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Santaan Rekha

हाथ में सात प्रधान रेखायें होती हैं, जिससे हम अपने जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को समझ सकते हैं और समझ सकते हैं कि ये रेखायें कितनी शुभ या अशुभ हैं।

  1. जीवन रेखा- line of life  यह रेखा शुक्र क्षेत्र को घेरे हुए होती हैं, जिसे जीवन, स्वास्थ्य और उम्र के लिए देखा जाता हैं। इन्हें जीवन रेखा/आयु या जीवनी शक्ति रेखा भी कहते हैं।
  2. मस्तिष्क रेखा- line of head यह रेखा जो हाथ के मध्य से जीवन रेखा के साथ निकलती दिखाई देती हैं, जो एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर जाती हैं। इसे शीर्ष रेखा भी कहते हैं।
  3. ह्दय रेखा- line of heart यह रेखा अंगुलियों के ठीक नीचे होती हैं, जो बुध पर्वत के नीचे से शुरु होती हैं और मस्तिष्क रेखा के समानान्तर चलती हैं।
  4. शुक्र वलय मुद्रिका- Girdle of Venus यह रेखा जो ह्दय रेखा से ऊपर होती हैं। यह सूर्य और शनि के क्षेत्रों को घेरे हुए हल्की वलय आकार की होती हैं।
  5. स्वास्थय रेखा- Life of Health यह रेखा जो बुध क्षेत्र से आरंभ होकर हाथ में नीचे की ओर जाती हैं।  
  6. सूर्य रेखा- Line of Sun यह रेखा हाथ के मध्य से ऊपर चढ़ती हुई सूर्य के क्षेत्र तक जाती हैं। इसे प्रतिया रेखा भी कहते हैं।
  7. भाग्य रेखा- Line of Faith यह हाथ के मघ्य में होती हैं जो मणिबंध से आरंभ होकर शनि के क्षेत्र तक जाती हैं। इसे शनि रेखा भी कहते हैं।

अन्य रेखाये-

मंगल रेखा- Line of Mars यह रेखा उच्च मंगल क्षेत्र से आरंभ होकर जीवन रेखा के भीतरी भाग तक जाती हैं।

वासना रेखा- Via Lasciva यह रेखा स्वास्थ्य रेखा के समानान्तर चलती होती हैं।

अतिन्द्रिय ज्ञान रेखा- Life of Intuition यह एक अर्धवृत रूप में बुध क्षेत्र से चंद्र क्षेत्र को जाती हैं।

विवाह रेखा- Life of Marriage जो बुध क्षेत्र पर एक छोटी सी सीधी रेखा के रूप में होती हैं।

तीन मणिबंध रेखाये- The Three Bracelets ये रेखायें हाथ की हथेली के अंत में होती हैं जिसे मणिबंध कहते हैं।

रेखाओ के संबंध में यह नियम हैं की ये स्पष्ट होनी चाहिए। ये न तो छोटी होना चाहिए न रंग में गहरी, न उनमें टूट-फूट, द्वीप, चिन्ह और अन्य किसी प्रकार की अनियमिताएं होना चाहिए।

यदि ये रेखाये बहुत निस्तेज अथवा कमज़ोर होती हैं, तो स्वास्थ्य व स्फूर्ति में कमी होती हैं और ऐसी रेखा जातक की निर्णय लेने की क्षमता कमज़ोर करती हैं।

यदि रेखाये लाल वर्ण की होती हैं, तो जातक उत्साही, आशावादी, स्थिर स्वभाव का और सक्रिय होता हैं।

यदि रेखाये पीले रंग की हो तो जातक में पित्त प्रकृति प्रधान होती हैं और उसको जिगर विकार की संभावना होती हैं। वह अपने आप में रमा हुआ दूसरों से कम मिलने-जुलने वाला तथा घमंडी होता हैं।

यदि रेखाये गहरे रंग की हो या काली सी हो तो जातक गंभीर स्वभाव का और उदासीन होता हैं। वह हठधर्मी भी होता हैं और बदले की भावना उसके मन से कमी नहीं हटती, जिससे वह सरलता से किसी को क्षमा नहीं करता।

हमारे हाथ की रेखाये बनती व धुंधली पड़ती रहती हैं और प्राय: कुछ रेखायें तो मिट भी जाती हैं।  

