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विवाह और ज्योतिष

विवाह का ज्योतिषिय सम्बंध- जिंदगी का वह खूबसूरत लम्हा जब हम अपनी जिंदगी में किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जुड़तें हैं, जिसके साथ हमारा इस जन्म से ही नहीं न जाने कितने जन्मों का रिश्ता होता हैं। जीवन साथी के आने से हमारी जिंदगी का अकेलापन दूर हो जाता हैं और हम एक नये बंधन में बंधनें के बाद अपने परिवार के साथ एक नई दुनिया में कदम रखतेंं हैं। जीवनसाथी ऐसा साथी हैं जिस के साथ हम अपनें सभी सुख-दुख बांट सकतेंं हैं और उसके भी सभी खुशी गम को अपना समझतें हैं। इस प्यार भरे संबंध से सभी जुड़ना चाहते हैं और अपना अधुरापन दूर कर नयी दिशा की तरफ बढ़ते हैं। आईयें जाने वैदिक ज्योतिषानुसार आपका जीवन साथी कैसा होगा और कब आप भी इस पवित्र बंधन में जुड पाएंगे। आईये जानें ज्योतिष अनुसार हमारी कुंड़ली में विवाह के योग जाननें के लिए कौन सें नियमों को समझना होगा।    

विवाह के लिए भाव और ग्रह: वैदिक ज्योतिष के नियमों के अनुसार विवाह के लिए सर्वप्रथम दूसरा (परिवार), सांतवा (विवाह), ग्यारह (इच्छा पूर्ति) और बारहवां (शयन सुख) भाव देखा जाता हैं जिसमें सबसे अधिक मुख्य भाव सप्तम भाव को प्राथमिकता दी जाती हैं। ग्रहो में गुरु (पुरुष सुख/विवाह सुख) और शुक्र (स्त्री सुख/शुक्राणुओं) को विवाह का कारक ग्रह मानते हैं और मंगल (पुरुषत्व/रति की इच्छा का कारक) को विवाह में होने वाले मांगलय कार्य के लिए देखा जाता हैं।

लड़के की कुंड़ली में सप्तम/सप्तमेंश और शुक्र की स्थिति बताती हैं कि जातक की पत्नि कैसी होगी और कन्या की कुंड़ली में सप्तम/सप्तमेंश, अष्टम भाव और मंगल से जातक के पति के बारे बताया जा सकता हैं। 

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सप्तम भाव विवाह भाव में नव ग्रहों के फल:

सूर्य- सूर्य के सप्तम भाव में होने से जातक का अपने जीवन साथी के साथ मानसिक तनाव व अलगाव रहता हैं, उसका विवाह देरी से या दो विवाह भी हो सकतें हैं। ऐसे जातक का साथी अभिमानी व अपने आत्मसम्मान के प्रति सजग रहता हैं। 

चंद्रमा- चंद्रमा के सप्तम भाव में होने से जातक का साथी देखने में सुंदर व मनभावन होता हैं। यही चंद्रमा शुक्र के साथ हो तो एक से अधिक विवाह या संबंध देता हैं।

मंगल- सप्तम भाव में मंगल के होने से जातक का साथी बहुत उत्तेजित प्रवृति का होता हैं और उसके अपने साथी के साथ यौन तृप्ति नहीं हो पाती हैं। यहां मंगल की स्थिति मांगलिक बनाती हैं। इसी मंगल पर शनि या राहु की दृष्टि हो तो जातक अनैतिक संबंधों में होता हैं।

बुध- बुध शुभ ग्रह होने पर भी नपुंसक ग्रह हैं, इसलिए इसकी स्थिति विवाह भाव में विघ्न लाती हैं और शुभ नही मानी जाती हैं। बुध के जातक का साथी सुंदर, आदर्श और प्रभावशाली होता हैं पर बुध अपने साथी को यौन-तृप्ति नहीं दे पाता हैं।

गुरु- गुरु ग्रह स्नेह युक्त, निष्ठावान, ज्ञानी अहमी, और धनवान साथी देता हैं। जातक विवाह के बाद आर्थिक और सामाजिक रुप से उत्थान करता हैं। यहीं गुरु पीडित हो तो अधिक आयु का साथी या साथी से अलगाव देता हैं।

शुक्र- शुक्र ग्रह होने से जातक का साथी रुपवान, निष्ठावान, आकृषित, धनवान, कलाकार व एक से अधिक साथी मे रुझान भी देता हैं। ऐसा जातक जीवन साथी से आर्थिक व सामाजिक लाभ पाता हैं। ऐसे जातक का विवाह शीघ्र व मनचाहे साथी से होता हैं।

