हाथ की अंगुलिया- हाथ के नाखून
हस्तरेखा के अनुसार हमारे हाथों की अंगुलिया लम्बी होती हैं या छोटी होती हैं, लेकिन हथेली की लम्बाई से उनका कोई संबंध नहीं होता हैं।
लम्बी अंगुलिया- हाथ में लम्बी अंगुलिया होने पर जातक में कला की विशेष की प्रवृति होती हैं, चाहे कमरे की सज़ावट हो, नौकरो के प्रति व्यवहार, चित्रकारी हो या चाहे कोई भी रचनात्मक कार्य हो सब में कुशलता देखी जाती हैं। ऐसे लोग अपने वस्त्रो की सज्जा में छोटे-छोटे कमी को देखने में नही चूकते हैं, कभी कभी तो वे इस दिशा में सनकियों की तरह व्यवहार करने लगते हैं।
छोटी अंगुलिया- हाथ में छोटी अंगुलिया वाले लोगो में शीघ्रता या जल्दवाजी की प्रवृति बहुत तीव्र होती हैं। वे स्वभाव से आवेशात्मक होते हैं। वे छोटी-छोटी बातों पर घ्यान देना पसन्द नहीं करते जो कुछ समस्या उनके सामने आये वे उस पर तुरन्त ही निर्णय ले लेते हैं। वे दिखावे की परवाह नहीं करते न ही वे समाज की परिपाटीबद्धता के पाबंद होते हैं। वे सोचने-समझने में जल्दबाज़ी करते हैं और मुंहफट होते हैं। यदि अंगुलिया मोटी व बेड़ोल हो और साथ में छोटी भी हो तो जातक क्रुर और स्वार्थपूर्ण स्वभाव के होते हैं।
यदि हाथ में अंगुलिया तनी हुई और अन्दर की ओर मुड़ी हो या स्वाभाविक रूप से संकुचित हो तो जातक अत्यंत सावधानी बरतने वाले अल्पभाषी व कम मिलने-जुलने वाले और कायर होते हैं। जब अंगुलिया लचकदार, पीछे की ओर धनुष के सामान मुड़ जाती हैं, तो जातक अत्यंत मीठा और आकर्षक स्वभाव का होता हैं। समाज में वह लोगों द्वारा पसन्द किया जाता हैं और मैत्री की भावना से परिपूर्ण होता हैं। ऐसा जातक चतुरता के साथ हर बात को जानने की जिज्ञासा और उत्सुकता रखने वाला होता हैं। यदि अंगुलिया स्वाभाविक रूप से टेढ़ी-मेड़ी और विकृत हो तो जातक स्वभाव से घोखेबाज और सीधे रास्ते पर न चलने वाला व विकृत मस्तिष्क, सदा दूसरों की बुराई करने वाला होता हैं। अपने हाथों की रेखाओं से जुड़े अन्य आर्टिकल्स पढ़े!
यदि हाथो की अंगुली के अग्रभाग पर अंदर की ओर मांस की गोल गद्दी-सी हो तो जातक में अत्यधिक संवेदनशीलता और व्यवहार कुशल होती हैं, साथ ही वह सदा प्रयत्नशील होता हैं, कि उसके कारण किसी दूसरे को किसी प्रकार का कष्ट या पीडा प्राप्त न हो।
यदि हाथों की अंगुलियां अपने मूल स्थान पर मोटी और फूली हुई हो तो जातक दूसरों के बजाय अपने आराम का अधिक उत्सुक होता हैं। वह खाने-पीने और अच्छे रहन-सहन का बहुत शौकीन होता हैं। यदि मूल स्थान पर अंगुलिया पतली आकर की हो तो जातक अपने स्वार्थ की किंचित मात्र भी परवाह नहीं करता और खान-पान में सावधानी रखने वाला और केवल अपने मन पसन्द की चुनी हुई वस्तुओ में रूचि रखता हैं।
अगर हाथ की अंगुलिया खुली हुई हो और तर्जनी और मघ्यमा के बीच में अधिक फैसला हो तो जातक स्वतंत्र विचार का होता हैं। यदि मध्यमा और अनामिका के मघ्य में अधिक फासला हो तो जातक स्वतंत्र रूप से कार्य वाला होता हैं। अपने व्यापार ले बारे में कुछ जानना चाहते है तो बात करे!