संतान रेखा- हाथ में संतान रेखाएं वे होती हैं जो विवाह रेखा के अंत में उसके ऊपर स्थिर होकर सीधी ऊपर जाती हैं। कभी-कभी तो ये रेखायें इतनी सूक्ष्म होती हैं कि उनकी परीक्षा के लिए मेंग्नीफांईगग्लास की सहायता की आवशयकता पड़ती हैं, परन्तु ये रेखाएं बहुत फीकी होती हैं, तो हाथ की अन्य रेखाये भी प्राय: फीकी होती हैं। इन रेखाओ की स्थिति से और यह देखने से की वे ग्रह क्षेत्र के किस भाग को स्पर्श करती हैं, यह ठीक तरह से ज्ञात हो सकता हैं कि जातक की संतान कोई प्रभावशाली या महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी या नहीं। यह भी मालूम हो सकता हैं, कि बच्चे स्वस्थ होंगे या निर्बल और संतान पुत्र होगा या पुत्री।

इस संबंघ में ध्यान देने योग्य मुख्य बातें-  चौड़ी रेखायें पुत्र की सूचक होती हैं और संकीर्ण पतली रेखायें पुत्रियों की सूचक होती हैं। यदि रेखायें स्पष्टता से अंकित हो तो बच्चे स्वस्थ होते हैं, यदि वे फीकी और लहरेदार हो तो इसके विपरीत होता हैं। यदि रेखा के प्रथम भाग में द्वीप चिन्ह हो तो बच्चे अपने आरम्भिक जीवन में बहुत निर्बल होंगे और यदि बाद में स्पष्ट रुप में अंकित हो तो स्वस्थ हो जाएंगे। यदि रेखा के अंत में द्वीप चिन्ह हो तो बच्चा जीवित नहीं रहेगा। जब एक रेखा अन्य रेखाओं से बड़ी और अधिक सशक्त हो तो उस रेखा से सूचक बच्चा माता-पिता के जीवन में अधिक महत्व रखेगा। यदि पुरुष  के हाथ में संतान रखी उतनी ही स्पष्ट हो जितनी उसकी पत्नी के हाथ में हो तो पुरुष अपने बच्चों से बहुत प्यार करता हैं और वह अत्यंत स्नेही स्वभाव का होता हैं, परन्तु स्त्री के हाथ में प्राय: संतान रेखाए अधिक स्पष्ट रूप से अंकित होती हैं।

यदि किसी व्यक्ति की ह्रदय रेखा बुध क्षेत्र पर दो या तीन शाखाओ में  विभाजित हो जाए तो वह संतानहीन नहीं होता। जिस स्त्री के हाथ में मछली का चिन्ह स्पष्ट रूप से अंकित हो वह संतानहींन नहीं होती। जब यह चिन्ह न हो, शुक्र क्षेत्र अत्यधिक उन्नत हो, ह्रदय रेखा शनि क्षेत्र से आरम्भ हो, और नीचे की और ढ़लान लेती हो, साथ में शुक्र रेखा भी अंकित हो, कोनिक अंगुलिया हो और अंगूठा निर्बल इच्छा शक्ति का सूचक हो, तो वह स्त्री व्यभिचारिणी और संतानहीन होगी। पुरुष और स्त्री जिनकी हथेली चौड़ी हैं और सब प्रधान रेखाए स्पष्ट रूप से अंकित होती हैं, संतानहीन नहीं होते।

लम्बी, मोटी और स्पष्ट रेखायें पुत्रों की सूचक होती हैं और छोटी और पतली रेखायें पुत्रियों की। यदि रेखायें आड़ी रेखाओ से कटी न हो टूटी न हो और हर प्रकार से निर्दोष हो तो संतान दीर्घजीवी होती हैं। यदि रेखायें दोषपूर्ण हो तो संतान अल्पजीवी होती हैं और अपने अनुभव में हमने इसको ठीक पाया हैं। इस स्थान में रेखाये स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं और दोष आदि साफ़ दिखाई दे जाते हैं। बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा के साथ जा रेखाये हैं वे प्राय: इतनी सूक्ष्म होती हैं कि उनकी परीक्षा करना कठिन होता हैं।

