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Vaastu Devta - 45

45 देवी देवता “वास्तु पुरुष”

पौराणिक कथाओं के अनुसार भग्वान शंकर और अंधकासुर दैत्य के मध्य भयंकर युद्ध हुआ, इस युद्ध में शिव व दानव के शरीर से कुछ पसीने की बुंदे निकली और एक विशाल मुख वाला एक प्राणी पैदा हुआ। जिसे देख कर सभी ड़र कर इधर-उधर भागने लगे। तभी ब्रह्मा जी के कहने पर सभी देवताओ ने मिल कर उसे अधोमुख ज़मीन में दबा दिया और 45 देवता उसके शरीर पर बैठ गये जिससे उसके सभी क्रियाक्लापों को रोक दिया जा सके। सभी देवताओं के निवास करने के कारण ब्रह्माजी ने इसका नाम वास्तु पुरुष रखा।

उसका शरीर ईशान से नैऋर्त्य दिशा में था और पेट धरती की ओर हैं। उसका सिर ईशान, मुड़े हुए पंज़े और पैर नैऋर्त्य में, दायां घुटना और दाई कोहनी आग्नेय में और बायां घुटना व कोहनी वायव्य में हैं। वास्तु पुरुष के सभी अंग भार ढोने के लिए सक्षम हैं। उसकी नाभि और ह्रदय क्षेत्र में को आकाश की ओर खुला रखा जाता हैं। ईशान दिशा मुख हैं जिस पर भार कम रखा जाता हैं। वास्तु पुरुष के शरीर पर कुछ मर्म स्थान हैं- जैसे सिर और ह्रदय इन कमज़ोर स्थानों पर भारी वज़न जैसे स्तंभ या शहतीर नहीं होना चाहिए।             हमसें मिलने के लिए सम्पर्क करे!

45 देवताओं द्वारा व्यवस्थित वास्तुपुरुष पूरा ब्रह्माण्ड ही धरती पर उतर आता हैं। ब्रह्मा. विष्णु, महेश, दस दिकपाल और 45 देवता सभी वास्तु पुरुष के शरीर पर विराज़मान हैं।

किसी भी निर्माण कार्य करने हेतु 45 देवताओ कि प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से पूजा आराधना करनी चाहिए। 

देवो का इसके शरीर पर बैठना स्थिरीकरण का प्रतीक हैं। किसी भी भवन की नीव रखने के लिए स्थिर और कठोर धरती सर्वोत्तम हैं। जब भी हम किसी घर, भवन, कार्यलय, पाठशाला, तालाब, मंदिर, कारखाना और व्यवसायिक स्थल का निर्माण करते हैं तब सभी जगह पर वास्तुपुरुष की उपस्थिति विधमान होती हैं। 

यह 45 शक्तियां इस प्रकार हैं:                     वास्तु सीखे!

