लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रदोष काल माना जाता हैं यह पूजा के लिए सबसे उत्तम समय हैं, जो सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता हैं। जब स्थिर लग्न होता हैं, उसी दौरान लक्ष्मी पूजा की जानी चाहिए। माना जाता हैं की स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं, वृषभ व सिंह स्थिर लग्न होता हैं। इसलिए इस महूर्त को याद रखे, महूर्त के समय में पूजा न करने से लाभ नहीं मिलता। पर ये भी सच्चाई हैं, लक्ष्मी जी चंचल हैं कभी एक जगह स्थिर नहीं रहती तभी कभी लक्ष्मी जी की पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए, हमेंशा विष्णुजी के साथ करनी चाहिए। दीवाली के दिन ही विष्णुजी लक्ष्मीजी सहित बैकुंठ लौटेथे।
दीवाली की रात को देवी लक्ष्मी जी की पूजा का विधि-विधान से पूजन करने से श्रीजी का वरदान मिलता हैं। इस दिन के लिए लक्ष्मी जी व गणेश जी की नई बैठी हुई प्रतिमा लानी चाहिए। गणेश जी के बाई ओर लक्ष्मीजी की मूर्ति न रखें। पूजा करते हुए आपका मुख उत्तर या पश्चिम दिशा में हो, उत्तर दिशा कुबेर व धन की दिशा हैं व पश्चिम दिशा प्राप्ति की दिशा हैं। अपनी महादशा के अनुसार ही रंगोली में रंगों का प्रयोग करें। जिससे किसी भी कार्य में बाधा नहीं आती। गणेशजी को मुख्य द्वार पर नहीं रखे वह द्वारपाल नहीं हैं। स्वास्तिक का प्रयोग मुख्य द्वार पर करने से घर में समृद्धि आती हैं।
दिवाली का शुभ मुहुर्त: इस वर्ष अमावस्या तिथि 31 अक्टुबर 2024 दिन में 03:52 से 01 नवंबर शाम 06:16 तक रहेगी। हमारे धर्म में सभी त्यौहार सुर्य उदय तिथि के अनुसार मनाये जाते हैं, लेकिन दिवाली की पूजा प्रदोष काल में होती हैं जो 01 नवंबर को हैं। इस दिन शाम को 05:16 से 06:16 तक का पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा।
दिवाली का पूज़न सामग्री: दिवाली पूजा के लिए लाल या पीले रंग का कपड़ा, गणेश लक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा, चंदन, चावल, गुलाब, इत्र, आम और पान के पत्ते, सुपारी, दुर्वा, पंचामृत, रुई, गुलाब, गेंदे, कमल के फूल, फल, रोली, मोली, लौंग-इलायची, नारियल, खील पताशे, लड्डू, घी, धूप-दीप, कपूर, जनेऊ, चांदी का सिक्का और रुपए।
दिवाली के दिन साफ सफाई के बाद लाल-पीले कपड़े पहन कर मंदिर के पास एक छोटी सी चौकी रख कर इस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाए उस पर स्वास्तिक बनाए। गणेश लक्ष्मी जी की प्रतिमा का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर स्थापित करके सामने कलश व नारियल रखे। कलश के पास चावल से नौ ग्रह की नौ ढ़ेरिया बनाए। अब पूजा का विधि अनुसार आरम्भ करें। प्रतिमा पर फूल माला अर्पण करें और फल, फूल, धूप-दीप, नैवेध सहित सामग्री अर्पित करें। लक्ष्मी पूजन के दौरान अष्टलक्ष्मी महा स्रोत्र या श्री सूक्त का पाठ करे।
पूजा विधि== **सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना करनी चाहिए—
आर्विभाव-- सुपारी को मोली से बांध कर गणेश जी को मंत्रों सहित अर्पित करें।
मंत्र:-- ऊँ गणानां त्वा गणपति हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियापति हवामहे। निधीनां त्वा निधि-पति हवामहे वसो मम्। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
**आवाहन— हाथों में अक्षत लेकर हाथों की आवाहन मुद्रा बना कर मंत्र का उच्चारण करें।
मंत्र—ऊँ भूर्भव: स्व: श्रीगण्पते! इहागच्छ, इह तिष्ठ, मम पूजां गृहाण्।
**प्राण-प्रतिष्ठा— श्री गणेश जी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करें।
**दशोपचार पूजन— प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात दशोपचार पूजन करें। फिर गणेश जी कि प्रार्थना करें। तत्पश्चात श्री लक्ष्मी जी का पुजन आराधना करें।
***श्री लक्ष्मी पूजन***
“या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटि पद्म-पत्रायताक्षी, गम्भीरार्तव-नाभि: स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया। या लक्ष्मीद्रिव्य-रुपैर्मणि-गण-खचितै: स्वापिता हेम-कुम्भै:, सा नित्यं पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्त्ता॥“
“आगच्छ देव-देवेशि! तेजोमयि महा-लक्ष्मी! क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वंदिते!
॥ श्रीलक्ष्मी- देवीं आवाहयामि॥“
“नाना-रत्न-समायुक्त्म, कार्त-स्वर-विभूषितम्।
आअसनं देव-देवेश! प्रीत्यर्थ प्रति- गृह्म्ताम॥ ॥ श्री लक्ष्मी-देव्यै आसनार्थे पंच-पुष्पाणि समर्पयामि॥“
अंग पूजन मंत्र—ऊँ चपलायै नम: पादौ पूजयामि।
ऊँ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि।
ऊँ कमलायै नम: कटिं पूजयामि।
ऊँ कात्यायन्यै नम: नाभिं पूजयामि।
ऊँ जगन्मात्रै नम: जठरं पूजयामि।
ऊँ विश्व-वल्ल्भायै नम: वक्ष-स्थलं पूजायामि।
ऊँ कमल-वासिन्यै नम: हस्तौ पुज्यामि।
ऊँ कमल-पत्राक्ष्यै नम:-त्रयं पूजायामि।
ऊँ श्रियै नम: शिर: पूजयामि।
अष्ट-सिद्धि मंत्र— ऊँ अणिम्ने नम:। ऊँ महिम्ने नम:। ऊँ गरिम्णे नम:। ऊँ लघिम्ने नम:। ऊँ प्राप्त्यै नम:। ऊँ प्राकाम्यै नम:। ऊँ ईशितायै नम:। ऊँ वशितायै नम:।
अष्ट-लक्ष्मी मंत्र—ऊँ आद्ध्य-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ विधा-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ सौभग्य-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ अमृत-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ कमलाक्ष्यै नम:। ऊँ सत्य-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ भोग-लक्ष्म्यै नम:। ऊँ योग-लक्ष्म्यै नम:।
दीवाली के त्यौहार का मतलब दोस्तो रिश्तेदारों को मिठाई उपहार देना ही नहीं, अपितु ज़रुरतमंद लोगो को दान दे कर उनको खुश करना हैं, जिससे छोटे बच्चों के चेहरे पर खुशी की चमक आए। दान में बर्तन भी देने हो तो उसमें भी कुछ न कुछ भर कर ज़रुर दे। शास्त्र कहते हैं कि दान दिए बगैर पर्व पूर्ण नहीं होता।
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