“मंत्रो का महत्व”
मंत्र- भारतीय वेदों में वैदिक मंत्रों का बहुत ही महत्व बताया गया हैं, वैदिक मंत्र के अतिसुक्ष्म शक्ति का परिचय और महत्व के लिए उनके विज्ञान को समझना ज़रुरी हैं।
मंत्रों का महत्व: वैदिक मंत्र वैदिक काल से ही हमारे वेदों की देन हैं, यह हमारे संत व ऋषी मुनि का आशिर्वाद हैं। वैदिक मंत्र में अंधविशवास जैसी कोई बात नहीं हैं क्योंकि आधुनिक समय में इसे सीधे चिकित्सा के रुप में माना गया हैं। जब हम अपने स्वर के शब्दों से मंत्र का जाप करते हैं, तब एक संगीत की तरह लहर हमारे न्यूरॉन सिस्टम पर पड़ती हैं। अगर हम इन मंत्रों का जाप इनका अर्थ जान कर करते हैं, तो अधिक प्रभाव पड़ता हैं। जिससे हमारे मस्तिष्क में जब मंत्रों का स्वर फैलता हैं, तब इनका असर हमारे दिमाग पर सीधा असर पड़ता हैं जिससे हमारे दिमाग के रसायन प्रभावित हो कर सीधा शरीर में उपचारात्मक प्रभाव देते हैं। जब यही मंत्र समर्पण और विश्वास से नियमित किए जाते हैं, तब इन मंत्र की कंपन से सकारात्मक ऊर्जा निकलती हैं, जिससे यही सकारात्मक प्रभाव हमारे ग्रहों पर पड़ता हैं, फिर उनके नकारात्मक प्रभावो में सुधार आता हैं। Why Worried? Ask a question and get solutions!
मंत्र पढने से हमारा अवचेतन मन सक्रिय हो जाता हैं, हमारे अंदर जागरुकता आती हैं, हमारी ग्रंथिया, हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं और एकाग्रता में भी सुधार आता हैं। मंत्र जाप से रक्तचाप सामान्य होता हैं। दिल की धड़कन की गति, मस्तिष्क की तरंगे और कॉलस्ट्रॉल का स्तर सामान्य होता हैं। तभी आज के डॉक्टर तनाव को कम करने के लिए शांत वातावरण में संग़ीत सुनने को कहते हैं। मंत्रों और संगीत की ध्वनि का हमारे मन-मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर आता हैं और यह योग और प्राणायम की तरह लाभदायक हैं। Take Appointment
ग्रह और मंत्र- मंत्रों की शक्ति का महत्व वैदिक ज्योतिष में बहुत ही महत्वपूर्णता के साथ वर्णित किया गया हैं, मंत्रो की शक्ति से देवता व ग्रह इन्हीं मंत्रों के माध्यम से प्रसन्न होते हैं। मंत्रों द्वारा बहुत से दोष नियंत्रित किए जा सकते हैं, जो रत्नों से या उपायों से भी ठीक नहीं होते। ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी शुभ कमज़ोर ग्रह को बल देने के लिए किया जाता हैं, पर अशुभ ग्रह के फल को बदलने के लिए रत्न धारण नहीं किए जाते हैं क्योंकि रत्न धारण करने से शुभता लिए कमज़ोर ग्रह की ताकत बढ़ाई जा सकती हैं, पर उसका स्वभाव नहीं बदला जा सकता, इसलिए हम सभी ग्रहों को शुभ करने के लिए रत्न धारण नहीं कर सकते हैं।
लेकिन इन्हीं मंत्रों से हम कमज़ोर ग्रह की ताकत और अशुभ ग्रह की शुभता बड़ा सकते हैं। जिससे हम ग्रहों के सकारत्मक प्रभाव पा सकतें हैं। कुंड़ली के सभी ग्रहों से शुभ फल लेने की ताकत मंत्रो में ही होती हैं। वैदिक मंत्रो का उच्चारण अगर सही तरह से किया जाए तो इन मंत्रो से हम ग्रहों से होने वाली हानि से भी बच सकते हैं। पर ये भी ध्यान रखे कि कौन से ग्रह का मंत्र हमें करना चाहिए, जो ग्रह हमारे लिए पीडा का कारक हैं, उन ग्रह के बीज़ मंत्र का ज़ाप नहीं करना चाहिए। मंत्रो को सही विधि-विधान से ही किया जाना चाहिए तभी इनका सम्पूर्ण फल प्राप्त हो सकता हैं। इससे हमारे सभी सातों चक्र जागरुक होते हैं। मंत्रों की शक्ति से हमारे चारों ओर एक पवित्र ओरा बन जाती हैं, जिस के माध्यम से हम अपने आस-पास एक तरंग सी महसूस करते हैं, फिर यही तरंग सृष्टि की ऊर्जाओं से हमें जोड़ देती हैं, जिसके माध्यम से यही ऊर्जा ब्रह्माण्ड में ग्रहों तरंगो से टकरा कर उनके फलो में सकारात्मकता लाती हैं।
वेद मंत्रों का जाप पूर्णता अनुशासन, शुद्धता व स्वच्छता के साथ करना चाहिए। सही नियम, उचित संख्या, पवित्र वस्त्र, स्थान व पवित्र मन के साथ ही मंत्रों का उच्चारण किया जाना चाहिए, तभी इनका फल मिल सकता हैं। कुछ लोग चलते-फिरते या बिना नियम के ही मंत्रो करते हैं, उन्हें तभी इनका फल नहीं मिल पाता। मंत्र सिद्धि के लिए मंत्रों को गुप्त रखना चाहिए और प्रतिदिन एक ही संख्या में जाप करना चाहिए।
मंत्र का जाप तीन प्रकार से किया जाता हैं:- 1. वाचिक जाप, 2. मानसिक जाप, 3. उपांशु जाप! वाचिक जाप को आवाज़ में बोल कर किया जाता हैं। मांनसिक जाप को बिना बोले मन में ही किया जाता हैं। उपांशु जाप को बहुत ही हल्की आवाज़ में जिसमें जातक के होंठ हिलते हुए ही दिखाई देते हैं।