अंगुलिया की एक-दूसरे के अपेक्षाकृत लम्बाई छोटी-
प्रत्येक हाथ में अंगुलियों की लम्बाई में अंतर होता हैं। किसी हाथ में तर्ज़नी अंगुली बहुत छोटी होती हैं, किसी हाथ में मधयमा के बराबर होती हैं। ऐसा अन्य अंगुलियों के संबंध में भी होता हैं।
हाथ में तर्जनी अंगली को वृहस्पति या गुरु की अंगुली भी कहते हैं- जब तर्ज़नी अंगुली अत्यधिक लम्बी हो जातक अत्यंत घमंड़ी बन जाता हैं और उसमें दूसरो पर शासन रखने और लोगो पर अपना प्रभुत्व जमाने की प्रवृति होती हैं। ऐसी अंगुली प्राय: कट्टर, धार्मिक और राजनैतिक नेताओं के हाथों में पाई जाती हैं और ऐसे लोग अपने नियम स्वयं बनाने वाले होते हैं। जब वह तर्जनी अंगुली असाधारण रूप से लम्बी हो और मघ्यमा के बराबर हो तो जातक में घंमंड की मात्रा और भी अघिक होती हैं उसको प्रभुत्व का नशा उन्मत बना देता हैं और वह समझने लगता हैं कि वह संसार में सबसे ऊंचा और महान हैं। नेपोलियन और हिटलर की भी अंगुली ऐसी ही थी।
हाथ में मध्यमा को शनि की अंगुली कहा जाता हैं- यदि मध्यमा वर्गाकार और भारी हो तो जातक अत्यधिक गंभीर और अस्वस्थ स्वभाव का होता हैं। यदि मध्यमा नुकीली हो तो जातक के वभाव में निष्ठुरता और छिछोरापन होता हैं। यदि मध्यमा का अग्रभाग चमचाकार हो तो जातक सफल अभिनेता, ओजस्वी वक्ता या सफल धर्मोपदेशक बनता हैं। ऐसी बनवाट से उसके कला संबंधी स्वाभाविक गुणों को प्रोत्साहन मिलता हैं।
हाथ में अनामिका को सूर्य की अंगुली कहते हैं- यदि अनामिका लम्बाई में तर्ज़नी के बराबर हो तो जातक में अपनी कला की प्रवृति द्वारा धन तथा प्रतिष्ठा प्राप्त करने की महत्वांकाक्षा होती हैं। वह यही चाहता हैं की उसका नाम देश या संसार के कोने-कोने में फैल जाए और यदि वह लम्बी हो की मध्यमा की बराबरी करती हो तो जातक जीवन को एक लाटरी या जुआ समझने लगता हैं। उसमें कला के गुण होते हैं और वह सफलता प्राप्त करने के लिए अपना जीवन, धन, मान-सम्मान सब दांव पर लगाने को तैयार रहता हैं। वास्तु/ज्योतिष सीखे!
कनिष्ठिका को बुध की अंगुली कहते हैं- यदि कनिष्ठिका सुंगठित हो और अच्छे आकार की हो तथा लम्बी हो तो वह हाथ के अगुठे के संबंध में संतुलन लाती हैं। ऐसे जातक दूसरों पर अपना प्रभाव डालने में समर्थ होते हैं। यदि वह इतनी लम्बी हो की अनामिका के नाख़ून तक पहुंच जाए तो जातक ओजस्वी वक्ता और प्रतिभावान लेखक बन सकता हैं। ऐसा व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न होता हैं और हर विषय की बात करने की योग्यता रखता हैं।
अंगुलियो की अन्य प्रवृति- जो अंगुली अपने स्थान पर सीधी हो उसे प्रधान और जो अंगुलिया उसकी और झुकी हुई हो उन्हें अप्रधान समझना चाहिए। अप्रधान अंगुलिया अपने गुण और शक्ति का थोड़ा अंश प्रधान अंगुली को दे देती हैं। उदाहरण के लिए यदि तीनो अंगुलिया तर्जनी की और झुकी हो तो तर्जनी को बल मिलता हैं और इस कारण वृहस्पति क्षेत्र संबंधी प्रभाव में वृद्धि होती हैं।
अंगुलियों के प्रारम्भ होने का स्थान लगभग एक ही तल से होना अच्छा समझा जाता हैं यदि कोई अंगुली अन्य अंगुलियों की अपेक्षा नीचे से प्राम्भ हो तो उस अंगुली की शक्ति घट जाती हैं। यदि कोई अंगुली अधिक ऊँचे स्थान से उठती हैं तो उसकी शक्ति में वृद्धि होती हैं।
