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Dhanvaan Yoga

कुंड़ली में धनवान बनने के योग

आज के समय में छोटे से छोटा व बड़े से बड़ा इंसान अमीर आदमी बनना चाहता हैं, सबका एक ही सपना हैं की बहुत सारा धन हो और हो भी क्यों न क्योंकि आज़ के समय में पैसे के बिना तो कोई भी काम नहीं होता। एक बात ध्यान रखे कि बिना मेहनत के कुछ भी नहीं मिलता चिड़िया भी तिनका-तिनका इकठ्ठा करती हैं तभी घोंसला बना पाती हैं।

हम सभी गाडी, बंगला, आभुषण और बहुत सारा धन चाहते हैं। कोई दिन रात मेहनत करता हैं, तब भी केवल अपनी बेसिक जरुरतें ही पूरी कर पाता हैं और किसी के पास इतना धन होता हैं कि सम्भाले नहीं सम्भलता।

शास्त्रों में भी लिखा हैं कि कलयुग में कोई कितना भी विद्वान या चतुर हो पर जो धनवान हैं, बोलबाला उसी का रहता हैं। धन के बिना समाज में कोई सम्मान नहीं देता।    

आइये जानते हैं ज्योतिष के अनुसार धन योग!    अपनी कुंड़ली दिखायें!

कुंड़ली में लग्न लग्नेश की मजबुती बताती हैं की आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में कभी हार नहीं मानेंगे और पैसा कमाने के लिए हमेंशा तत्पर रहेगे।

लगन, २ भाव, ५ भाव, ९ भाव, ११ भाव ये पांच भाव धन के भाव हैं, ये भाव आपस में युति, दृष्टि और आपस में परिवर्तन योग बनाए तो धन योग होता हैं, चाहे जैसा भी एक दूसरे के साथ सम्बंध बनाये तो जातक के पास इनकी दशा में धन आता हैं। इसे महाधन योग भी कहा जाता हैं, जिसमें पंचम और एकादश भाव एकदूसरे के पुरक भाव हैं।    

कुंड‌ली में राजयोग की स्थिति भी धन के लिए बेहतर मानी जाती हैं, अगर केंद्र और त्रिकोण के स्वामी का आपस में संबंध बने तो बलशाली धनयोग बनता हैं। महर्षि पराशर के अनुसार केंद्र को विष्णु और त्रिकोण को लक्ष्मी स्थान कहा गया हैं। अगर केंद्र का स्वामी त्रिकोण का भी स्वामी हैं तो यह एक राजयोग हैं। ज्योतिष सीखें!

धन के कारक ग्रह शुक्र, चंद्रमा और गुरु बली हो तो भी इनकी दशा में धन का आगमन होता हैं। इनका सम्बंध लग्न या लग्नेश से बन जाये तो सोने पर सुहागा होता हैं।   

त्रिकोणाधिपति शनि या मंगल जैसे पापी ग्रह भी अपनी दशा में धन में कमी नहीं आने देते।

नवम, नवमेश यानि भाग्येश और राहु केतु अचानक धनवान बनाते हैं।       Why Worried? Ask a question and get solutions! 

कुंड़ली में मंगल और चंद्रमा एक ही भाव में स्थित हो यह भी धन योग माना जाता हैं।

ये योग होने से भी धन की कमी नहीं आती। चंद्रमा अपनी राशि में मंगल और बुध के साथ लगन में हो तो महाधनी योग होता हैं। 

कुंड़ली में योगकारक ग्रह (केंद्र के साथ त्रिकोण का स्वामी) एकादश यानि लाभ भाव में हो तो जातक धनी होगा। 

नवम और दशम का संबंध होने से कर्माधिपति-धर्माधिपति योग बनता हैं, ऐसे में जातक अपनी किस्मत और मेहनत के साथ धन अर्जित कर नाम कमाता हैं।      

लग्नाधिपति योग चंद्राधिपति योग- लगन या चंद्रमा से 6, 7, 8वें भाव में शुभ ग्रह।   मिलने कि लिए सम्पर्क करें!

