त्रिकोण ज्योतिष
कुंड़ली में चार मुख्य त्रिकोण:
वैदिक ज्योतिष में ये धर्म त्रिकोण, अर्थ त्रिकोण, काम त्रिकोण और मोक्ष त्रिकोण का बहुत महत्व हैं, जिसने बिना ज्योतिष का फलित करना अधूरा हैं। इनका अर्थ समझने से काल पुरुष का मेष लग्न, भाव व राशि का भेद स्वत: मिट जाता हैं। अन्य शब्दों में धर्म त्रिकोण जो कुंड़ली के प्रथम भाव लग्न, पंचम व नवम भाव के मेल से बना हैं, इसे मेष, सिंह व धनु अथवा अग्नितत्व, क्षत्रिय वर्ण राशियों पर आश्रित माना जाता हैं।
धर्म त्रिकोण में लग्न आत्मा, पंचम भाव बुद्धि और विवेक तथा नवम भाव धर्म और सदाचार हैं। अन्य शब्दों से सृष्टा की इच्छा हैं की सभी प्राणी अपनी बुद्धि का सदुपयोग कर धर्म की राह पर आगे बढ़े, जिससे आत्मा का परमात्मा का मिलन हो सके। इसी कारण लग्न को स्वभाव या सद्दगुण का भाव, पंचम को उपासना व मंत्र सिद्धि तथा नवम भाव को यज्ञ, तीर्थ यात्रा व यज्ञादि धार्मिक उत्सव का भाव भी कहा गया हैं। ये चैतन्यता का भाव हैं जो दैवीय बल की वृद्धि करता हैं। जातक को प्रगतिशील, सफल और भाग्यशाली बनाता हैं।
काम त्रिकोण में तृतीय भाव बल, पराक्रम, साहस, शौर्य व जोखिम उठाने की क्षमता दर्शाता हैं। सप्तम भाव पति/पत्नी, साझेदारी, परस्पर स्नेह, सहयोग व समर्पण का संकेतक हैं। इसी प्रकार एकादश भाव सभी प्रकार के लाभ, सम्मान, प्रतिष्ठा व यश प्राप्ति का संकेत देते हैं। काम' शब्द पौराणिक हैं जो सभी प्रकार की इच्छाएं, आधे-अधूरे कार्य को पूरा करने का प्रयास, सुख-साधन जुटाने की कोशिश इसी काम शब्द में समाहित हैं। अत: इसे मात्र स्त्री-पुरुष का दैहिक मिलन मानना एक भूल होगी। अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें सम्पर्क करें।
धर्म का सम्बन्ध अग्नितत्व, ऊर्जा/चेतनता व क्षत्रिय के प्रजापालन व जुझारूपन के सरीखे गुणों से हैं तो काम त्रिकोण की मिथुन, तुला, कुम्भ राशियां वायु तत्व यानि कल्पना प्रिये व शूद्र वर्ण की राशियां हैं। यह राशियां काम व मन की इच्छाएं वायु सरीखी प्रवाहशील निरन्तर गंध की तरह बदलने वाली निर्बाध होती हैं। यहां इच्छाओं को पूरा करने का लाभ भी देती हैं जो जीवन को नीरस नहीं होने देती तथा आशा व उत्साह बनाये रखती हैं। जिससे इच्छाओं को पूरा करने के लिए मनुष्य परस्पर सहयोग व मेहनत करना सीखता हैं और जिससे समाज में सुख-शान्ति बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में प्रेरित करती हैं।
देखा जाये तो इन राशियों में यहां शूद्र शब्द का भी एक अन्य अर्थ दिया जाता हैं क्योंकि मनुष्य स्वभावत: हठी, अंहकारी व अधिकार प्रिय होता हैं। मनुष्य जो सृष्टि की बृहत योजना में बहुत छोटा या शूद्र हैं। उसे कर्तव्यनिष्ठा, सदभावसहयोग व समर्पण का पाठ पढ़ना होगा। यही शूद्र शब्द का सही अर्थ हैं। तृतीय भाव अनुज हैं जिसे लक्ष्मण बन कर राम के पीछे चलना हैं। उत्साह, साहस, पराक्रम और परिश्रम तीसरे भाव के कारकतत्व हैं। सप्तम भाव विवाह, सहकर्मी व सांझेदारी को दर्शाता हैं। ये सभी पराये हैं, जिन्हें अपना बनाना और जीवन को आगे बढ़ाना हैं। इन्हीं सम्बन्धों का सावधानी से निर्वाह और उससे सरसता व माधुर्य बनाये रखना ही सप्तम भाव का रहस्य हैं। साहस, पराक्रम, शौर्य का प्रयोग यदि परस्पर स्नेह व सहयोग बढ़ाने के लिए हो तो जातक धन, मान यश व प्रतिष्ठा पाता हैं। कोई भी सवाल! जवाब के लिए अभी बात करे!
दोनों त्रिकोणों को जोड़ कर देखे तो चौंकाने वाला तथ्य उभरेगा जिसमें सभी प्रकार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रयत्न व प्रयास के साथ दैवीय बल भी प्राप्त हो जाये तो सफलता असंदिग्ध हो जाती हैं।
वैदिक ऋषि कहते हैं की ये तो बच्चों का लंगड़ी छलांग वाला खेल हैं, जो मात्र संसार की चकाचौंध में डूब गया लेकिन वह भला कितनी दूर जा पाएगा। यदि सच में कुछ पाना हैं और सच्चे लाभ की इच्छा हैं तो धर्म, सदाचार व सद्दबुद्धि को प्रयत्न व सहयोग की भावना के साथ जोड़ना पड़ेगा। यही कामना सीधी और इच्छा पूर्ति का रहस्य भी हैं।
अर्थ त्रिकोण में द्वितीय, षष्टम व दशम भाव के परस्पर मिलन से बना यह वैश्य वर्ण व भूतत्व त्रिकोण भी हैं। जिसमें वैश्य जाति का सम्बन्ध आर्थिक गतिविधियों, वाणिज्य व्यापार तथा कृषि उद्योग से भू-तत्व को यथार्थवादी व तर्क परक या जमीनी पकड़ वाला बनाता हैं। आओ ज्योतिष सीखें!
