पंच-दिवसीय दीपावलीं!
धनतेरस:- धनतेरस के दिन घर में धन-समृद्धि का आगमन होता हैं। लक्ष्मी पूजा का अर्थ धन से नहीं हैं, लक्ष्मी का अर्थ हैं, समृद्धि, सुख व स्वास्थय। इस दिन स्वास्थय के देवता धनवंतरी औषद्धि कलश लेकर धरती पर प्रकट हुए थे। इस दिन कोई भी धातु या किसी भी धातु का बर्तन खरीद कर घर लाया जाता हैं। परंतु ये बर्तन खाली न लेकर आए इसमें किसी भी प्रकार का धान्य लेकर आए जिससे घर में धन-धान्य की कभी कमी न आएगी। शाम को मुख्य द्वार पर यमराज के लिए अन्न से भरे पात्र में दक्षिण की ओर मुख कर के दीपक जलाए और अपने व अपने परिवार की परेशानी व कष्टों से बचने की प्रार्थना करें। इस दिन गाय को चारा जरुर खिलाना चाहिए। यह अमृत का दिवस हैं, इस दिन ऋण दोष, बुरे प्रभाव, विशेष कष्ट से मुक्ति से निजात पाने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, तभी यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता हैं। इस दिन अगर नारायण मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध किया जाए तो सभी प्रकार की परेशानियों को दूर किया जा सकता हैं। साफ-सफाई के साधन इस दिन जरुर खरीदे। इस दिन व्यापारी अपनी गद्धि व विधार्थी अपनी बैठने की कुर्सी की भी पूजा करते हैं। शाम को 13 आटे के दीपक तिल के तेल के जला कर अपनी तिज़ोरी व कुबेर का पूजन करें, फिर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर यम को जल अर्पण करें, पूजा में दान करने के लिए अनाज़ ज़रुर निकाले। किसी विशेष सिद्धि की प्राप्ति के लिए विशेष मूहुर्त में ही अनुष्ठान करें।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ 29 अक्टुबर सुबह 10:31 से 30 अक्टुबर दोपहर 01:15
धन तेरस पूजा और खरीदारी का समय शाम 06:31 से 08:13 बज़े
छोटी दीवाली-: धंनतेरस के दूसरे दिन जिसे छोटी दीवाली कहते हैं। इसी दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता हैं, इस दिन सूर्य उदय से पहले स्नान करने से अनेक समस्याओं से छुटकारा मिलता हैं। शुभ मूहुर्त में ही साधना व अनुष्ठान करें, शाम को चहुमुखी मिट्टी के दीपक में शुद्ध तेल डाल कर और दीपक के नीचे थोडा सा अनाज़ व दीपक में कुछ सिक्के डाल कर रात भर जलने दे। सुबह यही अनाज़ किसी गरीब को दान दे व कुछ घर में दुसरे अनाज़ में मिला ले व सिक्का अपनी तिज़ोरी में रख ले।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि प्रारम्भ 30 अक्टूबर दोपहर 01:15 से 31 अक्टुबर दोपहर 03:52
नरक चतुर्थी पूजा समय शाम 11:39 से 12:31
इस दिन घर की चोखट पर चार मुख का दीपक जलाए और दीपक मे एक सिक्का अवश्य रखे।
दीवाली:- दीवाली के दिन शाम को घर के बाहर रंगों व फूलों से सुंदर रंगोली बनाई जाती हैं। अमावस्या की काली रात को दीवाली के दिन शुभ मूहुर्त में धन की देवी “श्री” की विधि-विधान से आराधना की जाती हैं जिसके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया हैं। इस दिन पंच धातु का पिरामिड़ स्थापित करने से धन का आगमन बना रहता हैं। पूजा के उपरांत घरों व चौराहे पर घी के दीपक जलाए जाते हैं जिस से अमावस्या की काली रात उज़ाले में बदल दिया जाए।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि प्रारम्भ 31 अक्टुबर दोपहर 03:52 से 01 नवम्वर शाम 06:16
दिवाली लक्ष्मी पूजा समय 01 नवम्बर शाम 05:16 से 06:16
प्रदोश काल- 05:36 से 08:11
वृषभ काल 06:02 से 07:59
गोवर्धन पूजा:- दीवाली के अगले दिन गोर्वधन पूजा की जाती हैं, इस दिन भग्वान श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान भंग करने के लिए गोर्वधन पर्वत को सबसे छोटी उंगली पर उठाया था। तभी इस दिन भग्वान कृष्ण की प्रतिमा बना कर, पूज़ा आराधना कर 56 भोग लगाने का विधान हैं। इस दिन भी घर के बाहर शुद्ध तेल का दीपक जलाया जाता हैं।
गोवर्धन पूजा महूर्त 02 नवम्बर 03:23 से 05:35
भाई दूज़:- पांचवें दिन को भाई बहन के प्रेम के रुप में मनाया जाता हैं, बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगा कर उसके जीवन की मंगलकामना करती हैं भाई भी उपहार दे कर अपनी बहन को खुश करता हैं। भाई दूज़ पूजा महुर्त 03 नवम्बर 01:10 से 03:22
लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रदोष काल माना जाता हैं यह पूजा के लिए सबसे उत्तम समय हैं, जो सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता हैं। जब स्थिर लग्न होता हैं, उसी दौरान लक्ष्मी पूजा की जानी चाहिए। माना जाता हैं की स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं, वृषभ व सिंह स्थिर लग्न होता हैं। इसलिए इस महूर्त को याद रखे, महूर्त के समय में पूजा न करने से लाभ नहीं मिलता। पर ये भी सच्चाई हैं, लक्ष्मी जी चंचल हैं कभी एक जगह स्थिर नहीं रहती तभी कभी लक्ष्मी जी की पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए, हमेंशा विष्णुजी के साथ करनी चाहिए। दीवाली के दिन ही विष्णुजी लक्ष्मीजी सहित बैकुंठ लौटेथे।
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