अनफा व सुनफा योग- चंद्र से दूसरे व बारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति से जातक अपने मेहनत से धन की प्राप्ति करता हैं।

पुष्फल योग- चंद्रमा की राशि का स्वामी लग्नेश के साथ केंद्र में बलवान स्थिति हो तो धन के साथ यश मान प्रतिष्ठा मिलती हैं।   

सरस्वती योग- यदि बुध, बृहस्पति व शुक्र केंद्र त्रिकोण या दूसरे भाव में एकसाथ या अलग-अलग हो तो सरस्वती योग बनता हैं। इस योग में बृहस्पति को मित्र राशि या उच्च राशि में स्थित होकर बलवान होना चाहिए। इस जातक में जन्मा जातक काव्य, गणित, साहित्य, बुद्धिमान व शास्त्रों में पारांगत, धनवान व व्याख्याकार होता हैं। इस योग के माध्यम से जातक को सरस्वती मां का वरदान मिलता हैं। जातक के अंदर संगीत और गायन की प्रतिभा होती हैं। वह एक मशहूर लेखक और कलात्मक व्यक्तित्व का बन सकता हैं।

श्री नाथ योग- यदि लगनेश, सूर्य और चंद्रमा कुंड़ली में केंद्र या त्रिकोण भाव में अपनी स्वराशि, उच्च राशि या मित्र की राशि में हो तो यह योग बनता हैं। ऐसा जातक प्रसिद्ध, भगवान शिव का प्रेमी, प्रसन्न, दयावान और भाग्यवान होता हैं।       

विपरीत राज योग- ज्योतिष का सामान्य सिद्धांत हैं, कि 6, 8, 12 भावों के स्वामी जहां स्थित हो उस भाव की हानि करते हैं, इसी प्रकार इन्हीं भावों में भी कोई ग्रह हो वह भी उन के कारकत्वों का नाश करती हैं। लेकिन इन्हीं अशुभ भावों के स्वामी अगर इन्हीं अशुभ भावों के साथ सम्बंध बनाये तो अशुभता का नाश होता हैं, जिससे भाग्य में वृद्धि करेगा। इस योग में उत्पन्न जातक बहुत वैभव वाला होता हैं। इसे विपरीत राजयोग कहते हैं जिसमें यदि ३, ६, ८ या १२ भाव के स्वामी एक-दुसरे के भाव में स्थित होकर सम्बंध बनाते हैं तो ऐसे योग को विपरीत राजयोग कहते हैं। उदाहरण- छठे भाव का स्वामी बारहवें भाव में हो, बारहवें भाव का स्वामी छठे भाव में हो तो विपरीत राज़योग बनता हैं। विपरीत राजयोग तीन प्रकार के होते हैं। 1. हर्ष योग, 2. सरल योग 3. विमल योग्।

  1. हर्ष योग: यदि 6 भाव का स्वामी 8 वें या 12 वें भाव में हो तो हर्ष योग बनता हैं। फल: इसमें जातक भाग्यवान, मज़बूत शरीर वाले, शत्रुओं को पराजित करने वाला होता हैं।  
  2. सरल योग: यदि 8 भाव का स्वामी 6 या 12 भाव में हो तो सरल योग बनता हैं। फल: ऐसा जातक निर्भय, लक्ष्मीवान, विधावान, अच्छा धन वाला और समझदार होता हैं।  
  3. विमल योग: यदि 12 भाव का स्वामी 6 या 8 भावों में हो तो यह योग बनता हैं।

सुख सम्पत्ति योग- कुंड़ली में चतुर्थ भाव और नवम भाव का संबंध बन रहा हो तो यह योग बनता हैं। इस योग में जातक अपनी सम्पत्ति से धनवान बनता हैं।  

