Dhan Yoga-
हमें ज़ीवन में ज़ीने के लिए सभी प्रकार के सुख व वैभव की आवशयकता होती हैं। धन योग और राज़ योग से ही हमें हमारे पुर्व ज़न्मों द्वारा इस ज़ीवन में धन, वैभव, यश व ज़ीवन की सभी सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं। ज्योतिष से ही हम जान पाते हैं कि क्या हमारी कुण्डली में भी इसी प्रकार के योग हैं। वैदिक ज्योतिष में कुंड़ली में धन और राज़योग भावों से और ग्रहों से बनते हैं। आईये कुछ योगों के बारे में जाने।
धन योग: धन योग को समझने के लिए कुछ योगों को समझना आवाशयक हैं।
धन योग- लगन, २ भाव, ५ भाव, ९ भाव, ११ भाव ये पांच भाव धन के भाव हैं, ये भाव आपस में युति, दृष्टि और आपस में परिवर्तन योग बनाए तो धन योग होता हैं, इनमें भाव और भावेश एक दूसरे के साथ सम्बंध बनाये तो जातक के पास इनकी दशाओं में धन आता हैं। इसे महाधन योग भी कहा जाता हैं, जिसमें पंचम और एकादश भाव एक-दूसरे के पुरक भाव हैं।
राजयोग- कुंडली में राजयोग की स्थिति भी धन के लिए बेहतर मानी जाती हैं, अगर केंद्र और त्रिकोण के स्वामी का आपस में संबंध बने तो बलशाली धनयोग बनता हैं। महर्षि पराशर के अनुसार केंद्र को विष्णु और त्रिकोण को लक्ष्मी स्थान कहा गया हैं। अगर केंद्र का स्वामी त्रिकोण का भी स्वामी हैं तो यह एक राजयोग हैं। अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें मिलनें के लिए सम्पर्क करें।
महाधनी योग- कुंड़ली में चंद्र्मा अपनी राशि में मंगल और बुध के साथ लगन में हो तो महाधनी योग होता हैं।
योगकारक ग्रह- कुंड़ली में योगकारक ग्रह (एक ही ग्रह केंद्र के साथ त्रिकोण का स्वामी) एकादश यानि लाभ भाव में हो तो जातक धनी होगा।
कर्माधिपति-धर्माधिपति- यदि कुंड़ली में नवम और दशम का संबंध होने से कर्माधिपति-धर्माधिपति योग बनता हैं, ऐसे में जातक अपनी किस्मत और मेहनत के साथ धन अर्जित कर नाम कमाता हैं।
लग्नाधिपति योग चंद्राधिपति योग- लगन या चंद्रमा से 6, 7, 8वें भाव में शुभ ग्रह होना इस योग का संकेत हैं। अन्य योगों को जाननें के लिए यहां देखें।
अनफा व सुनफा योग- चंद्रमा से दूसरे व बारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति से जातक अपने मेहनत से धन की प्राप्ति करता हैं। कोई भी सवाल! जवाब के लिए यहां क्लिक करे!
पुष्फल योग- चंद्रमा की राशि का स्वामी लग्नेश के साथ केंद्र में बलवान स्थिति हो तो धन के साथ यश मान प्रतिष्ठा मिलती हैं।
सरस्वती योग- यदि बुध, बृहस्पति व शुक्र केंद्र त्रिकोण या दूसरे भाव में एकसाथ या अलग-अलग हो तो सरस्वती योग बनता हैं। इस योग में बृहस्पति को मित्र राशि या उच्च राशि में स्थित होकर बलवान होना चाहिए। इस जातक में जन्मा जातक काव्य, गणित, साहित्य, बुद्धिमान व शास्त्रों में पारांगत, धनवान व व्याख्याकार होता हैं। इस योग के माध्यम से जातक को सरस्वती मां का वरदान मिलता हैं। जातक के अंदर संगीत और गायन की प्रतिभा होती हैं। वह एक मशहूर लेखक और कलात्मक व्यक्तित्व का बन सकता हैं। ऐसे में जातक के पास अपने इसी प्रतिभा की वज़ह से बहुत धन होता हैं।
लक्ष्मी योग- यह योग नाम से ही अतुल्य धन-सम्पति देने वाला हैं। यदि लग्नेश व नवमेश दोनो बलवान होकर केंद्र-त्रिकोण में अपनी स्वराशि या उच्च राशि में हो तो लक्ष्मी योग बनता हैं। इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति सज्जन, धनी, विद्वान, रूपवान, प्रसिद्ध, ईमानदार और सब तरह से सुखों का भोग भोगने वाला होता हैं। ऐसा जातक बहुत उत्साही होता हैं और वह अपने जीवन में आने वाले अवसर जिनसे धन कमाया जाये उनसे लड़ने के काबिल होता हैं। यह योग बहुत धन नाम मान प्रतिष्ठा देने वाला होता हैं। ऐसे जातक के जीवन में अमीर लोग ही आते हैं।
मंगल-चंद्रमा- अगर कुंड़ली में मंगल और चंद्रमा एक ही भाव में स्थित हो यह भी धन योग माना जाता हैं।
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कुछ अन्य महत्वपूर्ण योग होने से भी धन की कमी नहीं आती यह भी बहुत ही उत्तम धन योग होते हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंड़ली में लग्न लग्नेश की मजबुती बताती हैं, की आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में कभी हार नहीं मानेंगे और पैसा कमाने के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।
धन के कारक ग्रह शुक्र, चंद्रमा और गुरु बली हो तो भी इनकी दशा में धन का आगमन होता हैं। इनका सम्बंध लग्न या लग्नेश से बन जाये तो सोने पर सुहागा होता हैं।
त्रिकोणाधिपति शनि या मंगल जैसे पापी ग्रह भी अपनी दशा में धन में कमी नहीं आने देते।
नवम, नवमेश यानि भाग्येश और राहु केतु भी अचानक धनवान बनाते हैं।
कभी-कभी कुंड़्ली में धन योग होने पर भी धन की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि षष्टेश, अष्टमेश या द्वादेश का सम्बंध शुभ भावों या शुभ ग्रहों से होता हैं।
राजयोग:- राज़योगो के अर्थ में जातक के जीवन में उन्नति (व्यवसायिक, पारिवारिक, सामाजिक) और सुख-सुविधाओं के साथ वैभव भरा जीवन होता हैं। राजयोग में जातक को नाम, प्रसिद्धि, धन, प्रतिष्ठा और उच्च पद मिलता हैं। कुछ द्वारा हम राजयोगों को समझ सकते हैं। अपने व्यवसाय के बारें में जानने के लिए यहां देखे!
