संतान और ग्रह
बच्चों की चाहत किसे नहीं होती, हम सभी चाहते हैं कि हमारा घर बच्चों की किलकारी से गूंज़ता रहे और घर में खुशियों का आगमन हो। विवाह के बाद सबसे सभी की चाहत होती हैं, अब परिवार में नया मेहमान घर आये। कुछ लोगों का यह सपना समय से पूरा हो जाता हैं, लेकिन कुछ को ये खुशी आसानी से नहीं मिल पाती हैं। माता-पिता की सबसे बडी खुशी अपने बच्चों में ही होती हैं।
आईये वैदिक ज्योतिष के अनुसार संतान के कुछ ज्योतिषिय सूत्रों जानें। अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें मिलनें के लिए सम्पर्क करें।
वैदिक ज्योतिष भावों, ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों आदि पर आधारित हैं जिससे इन सभी के बिना किसी भी योग और फलित को देखना असम्भव हैं। हम इन्हीं द्वारा संतान के योगों को पहचानने का प्रयत्न करेंगे।
भाव: लग्न व चंद्रमा से द्वितीय/द्वितीयेश भाव परिवार के लिए देखा जाता हैं क्योंकि आने वाला मेहमान हमारे परिवार का ही हिस्सा बनेगा। पंचम/पंचमेश भाव से संतान को मुख्य रुप से जाना जा सकता हैं। इस भाव में सौम्य ग्रह चंद्रमा, शुक्र और गुरु होने से संतान का योग समय से बनता हैं। यहां ग्रहों की स्थिति मज़बूत होने से संतान पक्ष भी मज़बूत रहता हैं। भाव के तरह पंचमेंश भी शुभ अवस्था में होना चाहिए, वह अस्त, वक्री या नीच के ग्रहों के प्रभाव में नहीं होना चाहिए। एकादश/एकादशेश भाव जातक की सभी ईच्छाओं की पूर्ति का भाव हैं, इसे हर तरह की इच्छा पूर्ति के लिए देखा जाता हैं। कोई भी परेशानी के लिए अभी बात करे!
ग्रह: ग्रहों में शुक्र ग्रह पुरुष के शरीर में शुक्राणु का कारक हैं और महिला के शरीर में तरल पदार्थ व प्रजनन क्षमता को नियंत्रण करता हैं। शुक्र ग्रह को राहु केतु के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की दुर्बलता, कष्ट और नकारात्मक प्रभाव न आये। गुरु ग्रह को संतान का कारक कहा जाता हैं। कुंडली में मज़बूत व शुभ गुरु संतान के लिए बहुत शुभ व अहम माना जाता हैं। इसी गुरु का संबंध पंचम/पंचमेश के साथ हो तो उत्तम संतान की प्राप्ति होती हैं।
राशियां: कर्क व मीन राशि को संतान के लिए शुभ मानते हैं। मेंष, मिथुन, सिन्ह, कन्या राशियों को बंज़र राशियां कहते हैं, यह पंचम भाव में होने से संतान में रुकावट आती हैं।
वर्ग-7- सप्तांश वर्ग को हम संतान के लिए देखते हैं, यह वर्ग ऊपर दिए गये नियमों की कमज़ोरी और मज़बूती बताता हैं। यहां भी हम वही नियम देखते हैं जो लग्न में देखते हैं।
संतान उत्पत्ति में ग्रहों का गोचर का बहुत बडा योगदान रहता हैं, शनि व गुरु के दोहरे गोचर की मुख्यता विशेष रुप से कार्य करती हैं।
अशुभ प्रभाव: पंचम भाव/भावेश पर शनि, राहु, केतु ग्रहों का प्रभाव नकारात्मक प्रभाव देते हैं। मंगल व केतु की स्थिति से बता सकते हैं कि संतान सर्ज़री से होगी।
पंचम/पंचमेश पर अशुभ/वक्री/अस्त/नीच ग्रहों का साया और गुरु का कमज़ोर/नीच या पीडित होना संतान के लिए अशुभ होता हैं।
पंचम/पंचमेश का संबंध 6/8/12 के साथ होना भी अशुभता का प्रतीक हैं।
यदि पंचमेश, षष्टम भाव में और लग्नेश या पंचमेश का संबंध मंगल से हो जाये तो पहली संतान के लिए खतरा रहता हैं।
बुध व शनि का पंचम भाव में होना या पंचमेश व सप्तमेश की युति अथवा राशि परिवर्तन हो तो संतान सुख में कमी आती हैं।
जब पहली बार जीवन में संतान की कामना होती हैं या गर्भवती होने के बाद मन में कई शंकाये होती जैसे गर्भधारण के बाद का समय या गर्भपात का खतरा? और क्या जन्म सर्ज़री से तो नहीं होगा या जन्म के समय माता व बच्चा दोनो स्वस्थ रहेगे?
अन्य कोई समस्या जो संतान से जुड़ी हो तो आप हमसे सम्पर्क करके उचित मार्गदर्शन ले सकते हैं। हम अपने प्रयास द्वारा आपकी समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करेगे। वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के माध्यम से और वास्तु के द्वारा हम आपके जीवन में आई कठिनाईयों को दूर करके आपके जीवन में खुशियों का पुन:आगमन करवाने का प्रयास कर सकते हैं। +917701950631
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