  1. ब्रह्मा- विश्व का सर्वोच्च निर्माता और भवन के केंन्द्र/ब्रह्मस्थान स्थान के स्वामी
  2. भुधर- इनका स्थान उत्तर में हैं और ये अभिव्यक्त व प्राप्तियो के निर्माता हैं।
  3. आर्यमा- जो सबको भौतिक दुनिया से जोड़ने का काम करता हैं। दुल्हे दुल्हन को मिलाने का और विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का कार्य करता हैं। जो पूर्व दिशा का स्वामी हैं।
  4. विविस्वान- यह परिवर्तन को नियंत्रित करता हैं और प्रकिया को आगे बढ़ाता हैं। इनका स्थान दक्षिण दिशा हैं।
  5. मित्र- यह प्रेरक हैं और उत्तेजना की शक्ति रखते हैं जो दुनिया को एक साथ बांधने की क्षमता रखते हैं। इनका स्थान पश्चिम दिशा हैं।
  6. आप- इनके पास सभी प्रकार की हीलर की शक्तियां हैं। जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं। मुसीबतो को झेलने की शक्ति देता हैं। मानव में बल व विज़न देता हैं। जल की सभी राशियां चलायमान इनसे ही रहती हैं। इनका स्थान उत्तर-उत्तर-पूर्व N 7 व उत्तर-पूर्व N 8 में हैं।   
  7. आपवत्स- आप योजना देते हैं और आपवत्स इन योजना को पूरा करने की योग्यता देते हैं। ये देव रोग से लड़ने के लिए दवाईयों को शक्ति देते हैं। शरीर और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं। इनका स्थान उत्तर-पूर्व E1 व पूर्व-उत्तर-पूर्व E2 में हैं।
  8. सविता- यह ध्यान की शक्ति को बढ़ाता हैं। यह शक्ति परेशानियों को सुलझाने में मदद करता हैं। जातक के अन्दर किसी कार्य को शुरु करने की इच्छा शक्ति व प्रेरणा आती हैं और आगे बढ़ने में प्रेरित करते हैं। बाहरी मदद के साथ धन और सहयोग की प्राप्ति होती हैं। गणेश जी का स्थान पर होना बहुत शुभ माना जाता हैं। इनका स्थान पूर्व-दक्षिण-पूर्व E7 व दक्षिण-पूर्व E8 में होता हैं।
  9. सावित्र- गायत्री मंत्र इस ऊर्जा की शक्ति हैं। श्री यंत्र यहा शुभ होता हैं। ये हर कार्य में ढृंढ़ संकल्प की शक्ति व योग्यता देते हैं। जो जातक को हर परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देती हैं। यह देव शक्ति के साथ पोषण देती हैं। यहां घी जैसी वस्तुए रख सकते हैं। इनका स्थान दक्षिण-पूर्व S1 व दक्षिण-दक्षिण-पूर्व S2 में होता हैं।
  10. इंद्र- ये देव धन के प्राथमिक देव व रक्षक हैं। ये गर्भधारण की शक्ति देते हैं और प्रसव के समय बचाव करते हैं। यह शक्ति सोच, विकास, जीवन जीने की शक्ति के साथ लम्बी उम्र देते हैं। इनकी दिशा दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम S7 व दक्षिण-पश्चिम S8 हैं।         ज्योतिष सीखे!
  11. जय- ये हथियारों के साथ जीवन में जीत प्रदान करते हैं। कार्य में कुशलता के साथ कौशल देते हैं। यहां सीखने की पुस्तके व उपकरण रखे जाते हैं। यह दिशा दक्षिण-पश्चिम W1 व पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम W2 हैं।
  12. रुद्र- ये जीवन में सभी गतिविधियों के प्रवाह को बनाये रखता हैं। यहां माल व खाधान्न पदार्थ रख सकते हैं। शरीर और भावनाओं को संतुलन करने में मदद करते हैं, यह दिशा रोने के लिए उत्तम हैं। यह दिशा पश्चिम-उत्तर-पश्चिम W7 व उत्तर-पश्चिम W8 हैं।               वास्तु के अन्य आर्टिकल्स पढ़ने के लिए यहां देखे!
