शनि एक न्याय-धीश ग्रह हैं, शनि कर्म प्रधान हैं, कर्म का मालिक हैं, जो हमारे किए कर्मों के हिसाब के अनुसार हमें साढ़े-सात्ति या दशा में फल देते हैं। शनि हमें ज़िंदगी की सच्चाई दिखाते हैं, परंतु लोगों में शनि को लेकर बहुत वहम हैं। शनि से कभी ड़रना नहीं चाहिए, शनि से वही लोग ड़रते हैं, जिन्होने ज़ीवन में बुरे कर्म किये हो। कर्म-शील लोगों को शनि कभी परेशान नहीं करता हैं। जिंदगी का सबसे बढिया संघर्ष का यही समय हैं, जब शनि की साढ़े सात्ति आती हैं, तब दूसरे सभी ग्रह आंखे बंद कर लेते हैं, क्योंकि यह न्याय का कारक ग्रह हैं। शनि की साढ़े सात्ति आए तो घबराने से अधिक अपने कर्मो को अधिक बढ़ा दे, अपने छोटे से छोटे काम भी खुद करने की कोशिश करे, शारीरिक रुप से मेहनत व अनुशासन को बढ़ा दे क्योंकि यह कर्म का स्वामी हैं, अगर हम बैठ कर निर्णय या दिमाग से काम करते हैं, तो हम फेल हो जाते हैं। निर्णय लेना व दिमाग का काम चंद्रमा का हैं, जो पहले से ही पीड़ित हैं। यह हमारी ज़िंदगी में संघर्ष, ड़र और मुसीबते ज़रुर देते हैं, ताकि हम अपनी ज़िंदगी में उन बेहतर अनुभवों से कुछ सीख पाए। शनि प्रारब्ध के फल के साथ वर्तमान समय में किए हुए कर्मो का फल भी देता हैं।
साढ़े-साति का अर्थ हैं, सात साल- छ: महीने, यह समय हमेशा लोगों में नकारात्मकता दृष्टि-कोण लिए रहता हैं। इस समय में मानसिक रुप से लोग अधिकतर पीड़ित रहते हैं, क्योंकि जब शनि जन्म के चंद्रमा के बारहवें भाव, पहले भाव और दूसरे भाव में गोचर करता हैं, तभी साढ़े-सात्ति का आरम्भ होता हैं, चंद्रमा के ऊपर शनि का प्रभाव यानि मन के ऊपर शनि के विष का प्रभाव। मन व बुद्धि के कारक चंद्रमा का यानि दूध में जब शनि यानि विष का मिलन होता हैं, तब मानसिक परेशानी तो होनी स्वभाविक हैं। ये मन को दबा देते हैं, हमारी तृषनाओं को दबा देते हैं। लोगो का मानना हैं, कि यह समय जातक की ज़िंदगी में ज़हर घोल देता हैं। साढ़े-सात्ति का दूसरा पड़ाव अधिकतर मानसिक कष्ट लाता हैं तब शनि, चंद्रमा के ऊपर गोचर करता हैं क्योंकि चंद्रमा एक सौम्य ग्रह हैं और शनि अशुभ ग्रह हैं। अगर चंद्रमा, शनि या केतु के नक्षत्र में हो तो अधिक ड़र रहता हैं। कुंड़ली में चंद्रमा मज़बूत वृक्ष के समान हैं, जिससे अधिक कष्ट और आंधिया आने पर चंद्रमा कमज़ोर महसूस करता हैं, और उसका मनोबल टूटकर गिर जाता हैं, शनि की साढ़े सात्ति जातक की सहनशक्ति का आंकलन करती हैं। यह समय जातक को संघर्ष व मेहनत की आग में तपा कर सोने से कुंदन बना देती हैं। इस समय में फूल समान मन पर भारी पत्थर के समान कष्ट सहने पड़ते हैं। कुछ इस परीक्षा में तप कर निखर जाते हैं, जो जीवन की ऊंचाईयो को छू लेते हैं। जातक की ज़िंदगी में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों उतार-चढ़ाव आते हैं। जिंदगी में 99% सफलता साढ़े-सात्ति में ही मिलती हैं। हमसे मिलनें के लिए सम्पर्क करें!
