वास्तु और पंचतत्व- हमारी प्रकृति इन्ही पांच तत्वों से बनी हैं, अग्नि पृथ्वी वायु ज़ल आकाश! ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की और इन पंच महाभूतों का विस्तार किया। इन्हीं पंचतत्वो से ही भवन का निर्माण होता हैं। इनका संतुलन में होना ही सकारात्मक का कारण हैं।
सबसे पहले आकाश बना, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और अंत में जल से पृथ्वी बनी, यह विकास बच्चे के विकास से मेल खाता हैं। ये पंच तत्व हमारे अंदर और बाहर विधमान रहते हैं। वास्तु में इन सबका मुख्य रुप से इनके संतुलन पर ध्यान दिया जाता हैं। वास्तु नाम ही इन पंचत्तवो का आधार हैं। वास्तु के अंन्य आर्टिकल्स पढने के लिए यहां देखे!
आकाश तत्व-: मनुष्य इस अन्नंत आकाश से घिरा हुआ हैं। वास्तु में ब्रह्मस्थान ही आकाश तत्व यानि केंद्र स्थान हैं। यह भवन का नाभि व ह्रदय का स्थान हैं। यहां कोई भी भारी वस्तु, खम्बा, सीढ़ी, शौचालय, रसोईघर व स्टोर नहीं होनी चाहिए। जिससे पाचन संबंधी रोंग व पेट की समस्या होती हैं। यह सबके बीच संबंध स्थापित करती हैं। हर तत्व संतुलित मात्रा में होना चाहिए। अधिक आकाश तत्व होने से दबाव व अवसाद की समस्यायें होती हैं। जो कुंड़ली में पिशाचदोष के समान हैं जिसमें राहु चंद्रमा साथ में हो। यह सबसे रहस्यात्मक और विस्तारात्मक तत्व हैं। जो अनचाही शक्तियों से परेशान करता हैं। यह समान होने से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, भौतिक व सामाजिक जीवन में शुभ होता हैं। यह तत्व हमारे मानसिक विचार व प्रक्रिया को संतुलित करता हैं। चाईनिज़ में इसका भाग पश्चिम दिशा में भी हैं जिसे धातु ततव से जोड़ा गया हैं। इसके संतुलित होने से भाग्य में उन्नति, कार्य की क्षमता, रचनात्मक, ज्ञान और विचारों के जागरुकता के साथ लाभ भी मिलता हैं।
वायु तत्व-: वायु तत्व जीवन जीने के लिए आवशयक हैं। इसे वायव्य दिशा का स्वामित्व प्राप्त हैं जिसका स्वभाव रज़स हैं और वात रोग देती हैं। इसका भवन में संतुलित होना जीवन में वृद्धि का कारण हैं और जीवन में ताज़गी का अनुभव, आनंद, साहस और खुशी आती हैं। यह तत्व पूर्व का भी हैं। यहां संतुलन होने से जातक को तरक्की और प्रभावशाली व्यक्त्तित्व मिलता हैं। वायु तत्व का मुख्य गुण स्पर्श हैं और शनि ग्रह वायु तत्व का हैं। मनुष्य साफ और ताज़ी हवा के बिना बीमार हो जाएगा क्योंकि वायु में ही ऑक्सीज़न हैं, जो मनुष्य का प्राण हैं। आवास स्थान में पिशाच व ब्रह्म स्थान घर के बाहरी व आंतरिक त्वचा के सामान हैं और खिड़की, दरवाज़े, रोशनदान व पंखे त्वचा के छिद्रो के समान हैं। वायु अस्थिर तत्व हैं, इसका आधार मंद-मंद बहना हैं। ठहरी हुई वायु दुर्गंध पैदा करती हैं और रोगो को जन्म देती हैं, जिससे सांस लेने में परेशानी आती हैं। भवन में एक दरवाज़ा दूसरे दरवाज़े के ठीक सामने नहीं होना चाहिए, जिससे वायु का प्रवाह संतुलित रहता हैं। व्यवसायिक या किसी कम्पनी में कर्मचारियों को यहां नहीं बैठना चाहिए क्योंकि यहां होने से मन अस्थिर रहता हैं और कार्य में मन नहीं लगता हैं। किसी बिकने वाले तैयार सामान को यहां रखे और दुकानो व शोरुम में भी रोजाना इस्तेमाल होने वाली साम्रगी यहां रखे। कैश या लॉकर यहां नहीं होना चाहिए क्योंकि यहां रखा धन स्थिर नहीं रहता हैं। यहां कबाड़ या बंद होने से सांस लेने में परेशानी होती हैं और बच्चों की शिक्षा में बाधा आती हैं और मन पढ़ाई में अस्थिर रहता हैं।
अग्नि तत्व-: अग्नि का का कार्य ताप और प्रकाश देने का हैं। अग्नि का मुख्य गुण हमारी दृष्टिंद्रियां जो आंखो व रंगो द्वारा शासित हैं। सूर्य व मंगल अग्नि तत्व के ग्रह हैं। अग्नि रज़स हैं और पित्त दोष देती हैं। गर्मी की सही मात्रा ही जन्म दे सकती हैं, कोई भी जीव पौधा या मनुष्य अग्नि के बिना जन्म नहीं ले सकता हैं। वास्तु में यह पूर्व-दक्षिण दिशा में व्याप्त रहती हैं। जो आधुनिक जीवन में धन के प्रवाह को दिखाती हैं, जो आत्मविश्वास के साथ उत्साह देती हैं। यह हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इच्छाशक्ति और जुनून देता हैं। दक्षिण में पानी की टंकी का होना आग, बैचेनी, अशांत नींद का कारण बनती हैं। इसके संतुलित होने पर प्रसिद्धि और पहचान मिलती हैं, जिससे जातक को आत्मविशवास व शक्ति मिलती हैं और वह धन कमाने में पूर्णता सक्षम होता हैं। यह भवन में जनरेटर, इलेक्ट्रिक सामान, लाल रंग और त्रिकोण के रुप में हो सकती हैं। यहां बेड़रुम होने से जातक का मन चिड़चिड़ा और बैचेन रहता हैं। यह अग्नि की दिशा हैं एक इंसान जलती आग में नहीं रह सकता हैं। यहां पानी के साधन, पाईपलाईन व स्विमिंग पूल नहीं होने चाहिए। यहां जल होने से जातक मुकद्दमों, मानहानि, मशीनरी के खराब, तनाव व बिज़ली के उपकरण की समस्याये आती हैं। हमसें मिलने के लिए क्लिक करे!