विवाह रेखा- यह रेखा बुध पर्वत पर अंकित होती हैं और यह रेखा बुध क्षेत्र की ओर से निकलकर आती हैं व कुछ वही तक ही स्थित होती हैं। केवल लम्बी रेखाएं ही विवाह की सूचक होती हैं। छोटी रेखायें केवल किसी के प्रेम का आकर्षण या विवाह करने की इच्छा को प्रदर्शित करती हैं। यदि विवाह होना हैं तो भाग्य रेखा या जीवन रेखा पर इसकी पुष्टि मिलती हैं और वहां पर भी सूचना प्राप्त होती हैं कि विवाह से जीवन में और जीवन स्थिति में कैसा परिवर्तन आएगा। बुध क्षेत्र पर स्थित विवाह रेखा से यह अनुमान लगाया जा सकता हैं कि विवाह किस अवस्था में होने की संभावना हैं। जब विवाह रेखा ह्रदय रेखा के बिल्कुल निकट हो तो विवाह 18 से 22 वर्ष की अवस्था में होना चाहिए। यदि विवाह रेखा बुध क्षेत्र के मध्य में हो तो 22 से 28 की अवस्था में होता हैं। यदि वह बुध क्षेत्र पर तीन चौथाई उंचाई पर हो तो विवाह 28 से 35 वर्ष की अवस्था में होता हैं। परन्तु इस सम्बंध में भाग्य रेखा या जीवन रेखा से यह अधिक यथार्थता से जाना जा सकता हैं कि जीवन में परिवर्तन किस अवस्था में होगा।

जब बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा बहुत ही गहरी और साफ हो और कोई रेखा चंद्र क्षेत्र से आकर भाग्य रेखा में मिले तो जातक विवाह के बाद धनवान हो जाता हैं, परन्तु विवाह रेखा पहले चंद्र पर सीधी जाए और फिर मुड़ कर भाग्य रेखा से मिले तो विवाह संबंध में सच्चे प्रेम की भावनाये नहीं होगी, केवल दिखावा मात्र होगा। जब विवाह रेखा जातक की भाग्य रेखा से अधिक बलवती हो तो यह व्यक्ति पुरुष या स्त्री जिससे जातक विवाह करेगा, उससे अधिक प्रभावशाली होगा और उसका व्यक्तित्व भी जातक से अधिक उच्च स्तर का होगा। भाग्य रेखा पर सबसे अधिक वैवाहिक सुख प्रदान करने वाली वह प्रभावित रेखा होती हैं जो भाग्य रेखा के बिलकुल निकट स्थित होती हैं और उसके साथ-साथ चलती हैं। बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा सीधी बिना टूट-फूट के या क्रास चिन्ह के या अनियमितता के साथ होनी चाहिए। जब वह नीचे मुड़कर ह्रदय रेखा की ओर चली जाती हैं तो इस बात की सूचक होती हैं जातक के जीवन साथी या संगिनी की पहले मृत्यु होगी। स्त्रियों के हाथ में ऐसी रेखा वैधव्य का और पुरुष के हाथ में विधुरता का योग बनाती हैं। यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं तो जातक अविवाहित रहता हैं। जब विवाह रेखा स्पष्ट हो और उसमें बाल के सामान सूक्ष्म रेखायें ह्रदय रेखा की ओर गिरती दिखाई दे तो जातक के जीवन साथी की अस्वस्थता की सूचक होती हैं।

जब विवाह रेखा नीचे की ओर एकदम झुक जाए और उसके मोड़ पर क्रास का चिन्ह हो तो वह जीवन साथी की दुर्घटना या सहसा मृत्यु की सूचक होती हैं। जब तह रेखा धीरे-धीरे नीचे की ओर मुड़े तो जीवन साथी की कुछ समय तक अस्वस्थ रहने के बाद मृत्यु होती हैं। यदि विवाह रेखा के मघ्य या किसी अन्य स्थान पर द्वीप चिन्ह हो तो वैवाहिक जीवन में विशेष परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं और जब तक द्वीप चिन्ह बना रहता हैं, उनमें विछोह बना रहता हैं। जब विवाह रेखा अपने अंत पर हाथ के मध्य तक पहुंच जाए और द्विशाखा वाली हो जाये तो आपस में तलाक हो जाता हैं। यह बात और भी अधिक निश्चित हो जाता हैं जब एक शाखा मंगल के पर्वत में पहुंच जाये। जब विवाह रेखा द्वीप चिन्हों से भरी हो और उनमें से सूक्ष्म रेखाये नीचे की ओर गिरती हो, तो ऐसी रेखा वाले को कभी विवाह नहीं करना चाहिए। ऐसे चिन्हों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन अत्यंत दुखदायी होता हैं। जब रेखा द्वीपों से भरी हो और अंत में द्विमुखी हो जाये तो भी वैवाहिक जीवन अत्यंत दु:खद होता हैं।  