अनेक मनीषियों ने अर्थ त्रिकोण का सम्बन्ध धन व धन सम्बन्धी प्रवाह चक्र से जोड़ा हैं। उनकी मान्यता हैं, कि द्वितीय भाव धन रतनभूषण व क्रय-विक्रय की कुशलता से धन संचय की प्रवृति को दर्शाता हैं। षष्ट भाव संघर्ष, स्पर्धा या प्रतियोगिता में आगे बढ़कर संसार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाता हैं। आजीविका क्षेत्र में उन्नति व विकास के लिए किया गया संघर्ष षष्ट भाव का ही कारकत्व हैं। दशम भाव मनुष्य को समाज के साथ जुड़ना सिखाता हैं। वह जनता की सेवा कर अपना जीवन निर्वाह करता हैं। संक्षेप में संघर्ष द्वारा प्रगति व सफलता तथा समृद्धि का माप दंड़ से ही संचित धन की वृद्धि होती हैं, यही अर्थ त्रिकोण का रहस्य हैं।
अन्य विद्वान इस विवरण को आधा-अधूरा व एकांगी मानते हैं। उनका विचार हैं कि असली अर्थ का अर्थ जानना तो जीवन का मर्म जानना हैं। कर्म को नई परिभाषा, नया अर्थ प्रधान करना हो तो द्वितीय भाव से मधुर व हितकारी वाणी व स्नेही कुटुम्बियों के भाव को देखेंगे क्योंकि ज्ञानयुक्त मधुर कल्याणकारी वचन से बड़ा धन लाभ क्या होगा। षष्टम भाव रिपु अर्थात काम, क्रोध, मद, मोह, ईर्ष्या व लोभ पर विजय पाने का भाव हैं। ये तो बल पराक्रम का सुख स्थान हैं। अपने दोषों का निराकरण तथा गुण व शक्ति का विकास ही षष्टम भाव का सच्चा अर्थ हैं। यह धर्म का धन व कुटुंब स्थान हैं और जीवन निर्वाह के लिए शुभ व धर्म सम्मत सतकर्म ही दशम भाव का कारकत्व हैं।
विद्वान अर्थ त्रिकोण को सोना चांदी, रतनभुषण (द्वितीय भाव) ऋणरोग, शत्रु या मुक़दमेंबाज़ी (षष्ट भाव) सत्ता अधिकार, पद प्रतिष्ठा (दशम भाव) से नहीं जोड़ते। वे तो आत्मसात किए हुए युक्त मधुर वाणी, दूसरों को आश्रय देने की प्रवृति (द्वितीय भाव) दुखियों के प्रति सहानुभूति संवेदना पर दुःख करना तथा दुष्ट व आततायी का मानमर्दन (षष्ट भाव) दूसरों की निस्वार्थ सेवा करते हुए लौकिक सुखों के प्रति अनासक्ति रखना तथा मानसिक सन्यासी होना ही अर्थ त्रिकोण का कारकत्व स्वीकारते हैं। ध्यान रहे यह वैश्य वर्ण भी हैं अत: सच्चा व खरा सौदा करने में विश्वास रखता हैं। भावों के बारें में विस्तार से जानें!
मोक्ष त्रिकोण में चतुर्थ, अष्टम व द्वादश भाव तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जलतत्व, ब्राह्मण वर्ण राशि सम्मिलत हैं। जल का एक विशिष्ट गुण, निरंतर नीचे की और बहना हैं, जिसमें राह में कोई गड्डा मिले तो उसे भरकर फिर आगे बढ़ना यही जल का गुण हैं। चतुर्थ भाव निष्कपट निश्छल व संवेदनशील मन को दर्शाता हैं। उसका घर मानो मंदिर हैं तथा वह धरती को माता मानता हैं। जनता के दुःख मिटाना मानो उसके मन का लक्ष्य होता हैं। अष्टम भाव गूढ़ विद्या व रहस्यों का भाव हैं और गहन अध्ययन शोधपरक चिंतन नयी खोज से समाज का कल्याण करना यही सब बाते दर्शाता हैं। द्वादश भाव दान-परोपकार का भाव हैं जो स्वयं कष्ट व हानि उठा कर भी दीन-दुखियों की सेवा सहायता करना और मानो मोक्ष या सभी रोग, भय व दुःख चिंता से मुक्ति पाने का त्रिकोण हैं।
इसके विपरीत छल कपट के मनोभाव ठगने की प्रवृति, स्वार्थपरता (चतुर्थ भाव) अपमान, अपयश, कलंक व पदचयुति (अष्टम भाव) दिया करता हैं। यदि जातक गलत संगति में फंस कर, दुराचारी व पातकी बन जाए तब तो धन नाश, देह-हानि के साथ उसका नर्क में जाना (द्वादश भाव) भी निश्चित हैं।
इसी तरह इन त्रिकोणों को समझना कोई साधारण बात नहीं हैं, इसी में जिंदगी का सभी सार छिपा हुआ हैं जिससे समझना बहुत जरुरी हैं। वैदिक ज्योतिष सीखने व समझने के लिए राघावाया ज्योतिष आपकी मदद कर सकता हैं, जिससे आप अपने और अपने परिवार के बारे में आने वाले समय के बारे में जान सकते हैं।
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