जल तत्व-: पांचो तत्व में जल सबसे कम तत्व हैं जिसका गुण स्वाद व रस हैं जिसका स्वभाव सात्विक हैं और जो कफ दोष का निर्माण करता हैं। चंद्र और शुक्र अस्थिर जल तत्व के ग्रह हैं। जिसकी मुख्य दिशा ईशान यानि उत्तर-पूर्व व उत्तर हैं। भवन में यहां अग्नि का होना नये अवसरों, धन, और कार्य में कमी कर देती हैं। इस दिशा में जल का होना या नीले रंग का होना सकरात्मकता लाता हैं। जिससे लोग जीवन को बड़े दृष्टिकोण से देख पाते हैं और आध्यात्मिक जीवन जीते हैं। जल का स्वभाव बहना हैं और बहुत शर्मीला स्वभाव हैं जो धरती के गर्भ में छिप जाना चाहता हैं। वास्तु में पानी का चयन सबसे महत्वपूर्ण हैं। यह नींव के पास हुआ तो आवास में सीलन पैदा कर देगा और ठहरा रहा तो दुर्गंध पैदा कर देगा। यह सात्विक स्वभाव का अस्थिर तत्व हैं। यह तत्व नये-नये विचार, सोच, अवसर, विचारों की स्पष्टता, दूर-दृष्टि और मज़बूत रोग प्रतिरोधक क्षमता देती हैं। यह भवन में झरना, बोरिंग, मंगल कलश, झरने वाली पैटिंग, नीला रंग, पानी का कोई भी स्रोत्र, मछली घर या स्विमिंग पूल के रुप में हो सकता हैं। घर में नल का बहना भी धन की बर्बादी या चोरी होने का प्रतीक हैं। किसी भी सवाल के लिए क्लिक करें!
पृथ्वी तत्व-: यह तत्व मुख्य रुप से वास्तु के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जमीन का चयन करने के बाद ही हम उस पर भवन का निर्माण करते हैं। पृथ्वी का आकार निश्चित हैं और इसकी दिशा नैऋर्त्य हैं जिसका गुण तमस और स्थिरता हैं। यह संतुलन, धैर्य, स्वस्थता और मज़बूती का तत्व हैं। तमस का अर्थ क्रियाहीनता, आलसीपन और अंधकार हैं। वास्तु में भवन का निर्माण करते हुए भूमि को भुकम्प प्रतिरोंधक देख लेना चाहिए। इसका ग्रह बुध हैं और गंध द्वारा पृथ्वी की उपयोगिता की पहचान होती हैं। इस तत्व के संतुलन होने से कार्य, व्यवहार व रिशतों और प्रयासो में सफलता मिलती हैं। यह भवन में मिट्टी या पत्थर से बनी कोई चीज़, पीला रंग, क्रिस्टल क्लस्टर या भूरे रंग की भी कोई वस्तु के रुप में हो सकत हैं। यहां बंद होना, भारी मशीने या स्टोर होना भी पृथ्वी तत्व का घोतक हैं। यहां तहखाने का होना, बोरिंग, ढ़लान और भुमिगत पानी की टंकी होना वास्तु दोष का कारण हैं जिससे जीवन में अस्थिरता आती हैं और आर्थिक नुकसान होता हैं।
Vaastu is basically a traditional Indian system of architecture that originated in India. Vaastu Shastra is the textual part of Vaastu Vidhya. To simplify it “Vaastu” relates to the science of direction that combines all the five elements of nature and balances them with man and materials. It also consists of rules, formulas, and patterns for the execution of the process and for the construction of the houses. Vaastu helps to ensure prosperous and harmonious living in the house by eliminating all the negative energies around us, which have taken away peace from our lives. Vaastu aims to make harmonious buildings at places in tune with mother-nature so that the people residing in a particular building live a happy life.
It is believed that if a building is not constructed or built on the terms of Vaastu, then the thinking, action, and nature of the people inhabiting or working in these buildings is not harmonious and progressive. On the other hand, if the building follows principles of Vaastu then all Divine Powers help and support people’s positive thinking and progressive actions.
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