मंत्र साधना से बहुत सी बाधाएं दूर हो जाती हैं, जिससे भौंतिक और आध्यात्मिक उपचार भी सम्भव हैं। वैदिक मंत्र अगर सही तरह सिद्ध किए जाए तो यह अलादीन के चिराग की तरह काम करते हैं। जिस प्रकार से हम घर बैठे मोबाईल से दूर-दूर तक बात कर सकते हैं, उसी प्रकार से हम इन्हीं मंत्रों की तरंगों के द्वारा खुद को ब्रह्माण्ड की शक्तियों से ज़ोड़ सकते हैं।
मंत्रों की शक्ति से हम बहुत से रोगो के उपचार व अपनी इच्छा पूर्ति भी कर सकते हैं। जिस तरह जाप की भावना होती हैं, उसी तरह से ऊर्जा का स्तर चलता हैं और यही ध्वनि आकाश के परमाणुओं को भी अपने पास एकत्रित कर सकती हैं। मंत्रों की शक्ति का महत्व विज्ञान ने भी माना हैं, उचित प्रकार से किए गए मंत्र के उच्चारण से चमत्कार भी होता हैं। मंत्रों की सुक्ष्म ध्वनि व कंपन से हज़ारों किमी दूर ग्रहों व नक्षत्रों को भी प्रभावित करती हैं। वैज्ञानिकों ने भी इनकी सुक्ष्म ध्वनि को महसूस किया हैं, जिससे इस सृष्टि के सुक्ष्म इकाई अणु को भी पार किया जाता हैं। जिस वज़ह से चमत्कार भी होते देखे गए हैं।
हम सब अलग-अलग उद्देश्यों के लिए विभिन्न मंत्रों का उपयोग करते हैं। प्रत्येक मंत्र की अलग-अलग श्रेणियां होती हैं। आप हमसे सम्पर्क करे कि आपके लिए कौनसा मंत्र उपयुक्त हैं।
मंत्रो की श्रेणियां:
“नवग्रहों के मूल मंत्र”
सूर्य : ॐ सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ चं चन्द्राय नम:
गुरू : ॐ बृं बृहस्पतये नम:
शुक्र : ॐ शुं शुक्राय नम:
मंगल : ॐ भौमाय नम:
बुध : ॐ बुधाय नम:
शनि : ॐ शं शनैश्चचराय नम:
राहु : ॐ रां राहवे नम:
केतु : ॐ कें केतवे नम:
“नवग्रहों के बीज मंत्र जिनकी निश्चित संख्या भी दी गई हैं।”
सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
संख्या-7000 माला-लाल चंदन
चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
संख्या-11000 माला-रुद्राक्ष
गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
संख्या-19000 माला-हल्दी
शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
संख्या-16000 माला-सफ्टिक
मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
संख्या-10000 माला-लाल चंदन
बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
संख्या-9000 माला-तुलसी
शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
संख्या-23000 माला-रुद्राक्ष
राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
संख्या-18000 माला-रुद्राक्ष
केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:
संख्या-17000 माला-रुद्राक्ष
“नवग्रहों के वेद मंत्र”
सूर्य : ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मतर्य च
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥
इदं सूर्याय न मम॥
चन्द्र : ॐ इमं देवाSसपत् न ग्वं सुवध्वम् महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय
महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य पुत्रमुष्यै पुत्रमस्यै विश एष
वोSमी राजा सोमोSस्माकं ब्राह्मणानां ग्वं राजा॥ इदं चन्द्रमसे न मम॥
गुरू : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम॥
इदं बृहस्पतये, इदं न मम॥
शुक्र : ॐ अन्नात् परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय:।
सोमं प्रजापति: ॠतेन सत्यमिन्द्रियं पिवानं ग्वं
शुक्रमन्धसSइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोSमृतं मधु॥ इदं शुक्राय, न मम।
मंगल : ॐ अग्निमूर्द्धा दिव: ककुपति: पृथिव्या अयम्।
अपा ग्वं रेता ग्वं सि जिन्वति। इदं भौमाय, इदं न मम॥
बुध : ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहित्वमिष्टापूर्ते स ग्वं सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
इदं बुधाय, इदं न मम॥
शनि : ॐ शन्नो देविरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:। इदं शनैश्चराय, इदं न मम॥
राहु : ॐ कयानश्चित्र आ भुवद्वती सदा वृध: सखा।
कया शचिंष्ठया वृता॥ इदं राहवे, इदं न मम॥
केतु : ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे।
समुषदभिरजा यथा:। इदं केतवे, इदं न मम॥
अन्य मंत्र:-
गायत्री मंत्र- ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |
संख्या-1,25,000 माला-रुद्राक्ष
माता बग्लामुखी मंत्र- ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा|
संख्या-1,25,000 माला-हल्दी
संतान गोपाल मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।
संख्या- 1,25,000 माला-1,25,00
महामृत्यंज़य मंत्र- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्, उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।
संख्या- 1,25,000 माला-रुद्राक्ष
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