न-समायुक्त्म, कार्त-स्वर-विभूषितम्।

आअसनं देव-देवेश! प्रीत्यर्थ प्रति- गृह्म्ताम॥ ॥ श्री  लक्ष्मी-देव्यै आसनार्थे पंच-पुष्पाणि समर्पयामि॥“

      1. स्वागत—हाथ जोड़ कर मंत्र से माँ का स्वागत करे। “श्री लक्ष्मी-देवी! स्वागतम्।“  
      2. अर्ध्य—स्वागत के बाद चरण धोए फिर शिर के अभिषेक हेतु जल समर्पित करें।
      3. पंचामृत-स्नान— दही, मधु, घी, शर्करा व जल से स्नान करवाए। फिर गंध स्नान करवाए। तत्पशचात शुद्ध जल से स्नान करवाए।
      4. वस्त्र—देवी को वस्त्र समर्पित करें।
      5. तिलक—श्री लक्ष्मी को तिलक व अखण्ड़ सौभाग्य रुपी कुमकुम व अबीर गुलाल चढाये‌। फिर अक्षत, गंध रुपी चंदन, पुष्प सर्मपित करें।
      6. अंग पूजन व अष्ट सिद्धि पूजा—बाएँ हाथ मे चावल लेकर माँ के अंगों का पूजन करे, फिर पुन: बाएँ हाथ मे चंदन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से अष्ट-सिद्धियों को समर्पित करते जाए। तत्पश्चात अष्ट लक्ष्मी को मंत्रों सहित पुष्प अर्पित करें। 

   अंग पूजन मंत्र—ऊँ चपलायै नम: पादौ पूजयामि।

                ऊँ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि।

                ऊँ कमलायै नम: कटिं पूजयामि।

                ऊँ कात्यायन्यै नम: नाभिं पूजयामि।

                ऊँ जगन्मात्रै नम: जठरं पूजयामि।

                ऊँ विश्व-वल्ल्भायै नम: वक्ष-स्थलं पूजायामि।

                ऊँ कमल-वासिन्यै नम: हस्तौ पुज्यामि।

                ऊँ कमल-पत्राक्ष्यै नम:-त्रयं पूजायामि।

                ऊँ श्रियै नम: शिर: पूजयामि।

अष्ट-सिद्धि मंत्र— ऊँ अणिम्ने नम:। ऊँ महिम्ने नम:। ऊँ गरिम्णे नम:। ऊँ लघिम्ने नम:। ऊँ प्राप्त्यै नम:। ऊँ प्राकाम्यै नम:। ऊँ ईशितायै नम:। ऊँ वशितायै नम:।                    

अष्ट-लक्ष्मी मंत्र—ऊँ आद्ध्य-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ विधा-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ सौभग्य-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ अमृत-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ कमलाक्ष्यै नम:। ऊँ सत्य-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ भोग-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ योग-लक्ष्म्यै नम:।

      1. धूप व दीप-समर्पण—सुंदर, मनोहर खुशबु भरी धूप व शुद्ध घी का दीपक समर्पित करे।
      2.  नैवेध-जल समर्पण—यथा योग्य खाध-पदार्थ व जल समर्पित करें। तत्पश्चात श्री लक्ष्मी को पान-सुपारी व इलायची समर्पित करें।
      3. आराधना—श्री लक्ष्मी के 108 नाम, श्री सूक्तम, मंत्र, लक्ष्मी चालीसा द्वारा देवी की आराधना की जाती हैं। आसपास के वातावरण को सुगंधित बना कर पूजा आरम्भ करें। पहले कुछ देर अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें, फिर अपने ईष्ट को याद करने के बाद कमल गट्टे की या स्फटिक की माला से जाप करें। महामृत्युंज़य व नारायण मंत्र का भी जाप करें।        
      4. दक्षिणा-प्रदक्षिणा—श्री लक्ष्मी को स्वर्ण-चाँदी व पुष्प रुपी दक्षिणा समर्पित करें। अब श्री लक्ष्मी की बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा करें।
      5. साष्टांग-प्रणाम/क्षमा प्रार्थना—श्री लक्ष्मी को अपने आठ अंगों के साथ प्रणाम साष्टांग प्रणाम किया जाता हैं। अंत में पूजा के दौरान हुई किसी भी भूल के लिए श्री लक्ष्मी से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। हे देवी मैं कुछ भी नहीं जानता। मंत्र. क्रिया ओर भक्ति से रहित जो कुछ मैंने किया हैं, वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। यथा सम्भव प्राप्त उपचार वस्तुओं से जो यह पूजन किया हैं, उससे श्री लक्ष्मी प्रसन्न हो। 

दीवाली के त्यौहार का मतलब दोस्तों रिश्तेदारों को मिठाई उपहार देना ही नहीं, अपितु ज़रुरतमंद लोगों को दान दे कर उनको खुश करना हैं, जिससे छोटे बच्चों के चेहरे पर खुशी की चमक आए। दान में बर्तन भी देने हो तो उसमे भी कुछ न कुछ भर कर ज़रुर दे। शास्त्र कहते हैं कि दान दिए बगैर पर्व पूर्ण नहीं होता। 

 

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