यदि रेखा के दो टुकड़े हो जाये तो वैवाहिक बंधन सहसा टूट जाता हैं। यदि विवाह रेखा की कोई शाखा सूर्य क्षेत्र को चली जाए और सूर्य रेखा से मिल जाए तो जातक बिशिष्ट व्यक्ति से विवाह करता हैं। इसके विपरीत यदि वह रेखा नीचे जाकर सूर्य रेखा को काट दे तो विवाह के बाद वह अपने उच्च पद को खो बैठता हैं। यदि कोई गहरी रेखा बुध क्षेत्र के ऊपर के भाग से नीचे उतरकर विवाह रेखा को काट दे तो विवाह में बहुत बाधा पड़ती हैं और उसका बहुत विरोध होता हैं। यदि कोई बहुत पतली रेखा जो विवाह रेखा को लगभग स्पर्श करती हुई उसके समानान्तर चलती हो तो जातक विवाह के पश्चात अपने जीवन साथी को बहुत प्रेम करता हैं। यदि विवाह रेखा के अंत में दो शाखायें उत्पन्न हो जाए और उनमें से एक ह्रदय रेखा की और नीचे झुकी हो, तो यह समझना चाहिए की एक सुखहीन वैवाहिक संबन्ध जातक के क्रुर व्यवहार और ह्रदयहीनता के कारण समाप्त हो जाएगा। जब विवाह रेखा से कोई रेखा नीचे जाकर मस्तिष्क रेखा से मिल जाये तो यह समझना चाहिए कि जातक उसकी पत्नी में गम्भीर मतांतर के कारण वैवाहिक सम्बंध का दुखद अंत होगा।  

वासना रेखा- वासना रेखा को स्वास्थ्य रेखा की सहायक रेखा के रूप में देखा जाता हैं यह एक छोटी-सी रेखा होती हैं और कम हाथो में पायी जाती हैं। यह हथेली के नीचे के भाग से मणिबंध में चली जाती हैं। यह एक शुभ रेखा नहीं मानी जाती और काम वासना तथा मदिरापान आदि की वृत्ति को बढ़ावा देती हैं। यदि यह जीवन रेखा को काटकर शुक्र क्षेत्र में चली जाये तो जातक अधिक कामुकता या मदिरापान आदि के कारण अपने जीवन की अवधि को कम कर देता हैं।

अतीन्द्रिय ज्ञान रेखा- लाईन ऑफ इंटुयशन- यह रेखा अधिकतर दार्शनिक कोनिक और अत्यंत नोकीले साइकिक हाथो में पाई जाती हैं। अन्य श्रेणी के हाथो में यह कम देखी जाती हैं। यह अर्द्धवृत्त के आकर की होती हैं और बुध क्षेत्र से चंद्र तक जाती हैं। कभी-कभी यह रेखा स्वास्थ्य रेखा के साथ-साथ चलती हैं और कभी उसे काट देती हैं। यह अत्यंत सवेदनशील और प्रभाव वाले स्वभाव की सूचक हैं। जातक अपने चारों तरफ के वातावरण और प्रभावों को अनुभव करने में अत्यंत तीष्ण होता हैं और उसे किसी अज्ञात शक्ति के द्वारा दूसरों के ऊपर घटनाओं के घटित होने का पूर्वाभास हो जाता हैं।

यदि यह रेखा सुंदर और स्पष्ट हो, मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा के बीच में कुछ बड़ा क्रास का चिन्ह हो तो ज्योतिष आदि विधाओ में ऐसा व्यक्ति बहुत प्रवीण होता हैं और उसकी भविष्यवाणी सदा सत्य निकलती हैं। यदि यह रेखा सुंदर और स्पष्ट हो और चंद्र क्षेत्र का ऊपरी भाग विशेष उच्च हो तो सम्मोहन शक्ति आदि द्वारा गहरा प्रभाव डाल सकता हैं। चंद्र क्षेत्र पर जितने अधिक ऊपर के भाग में यह रेखा आरम्भ होगी यह विशेष ज्ञान मनुष्य को देगी। यदि यह रेखा मंगल के क्षेत्र जो बुध क्षेत्र के नीचे पर समाप्त हो तो उपर्युक्त में बताया हुआ फल विशेष मात्रा में होगा। यदि यह रेखा छोटी लहरदार या शाखायुक्त हो तो मनुष्य सदैव अस्थिर और अशांत रहता हैं, ऐसे व्यक्ति को प्रसन्न करना कठिन होता हैं। यदि कई स्थानों में खंडित हो तो कभी तो इसमें संबन्धित विशेष ज्ञान का उदय बहुत अधिक मात्रा में हो जाता हैं कभी बिलकुल नहीं होता। यदि भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा और इस रेखा द्वारा त्रिकोण बनता हो तो ऐसा व्यक्ति गुप्त विघाओं में बहुत प्रवीण होता हैं।  

 


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