धन के लिए हम कुण्ड़ली के 2, 6, 9 व 11 भाव को देखते हैं, ये भाव मज़बूत हो तो धन आता हैं, पर धन रुके ये भी ज़रुरी हैं। जिसके लिए गुरु(धन) व शुक्र(वैभव) का शुभ होना बेहद आवशयक हैं। गुरु शुक्र खराब या कमज़ोर हो तो धन का आगमन देरी से होगा, पर रुकेगा नही। शुक्र कमज़ोर होने पर भी धन हो तो वैभव नही झलकेगा, अपने घर, कपड़ों व वाहन पर ध्यान नही देगा उसको सज़ावट या साफ-सफाई मे दिलचस्पी नही होगी। अच्छे धन व वैभव के लिए शुक्र का मज़बुत होना आवशयक हैं, तभी वैभव झलकेगा। धन की बचत के लिए गुरु का शुभ होना ज़रुरी हैं। मंगल, राहु व शनि भी धन लाते हैं, पर इन ग्रहों से आया धन रुकता नहीं हैं।
9 व 10 भाव मे शनि व राहु का प्रभाव धन मे कमी लाता हैं। 2, 9 व 10 भाव मे शनि व राहु का प्रभाव पैसे होने पर भी अचानक परेशानी लाता हैं। राहु शनि के योग के खराब योग होने पर दरिद्रता भी आती हैं। जिसके लिए गुरु का शुभ होना व उपाय करना आवशयक हैं तभी धन आएगा भी और रुकेगा भी।
हाथ में जीवन रेखा जितना बड़ा घेरा बनाते घुमेगी, उतना ही सौभाग्य अच्छा होगा। गुरु पर्वत पर बिना कटा क्रास हो या चतुर्भुज़ बना हो तो धन का अच्छा निवेश होता हैं। ज़ीवन रेखा गुरु पर्वत से शुरु हो तो सलाह से ही निवेश करें। भाग्य रेखा लहराती हो तो धन नियमित रुप से नही आएगा और आएगा तो कभी भी रुकेगा नही। भाग्य रेखा कही से टुटी हो या चलते हुए रुक जाए तो धन अधिक खर्च करने से बचना चाहिए। जिस जगह भाग्य रेखा कटे, जाल हो उस समय मे धन का नुकसान हो सकता हैं। बुध रेखा टुट-टुट कर आगे चले तो धन रोकना कठिन होगा। बुध की उंगली बाहर को मुड़ी हो तो धन की स्थिति साधारण बनी रहेंगे, पर ज़रुरत पडने पर पैसे की कमी कभी नहीं आएगी। हाथ पर अधिक लकीरें होने पर कोई भी काम करे तो सलाह से करें। अगर हथेली का आकार बडा हो व उंगलियों का आकार छोटा हो तो, जातक जिम्मेदार होगा व धन का खर्च भी कम करेगा।
2भाव मे राहु शनि हो या कोई दुष्प्रभाव हो तो माँ बेटी को धन देते रहे, उनके नाम से धन संचित करें या बैंक अकाउंट उनके नाम से खोले।
कुछ उपाय करते रहने से हम धन के नुकसान से बच सकते हैं और धन आने मे जिन कठिनाईयों का सामना करना पडता हैं उसमे भी निज़ात मिल सकती हैं।
केंद्र त्रिकोण के स्वामी के सम्बंध से राजयोग बनता हैं। (त्रिकोण लक्ष्मी व केंद्र विष्णु स्थान के भाव हैं।)
दूसरे व पंचम भाव का स्वामी दूसरे व पंचम या नवम या दशम भाव में हो।
दूसरे व एकादश भाव का स्वामी दशम भाव में हो।
चतुर्थ, पंचम, षष्टम, दशम या एकादश भाव में स्थित राहु कि दशा।
तृतीय भाव में स्थित शुक्र व चंद्र्मा की दशा।
नीचभंग राज़योग।
चतुर्थ और नवमेश का सम्बंध (सुख-सम्पत्ति योग)
केंद्र-त्रिकोण का सम्बंध् (लक्ष्मी-विष्णु योग)
नवमेश और दशमेश का सम्बंध् (कर्माधिपति-धर्माधिपति योग)।
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