Astrology
Contact Us

Exchange Yoga

Exchange Yoga in astrology

Rashi Parivertan- राशि परिवर्तन योग: जब दो ग्रह परस्पर एक-दूसरें की राशियों में स्थित हो तो राशि परिवर्तन योग बनता हैं। जैसे एक ग्रह शुक्र, गुरु की धनु राशि में हैं और दूसरा ग्रह गुरु, शुक्र की वृषभ राशि में हैं तो इस प्रकार दोनो ग्रह एक दूसरें की राशि में हो तो राशि परिवर्तन योग बनता हैं। यह तीन प्रकार से बनता हैं।   अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें सम्पर्क करें।    

  1. महायोग- यह राशि परिवर्तन किसी दो शुभ भावों 1, 4, 7, 10, 5, 9 ,11 के स्वामियों में हो तो ऐसा राशि परिवर्तन राज़योग कहलाता हैं। इसमें राशि परिवर्तन करने वाले ग्रहों का एक-दूसरें को देखना आवशयक नहीं हैं। ऐसा योग एक ग्रह की महादशा में और दूसरे की अन्तर्दशा में यश, धन और प्रसिद्धि देता हैं।

फल: ऐसा जातक धन युक्त होगा, सुंदर, वस्त्र आभुषणों को धारण करने वाला, सरकार से सम्मानित व उच्च पद वाला, धन पुत्र व सवारी युक्त और स्वामित्व प्राप्त व्यक्ति होता हैं।  कोई भी सवाल! जवाब के लिए अभी बात करे!  

  1. दैंन्य योग- यदि राशि परिवर्तन शुभ भाव 1, 2, 4, 7, 9, 10, 11 और अशुभ भाव 6, 8 या 12 के साथ हो तो यही योग दैन्ययोग बन जाता हैं जिससे जीवन में उतार-चढ़ाव और संघर्ष मिलता हैं। यह अशुभ योग कहलाते हैं।  अपनी कुंड़ली के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें!

फल: ऐसा जातक मुर्खता भरे काम, दूसरों की निंदा करने वाला, क्रुर वचन बोलने वाला, सदैव शत्रुओं से परेशान होने वाला, अस्थिर विचार रखने वाला और काम में समस्याओं का सामना करने वाला होता हैं।     

  1. खल योग- यही राशि परिवर्तन शुभ भावों का तीसरे भाव से परिवर्तन होना खल योग कहलाता हैं।

फल: ऐसा जातक कभी अनाचार कभी सदाचार मार्ग पर चलने वाला और कभी सौभाग्यशाली कभी दरिद्रता व दुख प्राप्त करने वाला, कभी शुभ व कभी अशुभ वाणी का प्रयोग करने वाला होता हैं।           

राजयोग:- राज़योगों के अर्थ में जातक के जीवन में उन्नति (व्यवसायिक, पारिवारिक, सामाजिक) और सुख-सुविधाओं के साथ वैभव भरा जीवन होता हैं। राजयोग में जातक को नाम, प्रसिद्धि, धन, प्रतिष्ठा और उच्च पद मिलता हैं। कुछ द्वारा हम राजयोगों को समझ सकते हैं।   ज्योतिष सीखें!

केंद्र त्रिकोण के स्वामी के सम्बंध से राजयोग बनता हैं। (त्रिकोण लक्ष्मी व केंद्र विष्णु स्थान के भाव हैं)।                     

दूसरें व पंचम भाव का स्वामी दूसरें व पंचम या नवम या दशम भाव में हो।

दूसरें व एकादश भाव का स्वामी दशम भाव में हो।

चतुर्थ, पंचम, षष्टम, दशम या एकादश भाव में स्थित राहु कि दशा।

तृतीय भाव में स्थित शुक्र व चंद्र्मा की दशा।

नीचभंग राज़योग।

चतुर्थ और नवमेंश का सम्बंध (सुख-सम्पत्ति योग) 

केंद्र-त्रिकोण का सम्बंध् (लक्ष्मी-विष्णु योग)  

नवमेंश और दशमेंश का सम्बंध् (कर्माधिपति-धर्माधिपति योग)।    

 


Fill this form and pay now to book your Appointments
Our team will get back to you asap


Talk to our expert

 


Ask Your Question


Our team will get back to you asap