यदि किसी अंगुली का प्रथम पर्व जिस में में नाख़ून होता हैं वह लम्बा और बड़ा हो तो उस अंगुली के नीचे वाले ग्रह क्षेत्र का मस्तिष्क संबंधी कार्यों पर विशेष प्रभाव होगा। यदि मध्यम पर्व सबसे लम्बा और बड़ा हो तो उस अंगुली से संबंधित ग्रह का प्रभाव व्यावसायिक क्षेत्र में अधिक होगा। यदि तृतीय पर्व सबसे बलवान हो तो सांसारिक कार्यों में अधिक रूचि होगी।
नाख़ून
हस्तरेखा विज्ञान में नाखूनो से ही शरीर में होने वाली गतिविधियों का पता चल जाता हैं। आयुर्वेद डाक्टरों ने नाखुनो की परीक्षा और उनके लक्षणों के संबंध में काफी दिलचस्पी दिखाई हैं। प्रत्येक रोगी यह नहीं जानता या उसे याद नही रहा हो की उसके माता-पिता किस रोग से ग्रसित रहते थे और किस रोग के कारण उनकी मृत्यु हुई थी परन्तु नाखुनों की परीक्षा से वंशानुगत लक्षण का ज्ञान प्राप्त हो जाता हैं। हम नाखुनों से स्वास्थ्य का विवेचन करेंगे और फिर इस विषय पर आएंगे, की उनके द्वारा मनुष्य की प्रवृतियों के संबंध में क्या ज्ञान प्राप्त होता हैं। हमसेंं मिलने के लिए बात करे!
नाख़ून की देखभाल कितनी ही सावधानी से की जाये लेकिन उनके प्रारूप या प्रभाव को किंचित मात्र भी नही बदला जा सकता। नाख़ून चाहे किसी कारणवश टूट गए हो या उनपर पालिश की गयी हो उनका रूप अपरिवर्तित हो जाता हैं।
मकैनिक कितना की काम करे यदि उसके नाख़ून लम्बे हैं तो वैसे रहेंगे। कोई शौकीन सज्जन छोटे चोडे नाख़ून वाले हो तो वे उनको सुंदर और आकर्षण बनाने का चाहे जितना प्रयत्न करे पर नाख़ून छोटे चौडे ही रहेंगे।
नाख़ून चार प्रकार के होते हैं- लम्बे छोटे चौडे और संकीर्ण
लम्बे नाख़ून- लम्बे नाखून उतनी शारीरिक शक्ति के प्रतीक नहीं होते जितने छोटे-चौड़े नाख़ून होते हैं। जिन व्यक्तियों के नाख़ून बहुत लम्बे होते हैं उनको सदा छाती फेफड़े के रोगो के होने की संभावना रहती हैं और यह संभावना और भी अधिक बढ़ जाती हैं। यदि नाख़ून अपने उपरी भाग के पीछे की ओर, अंगुली की ओर या अंगुली के आर-पार वक्र हो गए हो। यह बीमारी की प्रवृति अत्यधिक बढ़ जाती हैं यदि नाख़ून पर धारिया बन जाती हैं या वह पसलीदार उभरा हुआ बन जाता हैं। तब जातक की बीमारी सम्भल भी नही पाती हैं और उसे रोग घेर लेते हैं। लम्बे नाख़ून वालो में शरीर के ऊपरी भागो छाती और सिर के रोग होने की अधिक संभावना होती हैं।
छोटे नाखून- अगर नाखुनो का आकर छोटा हो या बिलकुल न हो तो निश्चिंत रूप से कहा जा सकता हैं की जातक की ह्रदय की कार्यशीलता बहुत निर्बल हैं अर्थात वह ह्रदय रोग से पीड़ित हैं। यदि नाखुनो में चंद्र बड़े हो तो रक्त संचार सही रूप से होता हैं और यदि नाख़ून अपने मूल स्थान पर बहुत चपटे और धंसे हुए हो तो जातक को स्नायु मंडल के रोग होते हैं। यदि बहुत चपटे नाख़ून हो और अपने किनारो पर मुड़ने वर्क होने या ऊपर की और उभरे हो तो उसे पक्षाघात रोग की चिंता माननी चाहिए। विशेषकर जब वे भंगुर, सफेद और चपटे हो। यह भी बताता हैं की रोग काफी बड़ी हुई अवस्था में हैं। छोटे नाख़ून बालो में ह्रदय और फेफड़े के रोगो से ग्रसित होने प्रवृति अधिक होती हैं।
धब्बे- जिनके नाखुनो पर स्वाभाविक धब्बे हो वे लोग जल्दी घबरा जाते हैं या आवेश में आ जाते हैं। उनकी स्नायु व्यवस्था बहुत भावनात्मक होती हैं। जब नाख़ून घब्बों से भरे हो तो यह समझना चाहिए की स्नायुमंडल की पूर्ण रूप से परीक्षा उसकी जांच पड़ताल और उसके पून: व्यवस्थित करने की आवश्यकता हैं। Why Worried? Ask a question and get solutions!
