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Diabetes Problem

मधुमह/शुगर:

आज के बढ़ते युग में जहां खान-पान बहुत ही खराब हो चुका हैं, दिन रात में लोग कुछ भी खाने-पीने में परहेज़ नहीं करते हैं और ना ही किसके साथ क्या खाने में बीमारी हो सकती हैं, उसका भी ध्यान नहीं रखते हैं। जिससे बहुत सी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं क्योंकि अब उम्र देख कर बीमारी नहीं आती हैं। आज के समय में मीठा खाने के सभी शौकीन हैं और मीठे के साथ दूसरी बहुत सी खाने की वस्तुओं में शर्करा होता हैं जिससे अगर हमारा यकृत और अग्नाशय इसे न सम्भाल सके तो हम मधुमेह के शिकार हो जाते हैं। चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों और भावों के माध्यम से हम जान सकते हैं कि किन योगों से हम मधुमेह को पहचान कर उसका सही समय में निदान कर पाये।

भाव: पंचम भाव: हमारे शरीर में यकृत शक्कर का पाचन करता हैं और अग्नाशय इन्सुलिन का उत्पादन करता हैं। यह दोनों उदर के ऊपरी भाग में स्थित हैं और यह पंचम भाव के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

ग्रह: गुरु ग्रह: यकृत तथा अग्न्याशय के भाग का कारक ग्रह गुरु हैं। शेष अग्न्याशय का कारक शुक्र हैं। शुक्र शरीर की हारमोन प्रणाली का भी कारक हैं। अत: इस प्रकार मधुमय के लिए गुरु व शुक्र तथा पंचम भाव की विशेष भूमिका रहती हैं।   अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें सम्पर्क करें।    

यधपि यह सभी यकृत के रोगों के योग भी लगभग एकसमान ही होंगे, परन्तु उनमें शुक्र की विशेष भूमिका को मधुमेह के लिए समझ सकते हैं।   कोई भी सवाल! जवाब के लिए अभी बात करे!

मधुमह के योग:

मधुमह के लिए निम्नलिखित योग हैं- गुरु नीच राशि या आंठवें या बारहवें भाव में हो या शनि तथा राहु दोनों गुरु के साथ संबंध बनाये अथवा अस्त गुरु, राहु-केतु अक्ष पर हो।

शुक्र छठे भाव में हो और गुरु के द्वारा द्वादश भाव से संबंध बनाये।    अन्य योगों को जाननें के लिए यहां देखें। 

पंचमेंश 6, 8, 12 भावों से संबंध बनाये और वक्री गुरु त्रिकभाव में पीड़ित हो।

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दंत विकार:

भाव: दांतो के लिए मुख्यता द्वितीय भाव देखा जाता हैं, वैदिक ज्योतिष में सांतवा भाव को भी इसके लिए विचार कर सकते हैं। अगर यहां अशुभ प्रभाव जैसे शनि-राहु का प्रभाव हो तो दंत रोग हो सकता हैं। द्वितीयेश षष्ठेश होकर अशुभ ग्रह के प्रभाव में हो तब भी यह परेशानी हैं। यदि राहु का राशिश स्वामी दूसरे घर से संबंध बनाये तब भी दांतो की समस्या होती हैं।

यदि चंद्रमा, शनि और सूर्य का सप्तम भाव में मेल हो जातक के पूरे दांत खराब/सड़ हो जाते हैं।   Click here to know about houses in astrology

ग्रह: शनि ग्रह को दांतो की जड़ और उनकी सड़न के लिए देखा जाता हैं क्योंकि यह लम्बी परेशानी होती हैं जो शनि ही देता हैं। सूर्य को भी दांतो के लिए देखा जाता हैं। शनि दूसरे या सांतवे भाव में हो तो खराब, क्षय दांत, अनियमित दांत और बदसूरत दांत देता हैं। यहां राहु का होना बड़े और टेड़े दांत होते हैं। चंद्रमा और मंगल साथ होने से दांत में दर्द के साथ मसूडो में रक्तस्राव देता हैं।