शनि- शनि ग्रह के होने से जातक आकृषक साथी से वंचित रह जाता हैं और उसका विवाह भी देरी से व अधिक उम्र के साथी के साथ होता हैं। ऐसे जातक का साथी कम धनी, कुछ वैरागी और रोगी होता हैं लेकिन वह बहुत मेंहनती होता हैं। शनि के साथ राहु/केतु ग्रह हो तो यह ग्रह अपनी जाति से बाहर विवाह करवाते हैं और कभी-कभी किसी दबाव में आकर भी विवाह करना पड़ता हैं। शनि मंगल की युति हो तो कामासक्त साथी, शनि शुक्र की युति हो तो जातक अन्य स्त्रियोंं में मन रखता हैं।

राहु- राहु ग्रह होने से जातक का विवाह जाति से बाहर होता हैं और साथी के अंगो में दोष होता हैं। ऐसे जातक का साथी कुछ गुप्त स्वभाव का होता हैं। ऐसा जातक अपने साथी के अलावा बाहरी संबंध रखने वाला होता हैं। ऐसे जातक का अपने साथी के साथ बिना किसी बात के तनाव रहता हैं और अलगाव होता हैं।

केतु- केतु ग्रह होने से जातक को अपने जीवन साथी से तिरस्कार झेलना पडता हैं। वह बाहरी संबंध में रुचि रखता हैं और साथी से अलगाव पाता हैं। ऐसे जातक के साथी की लम्बाई या अधिक होती हैं या कम होती हैं।  

नवांश- लग्न कुंडली के साथ नवांश कुंडली का भी विवाह के लिए बहुत महत्व हैं, जिसको विवाह के लिए देखना बहुत आवशयक हैं। इसके बिना विवाह का फलित अधुरा हैं क्योंकि नवांश कुंड़ली को लग्न का आईना कहा गया हैं। लग्न के सभी नियमों को एक बार नवांश में भी देख लेना चाहिए।                        

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प्रेम विवाह के योग: आज कल के समय में सभी चाहते हैं कि उनका विवाह अपनी मर्ज़ी या पसंद से हों, वह जिससें प्रेम करतें हैं वहीं उनका जीवन साथी बनें। हम ज्योतिष के माध्यम से जान सकतें हैं कि कि हम कुछ नियमों के माध्यम से कैसे अपनी कुंड़ली में प्रेम विवाह के योग समझ सकतें हैं।        

जन्म कुंड़ली में सप्तमेंश/सप्तमेंश का संबंध पंचम/पंचमेंश से होना, सप्तमेंश/सप्तमेंश और पंचम/पंचमेंश सम्बंध एकादश/एकादशेश भाव से होना और बारहवें भाव में पंचमेंश का प्रभाव प्रेम विवाह देता हैं। शुक्र का अपनी राशि वृषभ या तुला या उच्च राशि मीन में होना और शुक्र का शुभ प्रभाव व शुभ भावो में होना भी प्रेम की ओर इंगित करता हैं। पंचम/पंचमेंश भाव का संबंध अष्टम भाव से हो तो जातक को छिपे हुए गुप्त संबंध देता हैं।  

विवाह सुख/दुख:- निम्नलिखित वैवाहिक भाव व भावेश शुभ, शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, शुभ कर्तरी और पाप प्रभाव से रहित हो। कुंड़ली में शुभ सप्तमेंश 5 या 9 भाव में हो तो विवाह भाग्यशाली साथी से होता हैं।      

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शुक्र को विवाह का मुख्य कारक ग्रह कहा गया हैं- शुक्र विवाह, आन्नद व गृहस्थ जीवन का मुख्य कारक हैं। शुक्र से 4, 8, 12 भाव में अशुभ प्रभाव हो तो जातक का अपने साथी से अलगाव होता हैं। जन्म कुंड़ली में शुक्र ग्रह का उच्च, शुभ व केंद्र/त्रिकोण भाव में होना बली माना जाता हैं। प्रथम भाव का शुक्र जातक को अपने साथी के प्रति लगाव व रोमांटिक जीवन देता हैं। शुक्र पर शनि का प्रभाव अनैतिक संबंध, मंगल का प्रभाव कामुक इच्छा, शुक्र का राहु के साथ होना निंन्दनीय संबंध देता हैं और शुक्र अस्त होने पर कामुक इच्छाएं अनियंत्रित हो जाती हैं।   