  13. राजयक्ष्मा- ये देव आधार व शक्ति देकर मज़बूती व पकड़ प्रदान करते हैं। यह असंतुलित होने पर मन अस्थिर हो जाता हैं। ये दिशा उत्तर-पश्चिम N 1 व उत्तर-उत्तर-पश्चिम N2 हैं।
  14. अदिति- ये शांतिदूत व सुरक्षा की शक्ति हैं और अखंड़ता बनाये रखने में मदद करती हैं। यहां की ऊर्जा खुद के साथ जुड़ाव प्रदान करती हैं। यहां असंतुलन होना जातक को परेशान व बैचेन करता हैं और किसी अज्ञात का ड़र सताता रहता हैं और जातक दिशाहीन व असंतुलित महसूस करता हैं। यह दिशा ध्यान के लिए व कठिन परिस्थितियों से बाहर आने के लिए उत्तम हैं। यह दिशा उत्तर-उत्तर-पूर्व N7 हैं।
  15. दिति- ये ऊर्जा दूरदर्शी और उदार सोच को व्यक्त करने की क्षमता देती हैं। जीवन के वास्तविक सत्य और प्रकृति के वास्तविक रुप को देखने के लिए दृष्टि को विकसित करने की क्षमता देती हैं। यह मन की संतुलित अवस्था व सही ऊद्देश्य को हासिल करने की स्पष्टता देता हैं। ये दिशा असंतुलित हो जाये तो मन भ्रमित और कल्पना शक्ति कम हो जाती हैं। यह दिशा उत्तर-पूर्व N8 हैं।
  16. शिखी- यह ऊर्जा विचारों को व्यक्त करने और दुनिया को विचारो से प्रभावित करने की शक्ति देती हैं। यह सभी शक्तिशाली विचारो का स्रोत्र हैं। यह दिशा उत्तर-पूर्ब E1 हैं। यह शिव की तीसरी आंख हैं जो योजनाओं की शक्ति देता हैं। यह दिशा असंतुलित होने से आंखो में परेशानी होती हैं।
  17. प्रजन्या- यह उर्जा सभी वनस्पतियों की उत्पत्ति का स्रोत्र हैं। जब कोई यहां ध्यान करता हैं तो अंतदृष्टि व मन की जिज्ञासा को संतुष्टि मिलती हैं और इनसाईटस बढ़ती हैं। यह शक्ति पौधो में वृद्धि और फलों के उत्पादन को बढ़ाती हैं। यह दिशा पूर्व-उत्तर-पूर्व E2 हैं।             कोई भी सवाल, अभी बात करे! 
  18. भीष्म- यह ऊर्जा गुरुत्वाकर्षण जैसे दो चीज़ो को रगड़कर नई चीज़ बाहर लाने में में मदद करती हैं। यह दिशा असंतुलित होगी तो बहुत सोचने के कारण किसी कार्य के अंजाम तक पहुंचने में देरी होगी और बिना सोचे नतीजा सामने आएगा। यह दिशा पूर्व-दक्षिण-पूर्व E7 हैं।
  19. आकाश- यह आंतरिक मन को प्रकट करने की दिशा देता हैं और अंदर की ऊर्जा को बढ़ाता हैं। यह दिशा दक्षिण-पूर्व E8 हैं। 
  20. अनिल- यह ऊर्जा वायुदेव से जुड़ी हैं। यह ऊर्जा कठिन कार्य व परिस्थितियों में आगे बढ़ने की शक्ति व आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। यह दिशा दक्षिण-पूर्व S1 हैं।
  21. पूषा- यह ऊर्जा मज़बूती और पोषण को बढ़ाती हैं। यह संतुलित हो तो यात्रा में दुर्घटना से बचाव व खोया हुआ धन वापिस पाने में सहायक और अपने लिए साथी को चुनने में इंसाईट देती हैं। इमारतो को विनाश से बचाने के लिए सहायक होती हैं। यह दिशा दक्षिण-दक्षिण-पूर्व S2 हैं।
  22. भृंगराज- यह ऊर्जा भेदभाव से बचाने वाली हैं। यह ज्ञान के खत्म होने पर जो बचता हैं वही ऊर्जा का स्थान हैं। भोजन से पोषक तत्वों को निकाल कर जो बचता हैं उसकी दिशा हैं। यह दिशा असंतुलन हो तो खर्च में वृद्धि होती हैं और प्रयास सफल नहीं होते और जातक बेकार की गतिविधियों में समय बर्बाद करता हैं। यह दिशा दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम S7 हैं।
  23. मृग- यह ऊर्जा किसी चीज़ को खोज़ने व उसकी जांच करने की जिज्ञासा देती हैं। अभ्यास के माध्यम से विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने के लिए कौशल और ललक देती हैं। यह दिशा दक्षिण-पश्चिम S8 हैं।