पतले नाख़ून- यदि छोटे हो तो वे निर्बल स्वास्थ्य के धोतक होते हैं और बहुत संकीर्ण, लम्बे ऊँचे, मुड़े हुए नाख़ून रीढ में रोग देते हैं। ऐसे नाख़ून वालो से अधिक शारीरिक शक्ति की आशा नहीं रखनी चाहिए।
नाख़ून से मनोवृति का ज्ञान- हस्तरेखा के अनुसार छोटे नाख़ून वालो की अपेक्षा लम्बे नाख़ून वाले कम आलोचनात्मक होते हैं। ये नम्र, शांत स्वभाव के और मिष्टभाषी होते हैं। इस प्रकार के जातक अधिक तर्क-विर्तक में नही पड़ते और अपने विवाद शांतिपूर्वक निपटा लेते हैं। वे साधारण बातो में विशेष चिंतित नहीं होते हैं। वे आदर्शवादी होते हैं और गीत, संगीत या अन्य कला क्षेत्रों में रूचि रखते हैं, परन्तु लम्बे नाख़ून वाले स्वप्नदर्शी होते हैं और कल्पना के जगत में विचरा करते हैं। यदि कोई उन्हें पसंद न हो तो वे इसके संबंध में सोचना भी नहीं चाहते।
यदि नाख़ून छोटे और चौड़े हो तो जातक में आलोचनात्मक प्रवृति होती हैं और ऐसे व्यक्ति अपनी भी आलोचना करने में संकोच नहीं करते जो भी काम उन्हें करना हो उसका वे पूर्णरूप से विश्लेषण करते हैं। वे युक्तिसंगत होते हैं। वे लम्बे नाख़ून वालो के समान अव्यवहारिक नही होते। वह शीघ्र निर्णय लेने वाले और अविलंब अपने कार्य को सम्पन्न कर लेते हैं। वे बहस करने में पक्के होते हैं और समय हो तो अपनी बात को यथार्य प्रमाणित करने के लिए घंटो बहस करने को तैयार रहते हैं। उन्हें क्रोध जल्दी आ जाता हैं व जो मुँह में आता हैं कह डालते हैं। जो बात उनकी समझ में नहीं आती उसे मानने को तैयार भी नहीं होते हैं।
यदि हाथ में नाखुनों की चौड़ाई लम्बाई से अधिक हो तो जातक अत्यंत कलहप्रिय होता हैं और बात-बात पर झगड़ा करने को उतारू हो जाता हैं। उसकी दूसरी के कार्य में हस्तक्षेप करने की आदत होती हैं। यदि कही दो लोगो में झगड़ा होता हो तो वह भी उसमें सम्मिलित हो कर झगड़ा को खत्म करने की बज़ाय और अधिक करने में जोश दिखाता हैं।
यदि किसी को नाख़ून चबाने की आदत हो तो यह समझना चाहिए की वह यक्ति नर्वस स्वभाव का हैं और साधारण सी बात से चिंतित होने वाला हैं।
हस्तरेखा विज्ञान में ग्ररुड़ पुराण के अनुसार- जिनके नाख़ून तुष के सामान होते अर्थात पीलापन लिए हुए और शीघ्र टूटने वाले हो तो वे व्यक्ति नपुसंक होते हैं। जिनके नाख़ून टेड़े और रेखायुक्त हो तो वे दरिद्र होते हैं। जिनके नाखुनों पर घब्बे हो और देखने में अच्छे न हो वे दूसरों की सेवा करके अपना परिवार पालन करते हैं।
हस्तरेखा विज्ञान में गर्ग संहिता के अनुसार- जिनके नाख़ून एक रंग के न हो और अंगुलियों के अग्रभाग की और फैले होतो या सीप के समान हो, या फ़टे हुए दिखाई दे, या बहुत छोटे हो तो वे दरिद्र होते हैं। जिनके नाख़ून निर्मल और ललाई लिए हो वे भाग्यशाली होते हैं।
हस्तरेखा विज्ञान में सामुद्रिक तिलक के अनुसार- कछुए की पीठ की तरह कुछ उंचाई लिए हुए मुंगे की तरह लाल, चिकने और चमकदार नाखून शुभ होते हैं और जातक उच्च पद प्राप्त करता हैं। यदि नाख़ून बहुत बड़े, टेड़े, रुखे, अंगुली की त्वचा में धंसे हुए हो और उनमें न तेज हो, न कांति हो तो ऐसे नाखुनो वाले व्यक्ति सुखी नहीं होते। जिनके नाखुनो पर सफ़ेद बिन्दुओ के चिन्ह हो उनका आचरण ठीक नही होता और वे पराधीन होकर जीवन व्यतीत करते हैं। रत्नों के बारे में जाने!
