Veepreet Rajyoga- विपरीत राजयोग: वैदिक ज्योतिष का सामान्य सिद्धांत हैं, कि 6, 8, 12 भावों के स्वामी जहां स्थित हो उस भाव की हानि करते हैं, इसी प्रकार इन्हीं भावों में भी कोई ग्रह हो वह भी उन के कारकत्वों का नाश करती हैं। लेकिन इन्हीं अशुभ भावों के स्वामी अगर इन्हीं अशुभ भावों के साथ सम्बंध बनाये तो अशुभता का नाश होता हैं, जिससे भाग्य में वृद्धि करेगा। इस योग में उत्पन्न जातक बहुत वैभव वाला होता हैं। इसे विपरीत राजयोग कहते हैं, जिसमें यदि 3, 6, 8, 12 भाव के स्वामी एक-दूसरे के भाव में स्थित होकर सम्बंध बनाते हैं, तो ऐसे योग को विपरीत राजयोग कहते हैं। अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें सम्पर्क करें।
उदाहरण- छठे भाव का स्वामी बारहवें भाव में हो, बारहवें भाव का स्वामी छठे भाव में हो तो विपरीत राज़योग बनता हैं। विपरीत राजयोग तीन प्रकार के होते हैं। 1. हर्ष योग, 2. सरल योग 3. विमल योग्।
इन भावों के स्वामियों में परिवर्तन नही होना चाहिए और 6, 8, 12 भाव का स्वामी अपने ही भाव में स्थित नही होना चाहिए। फल: ऐसा जातक थोड़ा खर्चीला होता हैं, अपने गुणों के लिए विख्यात, अच्छे आचरण वाला और स्वतंत्र विचारों वाला होता हैं। Click here to know about houses in astrology
पंच महापुरुष योग— फलदीपिका के अनुसार मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि द्वारा बनाए जाने वाले पांच प्रकार के योग कहे गए हैं जिन्हें पंचमहापुरुष योग कहा जाता हैं। जब ये ग्रह लग्न या चंद्रमा से केंद्र में अपनी उच्च राशि अथवा स्वराशि में स्थित होते हैं, तो इन योगों का निर्माण करते हैं। इसमें सूर्य व चंद्रमा को शामिल नही किया गया हैं। कोई भी सवाल! जवाब के लिए अभी बात करे!
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