लक्ष्मी योग- यह योग नाम से ही अतुल्य धन-सम्पति देने वाला हैं। यदि लग्नेश व नवमेश दोनो बलवान होकर केंद्र-त्रिकोण में अपनी स्वराशि या उच्च राशि में हो तो लक्ष्मी योग बनता हैं। इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति सज्जन, धनी, विद्वान, रूपवान, प्रसिद्ध, ईमानदार और सब तरह से सुखों का भोग भोगने वाला होता हैं। ऐसा जातक बहुत उत्साही होता हैं और वह अपने जीवन में आने वाले अवसर जिनसे धन कमाया जाये उनसे लड़ने के काबिल होता हैं। यह योग बहुत धन नाम मान प्रतिष्ठा देने वाला होता हैं। ऐसे जातक के जीवन में अमीर लोग ही आते हैं।

कभी-कभी कुंड़्ली में धन योग होने पर भी धन की प्राप्ति के नहीं होती क्योंकि षष्टेश, अष्टमेश या द्वादेश का सम्बंध शुभ भावों या शुभ ग्रहों से होता हैं। धन में कमी करने के लिए प्रेत बाधा, बुरे कर्म, प्रारब्ध और बहुत से बुरे योग बाधा बनते हैं।  

हाथ में धन योग देखे!   हाथ की लकीरें!

हाथ की उंगलियां व हथेली बराबर आकार की हो।

हाथ का रंग गुलाबी होना चाहिए।

भाग्य रेखा बिल्कुल सीधी व साफ हो, बिना कटे, बिना जाल, बिना काला तिल, बिना द्वीप के तो धन आएगा।

सुर्य रेखा व बुध रेखा भी बिल्कुल सीधी व साफ हो, बिना कटे, बिना जाल, बिना काला तिल, बिना द्वीप के तो धन आएगा।  

अगर हाथ में जीवन रेखा बिल्कुल गोलाई लिए शुक्र पर्वत अधिक हो चंद्र पर्वत से।   

शुक्र पर्वत व गुरु पर्वत न ज्यादा दबा हो न कटी हुई रेखा हो।

शुक्र पर्वत से कोई रेखा सीधी गुरु पर्वत तक जाए तो सरकार से धन की प्राप्ति होती हैं उच्च पद की प्राप्ति होती हैं। भाग्य रेखा सुर्य पर्वत तक जाए तो देश विदेश से धन का साधन बनता हैं। कलाकार, राजनिति में बहुत उच्चा पद मिलता हैं। 

कुछ उपाय करने से भी कमज़ोर धन के योग मज़बूत होते हैं।

उपाय धन प्राप्ति

अपने इष्ट की पूजा करेंं। पितृदोष का उपाय करेंं।

अनार व कनेर की जड़ सिद्ध कर पहने। स्फटिक की माला से माँ लक्ष्मी के मंत्र "ऊँ श्रीं नम:" का जाप किसी सिद्ध जगह में जा कर करे।

श्री सुक्त का पाठ अपनी माँ से आशिर्वाद ले कर करे। किसी शुभ समय में काली व सफेद गुंजा को सिद्ध कर अपने पास चांदी की कटोरी में रखे फिर तीन बार कनक धारा स्रोत्र का पाठ करे। ये सभी जाप व सिद्धि किसी शुभ मुहूर्त ही में करे नहीं तो फल नहीं मिलेगा।      

विष्णु सहस्त्र नाम का नियमित रुप से पाठ करे। अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान करे। एक गाय और कुत्ते को भोजन दे। किसी गरीब कन्या की मदद करे। जरुरतमंद ब्राहमण को अनाज का दान करे।

कुछ नकारात्मक परिस्थितियां- घर के आगे २५ फीट की ऊंचाँई पर पेड़ न हो, दक्षिण हिस्सा बड़ा न हो। घर में सीलन न हो, चींटिया न हो घर में, पानी की बरबादी न हो। घर के वायव्य कोण में पानी की कमी न हो, किसी न किसी भी तरह वहा पानी का साधन बनाए और आग्नेय कोण में पानी का बिल्कुल भी साधन न हो।    

 


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