हस्तरेखा विज्ञान में विवेक विलास के अनुसार- यदि नाख़ून कुछ चिकनाई और ललाई लिए हुए अंगुली के अग्रभाग से आगे बड़े हुए, अंगुली के पर्व से आधे कुछ ऊंचे हो तो शुभ लक्षण वाले होते हैं। यदि इनका रंग कुछ पीला हो तो यह रोग सूचित होते हैं। यदि कुछ सफेदी हो तो वैराग्य प्रकृति के सूचक होते हैं। यदि उन पर सफ़ेद बिंदु हो तो उनसे दुष्टता प्रकट होती हैं। यदि शेर के नाखुनो की तरह हो तो जातक क्रुर होता हैं। जिनके नाखूनो में चमक न हो और टेड़े व रूखे हो उन्हें अधम समझना चाहिए।
चौडे और चौकोर नाख़ून- जिन व्यक्तियों के नाख़ून बहुत कम लम्बे व अधिक चौडे होते हैं और उंगलियों का अग्रभाग गदा की तरह गोल होता हैं ऐसे व्यक्तियों का स्वास्थ्य तो अच्छा रहता हैं किन्तु इनकी झगडालू और व्यर्थ बहस करने की आदत के कारण लोग इनसे परेशान रहते हैं। यदि ऐसे नाखूनो के साथ हाथ सख्त हो, अंगुठा बडा हो, उंगलियों की गांठे निकली हुई हो और मंगल का क्षेत्र अधिक उन्नत हो तो झगडालुपने के सभी लक्षण समझे।
यदि नाखुनो का रंग लालिमा,चौडे, चौकोर तथा बगल में गोलाई लिए हो तो व्यक्ति निष्कपट होता हैं जो इसके दिल में होता हैं वह साफ-साफ कह देता हैं।
छोटे और चौकोर नाख़ून- यदि नाख़ून छोटे और ऊपर की ओर चौकोर हो और नीचे की ओर उंगलियों की जड़ की तरफ पतले हो गए हो तो यह ह्रदय रोग का लक्षण हैं। प्राय: बड़े हाथो पर या बड़ी उंगलियो पर ये देखने में अधिक छोटे मालूम होते हैं। यदि इनमें कुछ नीला रंग भी हो और नीचे की ओर चंद्रमा के आकर का चिन्ह हो तो ह्रदय रोग के लक्षण होते हैं। नाखुनों में नीलापन यह प्रकट करता हैं की ह्रदयरक्त का चारो ओर सही से प्रसार नहीं कर रहा हैं और जब किसी एक ही रोग के दो तीन लक्षण मिले तो उस रोग की पुष्टि होती हैं। अगर नाखूनो का रंग कुछ नीलापन लिए हो तो यह प्रकट करता हैं की शरीर में रक्त प्रवाह और प्रसार ठीक नही हैं किन्तु यदि 13 वर्ष से 15 वर्ष तक की लड़कियों के या 45 वर्ष के आसपास की अवस्था की स्त्रियों के नाखूनों में कुछ नीलापन दिखाई दे तो किसी चिंताकारक रोग का चिन्ह नहीं समझना चाहिए क्योंकि मासिकधर्म प्रारम्भ और अंत होने के समय बहुत सी स्त्रियों के नाखूनों पर यह नीलापन आ जाता हैं बस यह ध्यानपूर्वक देखना चाहिए की नीलापन सारे नाखुनों पर हैं या केवल जड़ में हैं और यदि सारे नाख़ून पर हो तो स्वाभाविक दुर्बलता का लक्षण हैं किन्तु केवल जड़ो में हो तो ह्रदय रोग सूचित करता हैं। ज्योतिष के बारे में जाने!