विवाह के लिए नकारात्मक योग- शुक्र को गृहस्थ सुख का कारक भी कहते हैं, कुंड़ली में नीच का शुक्र कही भी हो वह विवाह के लिए शुभ नही माना जाता हैं। सूर्य व शुक्र का साथ विवाह में अलगाव करवाता हैं। शुक्र व शनि का संबंध भी अलगाव देता हैं और गुरु व शुक्र का संबंध धर्मपारायण व सुंदर साथी देता हैं, लेकिन विवाह के सुख में कमी देता हैं। कुंड़ली में अशुभ सप्तमेंश नवम भाव में हो तो विवाह टूट जाता हैं और अन्य विवाह की ओर आकृषित करता हैं।  

कुंड़ली में सप्तम/सप्तमेंश का पीडित/नीच/अस्त/वक्री/अशुभ होना वैवाहिक जीवन में अनबन देता हैं। कुंड़ली में शनि का सप्तम में प्रभाव जातक को अविवाहित भी रख सकता हैं।

विवाह के लिए अशुभ योग: लग्नेश व सप्तमेंश आपस में 6,8,12 वे भाव में नही होने चाहिए।

सप्तमेंश, छठे भाव में हो तो विवाह में विलम्ब और अनबन देता हैं और अष्टम भाव में हो तो वैवाहिक जीवन में अशुभता लाता हैं। अष्टम भाव में मंगल या राहु अपनी दशा में साथी से अलगाव देते हैं।

शीघ्र विवाह के योग: लग्न/लग्नेश व सप्तमेश/सप्तमेंश के बीच शुभ संबंध, लग्न या सप्तमेंश का शुक्र या गुरु के साथ संबंध, द्वितीय-अष्टम में अशुभ ग्रह न हो। चंद्रमा या शुक्र से सप्तम भाव में शुभ ग्रह होना। कुंड़ली में गुरु, शुक्र, बुध शुभ अवस्था में हो और इनका संबंध, सप्तम/सप्तमेंश के साथ शुभ अवस्था में हो और बारहवे भाव में शुभ प्रभाव हो।

विवाह न होने के योग/देरी से होना:- लग्न, सूर्य ग्रह और चंद्रमा ग्रह तीनों शनि ग्रह के प्रभाव में हो।

शुक्र ग्रह अस्त और शनि ग्रह के प्रभाव में हो।

कुंड़ली में सप्तम भाव में बुध, द्वादशेश व षष्टेश के साथ हो।

शनि ग्रह या अष्टम का संबंध सप्तम/सप्तमेंश से होना भी विवाह में देरी करवाता हैं।  

कुंड़ली में शुक्र ग्रह, मंगल व सप्तमेंश के साथ 6 या 7वें भाव में हो तो जातक बाहरी संबंध का इच्छुक होता हैं वह विवाह के बंधन मे बंधने की इच्छा कम ही रखता हैं। 

कुंड़ली में शनि मंगल का लग्न, 6, 7, 8 भाव में होना विवाह के लिए विनाशकारक हैं।

कुंड़ली में सप्तमेंश, षष्टम भाव में नीच/अस्त स्थिति में हो।

ज्योतिष अनुसार द्वितीय विवाह के योग- विवाह का कारक शुक्र जब द्विस्वभाव राशि में हो और उसका राशीश उच्च का हो। (शुक्र नीच का द्वितीय विवाह में बाधा देता हैं) 

जन्म कुंड़ली में शुक्र व चंद्रमा का शुभ प्रभाव जातक को दूसरें विवाह या अन्य साथी की ओर प्रेरित करता हैं।

अगर सप्तमेंश द्विस्वभाव में हो कर एकादश/नवम भाव में हो तब भी एक से अधिक विवाह देता हैं।

कुंड़ली में लग्न/चंद्रमा से सप्तम/सप्तमेंश में सूर्य और राहु का प्रभाव हो तो प्रथम विवाह मे अलगाव देता हैं।

कुंड़ली में वक्री शनि एकादशेश हो कर सप्तम में स्थित हों।

अगर आप का विवाह नही हो रहा हैं या विवाह तय हो कर टूट जाता हैं या क्या आप किसी से प्रेम करते हैं और आपके मन में सवाल हैं, कि आपका उनसें विवाह होगा या आप अपनें विवाह का समय जानना चाहतें हैं या विवाह उपरांत आप किसी भी प्रकार की समस्या से ग्रसित हैं तो बिना किसी झिझक के आप हमसें सम्पर्क कर के अपनी समस्याओं का समाधान पा सकतें हैं। देर न करे, आपकी एक फोन कॉल और हमसे संपर्क करना, हमें सेवा का मौका देना, जिससे आपको आपके सभी प्रशनों का उत्तर मिलेगा। +917701950631                                


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