  24. पितृ- यह पूर्वज़ो से जुड़ी ऊर्जा हैं। यह दिशा अपने अस्तित्व के लिए खुशी के सभी साधन और स्रोत्र प्रदान करती हैं। परिवार के साथ प्यार व संबंध विकसित करती हैं। जीवन में किसी भी स्थिति को संबोधित करने के लिए कौशल और क्षमता बढ़ाती हैं। यह दिशा दक्षिण-पश्चिम W1 हैं।            क्या आपका नाम आपके अनुरुप है! 
  25. दौवारिक- यह ऊर्जा प्रतिभा, अनंत व विरासत से जुडा पारंपरिक ज्ञान देती हैं। पुराने ज्ञान को बनाये रखने की क्षमता देती हैं। ज्ञान के एक चरण से दुसरे चरण में ले जाने में मदद करती हैं, सही निर्णय लेने में मदद करती हैं और बेकार के विषय व विचारो में उलझने नहीं देती। यहां बैठने से स्मरण शक्ति व अवचेतन मन को बढ़ावा मिलता हैं। यह संतुलित होने से अध्ययन करने में मदद मिलती हैं नहीं तो छात्र ज्ञान व कौशल में कमज़ोर रहते हैं। हमें अपना धन, ऊर्जा, समय और ज्ञान को सही दिशा में कैसे लगाना हैं उसको समझने की प्रेरणा देती हैं। शारीरिक और मानसिक स्तर समय की बरबादी को बचाता हैं। यह दिशा पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम W2 हैं।
  26. शोश- यह शुष्क दिशा हैं जहां भावनाओं को रुद्र द्वारा सुखा दिया जाता हैं। अगर मन में तनाव महसूस कर रहे हैं तो यहां कुछ देर रुकने या थोड़ा रोने से सारी नकारात्मक भावनायें और अवसाद खत्म हो जाते हैं। यह दिशा पश्चिम-उतर-पश्चिम W7 हैं।
  27. पपीक्ष्मा- यह दिशा व्यसनों, नशीले पदार्थ, रोग और मन को कमज़ोर करने की दिशा हैं। जातक अंन्य की गलतियों को ही निकालता रहता हैं और समाज से अलग हो जाता हैं जिससे व्यसनों व नशे का सहारा लेता हैं। शरीर में ग्लानि और दुखों का जमाव होता हैं जिससे मानसिक रुकावटे आती हैं। यह दिशा उत्तर-पश्चिम की दिशा W8 हैं।
  28. रोग- यह दिशा कमज़ोर ताकत को मज़बूती प्रदान करती हैं और रोगो को नष्ट करके शक्ति देती हैं। कठिन समय में सहायता व मज़बूती देती हैं। जैसे इन्वर्टर चार्ज़ के लिए बिज़ली लेता हैं और जरुरत के समय सहायता करता हैं उसी प्रकार यह दिशा भी संतुलित हो तो जरुरत पड़ने पर लोगों से धन व सहायता प्रदान करती हैं। यह दिशा उत्तर-पश्चिम N2 हैं।
  29. नाग- यहां भावनात्मक रुप से कमज़ोर इंसान को आनंद मिलता हैं और लालसा व तृष्णा में संतुष्टि मिलती हैं। यह दिशा उत्तर-उत्तर-पश्चिम N2 हैं।
  30. जयंत- यह दिशा सभी प्रयासों में विज़य व सफलता दिलाती हैं और मन व शरीर को ताज़ा करता हैं। व्यक्ति में नये विचारों को निष्पादित करने के लिए उत्साह देती हैं। घर में खुशनुमा माहौल बना रहता हैं और सामाजिक संपर्क बढ्ता हैं। यहां तलवार रखने भाषा में कड़वाहट आती हैं। यह दिशा पूर्व-उत्तर-पूर्व E3 हैं।                                                    रत्नों के बारे मे जाने!
  31. महेंद्र- ये लोगों के बीच सहयोग की शक्ति विकसित करने की महत्वपूर्ण ऊर्जा हैं। इसमें सर्वौच्च प्रशासन से काम लेने व प्रशासक के गुण हैं और उच्च पद वाले सरकारी लोगो से संबंध बनाना और भौतिक सुखो को बढ़ाने में सहायक करता हैं। यह पूर्व दिशा E4 हैं।
  32. सूर्या- यह आंखो को दूरदर्शिता और निरीक्षण करने की शक्ति देता हैं। किसी भी सिस्टम को नियंत्रक करने की क्षमता हैं। सूर्य के संतुलित होने से जातक को प्रसिद्धि व पहचान मिलती हैं। यह पूर्व दिशा E5 हैं।