नाख़ून से यक्ष्मा या क्षय रोग का ज्ञान- जिस व्यक्ति में क्षय रोग बहुत अधिक पुराना और बढा हुआ होता हैं उसमें तो यक्ष्या के लक्षण इतने अधिक दिखाई देने लगते हैं की वह दूर से ही वह क्षयरोगी दिखाई देता हैं, किन्तु प्रारम्भिक अवस्था में इसका ज्ञान कठिनता से होता हैं की साधारण कमजोरी या कुष्ट हैं या क्षय रोग का पता लगाने के लिए क्षय रोगी के नाखुनो के क्या लक्षण हैं वह नीचे बताया हैं
इसमें ऊंगली का अग्रभाग और नाखून मोटा और गोलाई लिए हुये हो जाता हैं देखने तथा छूने से मालूम होता हैं की उंगलियों के अग्रभाग कांच की गोली की तरह गोल हैं। इसमें नाखुनो का रंग नीला होता हैं और हाथो के रंग, रोगजन्य मांसपेशियों की शिथिलता तथा अन्य सामान्य लक्षणों की और घ्यान देना चाहिए। यदि नाख़ून की ऊपरी सतह गोलाई लिए हो किन्तु ऊंगली का अग्रभाग मांस वाला गोल न हो तो फेफड़े और गले के कमजोर होने के कारण जल्दी हो उन्हें कफ, खांसी या गले की बीमारी हो जाती हैं। यदि इस लक्षण के साथ-साथ स्वास्थ्य रेखा पर द्वीप चिंह हो तो उपर्युक्त लक्षण की पुष्टि होती हैं।
हाथों के मृदुलता, कोमलता और सौम्यता से हाथ अच्छे प्रतीत होते हैं किन्तु नाखुनो में सुंदरता का आभाव होता हैं तो हाथो के अच्छे होने का भी प्रभाव नही होता हैं। जब शरीर में स्नायुबल हो जाता हैं तो नाखुनो पर खड़ी धारियां दिखाई देती हैं या कुछ ऊंचा-नीचापन और खुरदरापन मालूम होता हैं। नाखुनों का चिकना होना शुभ लक्षण हैं स्वस्थ मनुष्यो के नाखुनों का चिकना होना शुभ लक्षण हैं क्योंकि स्वस्थ मनुष्यो के नाख़ून मुलायम और लचकदार होते हैं। वास्तु के बारे में जाने!
स्वास्थ्य या अस्वास्थ्य का विचार करने के लिए तीन बाते देखनी चाहिए-
यदि नाखूनो पर खड़ी-धारी सी हो तो स्नायु मंडल का रोग होता हैं। यदि शरीर में स्नायु-संबंधी विकार बढ गया हैं तो नाख़ून भी उतने मुलायम नहीं होंगे वह शीघ्र ही तड़कने, जल्दी टूटने और कठोर होंगे। अगर हाथ में नाख़ून अपने नीचे स्थित मांस से भी अच्छी तरह चिपके हुए नहीं होंगे तो यह भी रोग का लक्षण हैं।
नाखुनो पर सफेद धब्बे- जब स्नायुओं की शक्ति कम हो जाती हैं तो उनका एक लक्षण यह भी होता हैं कि नाखुनो पर सफेद दाग दिखाई देने लगते हैं। कभी-कभी नाखुनो पर उंची-नीची खड़ी रेखाए दिखाई देने लगती हैं। नाख़ून कठोर और शीघ्र टूटने वाले ही जाते हैं और नीचे के मांस से अलग भी होने लगते हैं। यदि ये सब लक्षण अधिक मात्रा में हो तो यह सूचित होता हैं की स्नायु-जाल बिल्कुल जर्जर हो गया हैं। ऐसे व्यक्तियों को लकवे की बीमारी का भी अंदेशा रहता हैं। वास्तव में हमारे मस्तिष्क और शरीर में जो कुछ अच्छा या बुरा परिवर्तन स्नायुओ में हो रहा हैं उसकी झलक नाखूनो में दिखाई देती हैं। यदि नाखूनो की दशा अधिक खराब दिखाई दे तो स्नाययिक शक्ति में भी विशेष ह्रास समझना चाहिए।
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