शनि सबसे धीरे चलने वाला ग्रह हैं, जो सभी 12 राशियों में 30 सालों में अपने एक चक्कर को पूरा करता हैं, जो प्रत्येक राशि में 2.5 साल तक रहता हैं। चंद्रमा हमारे मन, बुद्धि, भावुकता, अहसास, सहनशक्ति, सोच, याद्दाशत और कल्पना शक्ति का कारक हैं। जब शनि, चंद्रमा के साथ होता हैं, तब जातक को मानसिक असंतुलन और तनाव से गुज़रना पड़ता हैं। शनि का जन्म चंद्रमा के बारहवें, पहले और दूसरे भाव में गोचर ही साढ़े-सात्ति कहलाता हैं। शनि 12 राशियों में गोचर करने के लिए 30 साल लेता हैं, जातक की ज़िंदगी में लगभग दो बार तो साढ़े-सात्ति का संचार होता ही हैं। अगर जातक की ज़िंदगी में पहली बार साढ़े-सात्ति आती हैं, तो अगले तीस साल बाद फिर पुन: साढ़े-सात्ति का संचार होता हैं क्योंकि 30 साल में शनि पूरी 12 राशियों का चक्कर लगाता हैं। किसी भी सवाल के लिए हमसें सम्पर्क करें!
साढ़े-सात्ति का प्रभाव सभी की जिंदगी में अलग-अलग होता हैं, सभी को अपनी राशि और शनि की स्थिति के अनुसार ही फल भुगतना होता हैं। जैसे वृषभ, मिथुन, कन्या, कुम्भ, मकर और तुला राशि वालो को साढ़े-सात्ति के समय अधिक परेशानी नहीं आती, क्योंकि यह शनि स्व-राशि व मित्र राशि हैं। अगर कुंड़ली में शनि योगकारक तब भी अधिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। कर्क और सिंह राशि में अधिक बुरा प्रभाव देखने को मिलता हैं, क्योंकि जब कर्क की राशि पर शनि की साढ़े-सात्ति शुरु होती हैं, उससे पहले शनि का गोचर 2.5 साल मिथुन राशि पर होता हैं, जो शनि की मित्र राशि हैं, फिर दूसरा पड़ाव यानि अगले 2.5 साल का गोचर कर्क राशि पर आता हैं, जो शनि की शत्रु राशि हैं, और चंद्रमा को शीतल ग्रह माना गया हैं। इससे अगला पड़ाव यानि 2.5 साल का गोचर सिंह राशि पर आता हैं, यह भी शनि की शत्रु राशि हैं, सिंह राशि पर शनि का यह गोचर बहुत पीड़ादायक हैं, जिस वज़ह से यह समय जातक के लिए अधिक मानसिक परेशानी लाता हैं। ज्योतिष सीखे!
इसी तरह से ढैय्या का भी पूरा प्रभाव जातक की जिंदगी में देखा गया हैं, जिस समय में जातक की जिंदगी में मानसिक कष्ट का आगमन होता हैं, सब कुछ होते हुए भी एक अज़ीब सी घुटन का अहसास और सुख का अभाव रहता हैं जिससे अवसाद के साथ मन पीड़ित भी रहता हैं। जब जन्म चंद्रमा से गोचर का शनि उससे चतुर्थ या अष्टम भाव में हो तब ढैय्या का समय शुरु होता हैं यह ढ़ाई साल तक रहता हैं। जिसे ज्योतिष में कंटक शनि भी कहते हैं।
शुक्र और बुध ग्रह शनि के मित्र ग्रह हैं और गुरु सम ग्रह हैं, इसलिए इन राशि के लिए यह साढ़े-सात्ति अधिक बुरे परिणाम नहीं देती। बाकि परिणाम कुंड़ली के ग्रहों की स्थिति और वर्तमान समय की दशा पर भी निर्भर करता हैं। अगर शनि कुंड़ली में योगकारक ग्रह हैं, तो यही साढ़े-सात्ति अनुकूल परिणाम भी दे सकती हैं। इसलिए बिना जाने साढ़े-सात्ति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता हैं। हमारी बहुत सी महान हस्तियां ने इसी साढ़े-सात्ति में उतार-चढ़ाव देखे।
इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनी थी। अपनी कुंड़ली के बारे में जाने!
मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री भी अपनी साढ़े सात्ति में बनें थे।
जवाहरलाल नेहरु 1947 में प्रधान मंत्री बने।
महात्मा गांधी 1948 में मृत्यु हुई तब भी यही था।
इंदिरा गांधी के पिता, माता और भाई की मृत्यु हुई।
नरेंद्र मोदी 2015 में प्रधानमंत्री बने तब भी साढ़े सात्ति थी।
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