  33. सत्य- यह ऊर्जा प्रामाणिकता, विश्वनीयता और प्रतिष्ठा देता हैं। जातक के अंदर किसी भी बात का विश्लेषण करने की क्षमाताये विकसित होती हैं। यहां असंतुलित होने पर प्रकृति में तीखापन, आक्रामकता और भावनात्मक उछाल आता हैं। यह दिशा पूर्व-दक्षिण-पूर्व E6 हैं।
  34. विथथ- यह ऊर्जा असत्य, झूठ, दिखावा व ढोंग से जुड़ी हुई हैं। जिसमें जातक सक्षम और स्वस्थ नहीं होता और इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग कर सकता हैं। यहां असंतुलित होने पर समाज में असहमति और अपमान मिलता हैं। यह दक्षिण-दक्षिण-पूर्व S3 की दिशा हैं।       अपने हाथों की लकीरों को समझे!
  35. गृहक्ष- यह वह ऊर्जा हैं जो मन को नियंत्रित करती हैं। यह ऊर्जा मन की सीमाओं और सभी कार्यों को परिभाषित करती हैं। यह दक्षिण दिशा S4 हैं।
  36. यम- इस ऊर्जा का अर्थ आत्म-नियंत्रण और नैतिक कर्त्तव्य हैं। यह ऊर्जा जगत को बैलेंस नियमित करती हैं। जगत को कानून से बांधे रखती हैं। यह केवल कानूनों और सिद्धांतो के अनुसार मन को समझाती हैं और सही दिशा की ओर प्रेरित करती हैं। यह दिशा दक्षिण S5 हैं।
  37. गंधर्व- यह ऊर्जा सोमरस से मानव शरीर को जीवन शक्ति दे कर संरक्षित करती हैं। जो भोजन के सभी महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को निकालता हैं। यह संगीत और कला के सर्वौच्च शक्ति हैं। संगीत द्वारा मन को परमानंद स्थिति तक पहुंचाता हैं। यह दिशा दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम S6 हैं।
  38. सुग्रीव- यह ऊर्जा सुंदरता प्राप्त करने की शक्ति और सभी विषयों को आसानी से समझने योग्य व प्राप्तकर्ता बनाने की शक्ति देती हैं। ज्ञान के अभ्यास के लिए शक्ति व विधाभ्यास मिलती हैं। बच्चे को वह शक्ति मिलती हैं जिसकी उसको बचपन से ही ज्ञान प्राप्त करने और धन के लिए आवशयक होती हैं। यह दिशा असंतुलन होने पर बच्चे कई प्रयासों के बाद भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती हैं क्योंकि उन सभी को समझते ही भूल जाते हैं। यह दिशा पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम W3 हैं।
  39. पुष्पदंत- यह दिशा सहायक की ऊर्जा हैं। यह कुबेर का वाहन जिसका गुण विस्तार और खिलना हैं। यह दिशा संतुलित होने पर जीवन में समृद्धि, वृद्धि व विकास की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती हैं। जीवन में सुगंध और पोषण इसी शक्ति द्वारा मिलती हैं। यह वरुण देव की पश्चिम दिशा W4 हैं।                            पूजा करवाने के लिए सम्पर्क करे!
  40. वरुण- यह ऊर्जा निरीक्षक और दुनिया को नियंत्रक करती हैं। यह मनुष्य की भावनाओं की प्रवृत्ति को नियंत्रित करती हैं और उसको तरोताज़ा रखती हैं। दुनिया में सभी कार्यों को गति प्रदान करती हैं। एक जोड़े को बांधे रखने में शक्ति मिलती हैं जिससे विकास व समृद्धि आती हैं। यह दिशा पश्चिम W5 हैं।
  41. असुर- यह जादू और मायावी शक्तियों की के आराध्य देव हैं जो आध्यात्मिकता और आध्यात्मिक गहराई देता हैं। मन को प्रलोभनोंं और झुठी आशाओं को मुक्त करके आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ने में मदद करता हैं। यह सभी नकारात्मक शक्तियों को दर्शाता हैं तथा सभी दानवी, आसुरी और मायवी के साथ दैवी शक्ति को भी दर्शाता हैं। यह दिशा पश्चिम-उत्तर-पश्चिम W6 हैं।