चंद्रमा और मंगल का द्वितीय, तीसरे या षष्टम भाव में होने से जातक दांत को चमकाने के लिए, भरने के लिए और निकालने के लिए डॉक्टर के पास अवशय जाता हैं। ऐसा जातक नींद में दांत भी पीसता भी हैं।      

राशि: मकर राशि को हम दांतो की जड़ के लिए देखते हैं। वृषभ राशि को मसूड़े और निचला दांत के लिए देखते हैं। मेष राशि को हम मसूड़े और जबड़ा के लिए देखते हैं। अगर मंगल लग्न में जल राशि में हो तो बहुत जल्दी दांत खराब होते हैं। शनि भी अगर जल राशि कर्क में हो तब भी दांत जल्दी खराब हो जाते हैं।  

वैदिक ज्योतिष में ड़ी-3 वर्ग भी बहुत महत्व रखता हैं    

केतु अगर द्वितीय भाव में हो तो दांत ऊंचे, लम्बे तथा बाहर की ओर होते हैं।

द्वितिय भाव में बुध राहु के साथ हो और अष्टम भाव में शनि होतो भी दंत रोग होता हैं।   

दांतो का स्वामी बृहस्पति होता हैं अगर कुंड़ली में यह पीड़ित हो, नीच या वक्री हो तो दांतो की तकलीफ का सामना करना पड़ सकता हैं।   

योग: लग्न या द्वितीय भाव मेष या वृष राशि हो तथा पापयुक्त या पाप दृष्ट हो या सप्तम भाव में पाप ग्रह शुभ ग्रहों से अदृष्ट हो या सप्तमेश से द्वितीय भाव में राहु हो, इस योग के कारण दंत उठे हुए दिखने वाले होते हैं। द्वितीयेश तथा षष्ठेश इकट्ठे पाप युक्त हो क्योंकि द्वितीयेश दांतो का भाव हैं और षष्ठेश बीमारी का भाव हैं। राहु लग्न या पंचम भाव में हो क्योंकि राहु को मुंह की बीमारी के लिए भी देखा जाता हैं।

मुंह में दुर्गंध आना: यदि चंद्रमा और शुक्र मेष राशि में हो और बुध लग्न/षष्टम भाव में हो तो जातक के मुंह से दुर्गंध आती हैं। यदि शुक्र कर्क या मेष राशि में हो तब भी जातक के मुख से दुर्गंध आती हैं।     

विभिन्न रोगो के योग:

  • एकादशेश षष्ट भाव में हो तो विविध रोग देता हैं।
  • शनि और मंगल छठे भाव में राहु व् सूर्य से दृष्ट हो तो दीर्घस्थाई रोग देते हैं।
  • राहु या केतु सप्तम भाव में या शनि अष्टम भाव में हो और चंद्र लग्न में हो तो अजीर्ण होता हैं।
  • गुरु तथा राहु लग्न में दंत रोग देते हैं।
  • षष्टेश तृतीय भाव में हो तो उदर रोग देता हैं।
  • शनि षष्ट या अष्टम भाव में पैरों में कष्ट देता हैं।
  • राहु या केतु षष्ट भाव में हो तो दंत या ओष्ठ रोग होता हैं।
  • लग्नेश मंगल या बुध की राशि में हो तथा शत्रु से दृष्ट हो तो गुदा क्षेत्र में रोग होता हैं।
  • कर्क या वृश्चिक नवांश में चन्द्रमा पाप युक्त हो तो गुप्त रोग होता हैं। गुप्त रोग का अर्थ वह रोग हो सकता हैं, जिसे व्यक्ति अन्य लोगो से छुपाता हैं या यौन सम्बन्धों से हुआ रोग हो सकता हैं।
  • मंगल बुध तथा लग्नेश एक-साथ सिंह राशि में चतुर्थ या द्वादश भाव में हो तो गुदा या गुदा क्षेत्र में रोग हो सकता हैं।
  • अष्टम भाव में पाप ग्रह गुप्त रोग देता हैं और द्वादश भाव में गुरु का भी यही फल होता हैं।
  • बुध षष्ठेश तथा मंगल इकट्ठे हो तो जननांग में रोग होता हैं।
  • अष्टमेश अष्टम भाव में हो तो शरीर रोगोन्मुख होता।

 


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