  42. मुख्य- यह शक्ति रक्षा से जुड़ी हैं ये सभी ऊर्जाओ में प्रमुख जो किसी भी इमारत और भवन के उद्देश्य और अभिव्यक्ति की प्रक्रिया से जुड़ी हुई हैं। यह शक्ति बिक्री के लिए तैयार उत्पादनों को दुनिया में प्रकट करने का विचार देती हैं और उसको बेच कर धन लाने का उद्देश्य पूरा करती हैं। यह दिशा उत्तर-उत्तर-पश्चिम N3 हैं।
  43. भल्लव- यह बहुतायत की शक्ति हैं। यह सभी प्रयासों और उनके परिणामों को बढ़ाता हैं। अगर जीवन में कुछ बडा हासिल करना हैं तो इस दिशा को संतुलित करता हैं। यह उत्तर N4 की दिशा हैं।
  44. सोम- यह कुबेर की गद्दी यानि खजाना की ऊर्जा हैं। व्यापार में लाभ प्राप्त करने और दुश्मनों से रक्षा करने की शक्ति देता हैं। इस ऊर्जा में किसी का भी ध्यान आकृषित करने का जादु हैं। व्यावहारिक रुप से सभी कार्यों को धन में परिवर्तित करने की ऊर्जा हैं। यह दिशा संतुलित होने पर सभी जातक के प्रयासों की सराहना करंगे और उनके उत्पादों को खरीदेंगे। यह उत्तर दिशा N5 हैं।
  45. भुजग- यह प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और जीवन रक्षक दवाईयों की ऊर्जा हैं। यह आकृषण की दिशा हैं। धन और स्वास्थ्य के प्रवाह को बिना अवरोध के सुनिश्चित करता हैं। यह शक्ति कुंड़लिनी शक्ति से भी संबंद्ध रखती हैं। यह दिशा उत्तर-उत्तर-पूर्व N6 की दिशा है।                                                                                                                  

Vaastu is basically a traditional Indian system of architecture that originated in India. Vaastu Shastra is the textual part of Vaastu Vidhya. To simplify it “Vaastu” relates to the science of direction that combines all the five elements of nature and balances them with man and materials. It also consists of rules, formulas, and patterns for the execution of the process and for the construction of the houses. Vaastu helps to ensure prosperous and harmonious living in the house by eliminating all the negative energies around us, which have taken away peace from our lives. Vaastu aims to make harmonious buildings at places in tune with mother-nature so that the people residing in a particular building live a happy life.

It is believed that if a building is not constructed or built on the terms of Vaastu, then the thinking, action, and nature of the people inhabiting or working in these buildings is not harmonious and progressive. On the other hand, if the building follows the principles of Vaastu then all Divine Powers help and support people’s positive thinking and progressive actions.

At Raghauv Astrology, our Vaastu Experts shall do a complete detailing of your Living as well as Business space so that you can lead a prosperous & harmonious life.

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Acharya Mohini Bhardwaj

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