मंगल का प्रथम भाव में फल
मंगल का प्रथम भाव में फल—शुभ मंगल जातक को साहसी
मंगल का दूसरे भाव में फल:-
मंगल का दूसरे भाव में फल:- यदि द्वितीय भावगत मंगल शुभ हो तो जातक को साहसिक कार्यों मे तत्परता, वाणी मे तेजी, उत्तराधिकार तथा पैतृक सम्पति से सफलता दिलाता है। जातक अपने परिवार की बहुत कद्र करता है फिर भी पारिवारिक जीवन मे उतार-चढाव महसूस करता है। उनकी वाणी मे गज़ब की तेज़ी होती है, वह चिल्ला कर, रौब से बोलना व अशुभ शब्दों का प्रयोग करता है और वह मांस का सेवन भी करता है। 28 वर्ष तक जातक पैसा जोड नही पाते न ही उसके पास पैसा टिकता है। वह पैसा कमाने की बहुत कोशिश करता है, पर जीवन मे उतार-चढाव आता रहता है। वह बच्चों व स्वयं कलात्मक कार्य मे अधिक रुचि लेता है। इनको वाहन बहुत सावधानी से चलाना चाहिए।
तृतीय भाव में मंगल:-
तृतीय भाव में मंगल:- ऐसा जातक भाइयों में सबसे बड़ा या सबसे छोटा होता है। तृतीय भावगत मंगल जातक को साहसी, खुद का व्यापार करने वाला, सैनिक, शिकारी, खुद को दिखाना, आगे बढ़ने की हिम्मत और विपरीत परिस्थितियों से उबर कर निकालने की क्षमता प्रदान करता है। जातक के लेखन मे बहुत शक्ति होती है, वह आक्रमक पत्रकार, लेखन मे हिंसा व व्यंग्य, वह हाथों से तलवार की तरह तेज़ी से कार्य कर सकता है। जातक ताकत, परिश्रम द्वारा धन सम्पति संग्रहित करने की क्षमता, धार्मिक रिवाज़ो का निभाने एवं आध्यात्मिकता का आचरण भी देता है। ऐसा जातक सुंदर एवं स्वस्थ देह का स्वामी लेकिन दुबला-पतला, स्वार्थी, खिलाडी, विवेकशील, शूरवीर और युद्ध में साहस का परिचय देने वाला होता है। वृश्चिक राशिगत मंगल कम धनदायक होता है, क्योंकि कालपुरूष की कुंडली में अष्टम भाव की राशि में होने के कारण यह अष्टम भाव से सम्बन्धित दरिद्रता मे वृद्धि करता है। यदि मंगल नीच का हो तो जातक प्रचुर मात्रा में समृद्ध होने के उपरांत भी तरसता रहता है और मित्र, परिवार विहीन एवं असन्तोषी होता है।
चतुर्थ भाव में मंगल
चतुर्थ भाव में मंगल:- इस भाव मे मंगल होने से जातक के ज़ीवन में मानसिक शान्ति नहीं होती है तथा माता, सम्बन्धियों एवं मित्रों से झगड़ा रहता है व माता का स्वास्थय भी कमज़ोर रहता है। यधपि जातक का अपना घर होता है लेकिन वह मानसिक रूप से खुश नहीं रहता है। जातक मे बचपन से ही नेतृत्व की क्षमता होती है और उसे ज़ीवनसाथी के साथ बहुत तनाव रहता है। सरकार मे अच्छा पद, स्थिर आय व स्थिर नौकरी, जमीन व वाहन से आय और व्यापार मे बहुत मेहनत करते है।
पंचम भाव में मंगल:-
पंचम भाव में मंगल:- पंचम भाव का बली मंगल जीवन में सफलता, उच्च पद की अभिलाषा और अच्छी पाचनशक्ति वाला होता है। जातक मे भाषण मे कलात्मक व संरचनात्मक अभिव्यक्ति, प्रेम मे जुनून, आवेग, तीव्र यौन-शक्ति, शिक्षा मे कम ध्यान, गुप्त ज्ञान मे रुचि, सर्ज़न, शेयर बाज़ार का व्यापारी, काल्पनिक शक्ति व आध्यात्मिक कर्म मे रुचि रखता है। यहा पीड़ित मंगल गर्भपात, संतान के साथ सम्बन्धो में परेशानियां, संतान से अलगाव, दरिद्रता, धूर्तता, कुटिल मानसिकता, नैतिक कार्यो में रुझान, क्रोधी स्वभाव और परस्त्रियों के प्रति आकर्षण देता है। परंतु मंगल पर बृहस्पति की दृष्टि होने पर नकारात्मक प्रभाव मे कमी आती है।
षष्टम भाव में मंगल:-
षष्टम भाव में मंगल:- षष्टम भाव का मंगल जातक को एक सक्षम प्रशासक, तार्किक, बीमारियों से लडना, न्याय के लिए लडना, पुलिस अधिकारी, सर्ज़न, जेलर, राजनीतिज्ञ, विरोधियों पर विजय प्राप्त करने वाला, खेलों और क़ानूनी लड़ाइयों में विजय बनाता है। मंगल यहां नीच का न हो तो तलाक मे जातक की विज़य होती है। यदि पीड़ित हो तो मंगल से सम्बन्धित रोग जैसे की छाले, स्थिर घाव, कमजोर मांसपेशियां, चेचक और वाहन मे दुर्घटनायें देता है। यदि षष्टम भाव में स्थित मंगल, शनि से पीड़ित हो तो जातक को शल्यचिकित्सा, हथियारों, अग्नि और विष से मृत्यु का भय देता है।
सप्तम भाव में स्थित मंगल:--
सप्तम भाव में स्थित मंगल:-- इस भाव मे मंगल "कुजा-दोष" अथवा “मांगलिक” दोष देता है, जो विवाहित जीवन मे परेशानी का कारण है। अगर विवाह भी मांगलिक से हो तो दोनो एक-दूसरे को समझते है। जातक अपने ज़ीवन साथी पर हावी रहता है, फिर भी भावनात्मक जुडाव होता है। जातक की बहुत कामुक होता है। यहां मंगल व्यापार के लिए अधिक शुभ नही होता है, वह नौकरी ही करता है। यह विरोधियों से घिरा, वकील और विदेश में निवास को भी इंगित करता है। यह जातक को स्वभाव में तत्परता, वाद-विवाद, तीखा बोलना और अत्याधिक प्रेम से निराशा देता है। मंगल नीच का हो तो माता से अधिक नही बनती व परिवार से वाद-विवाद होता है। मंगल उच्च का, स्वराशि अथवा योग कारक होकर सप्तम में स्थित हो तो परिणामों में परिवर्तन लाता है।
अष्टम भाव में मंगल:-
अष्टम भाव में मंगल:- मंगल की यहां स्थिति "कुजा-दोष" अथवा “मांगलिक” दोष बनाती है। जिन अधिकारियों के अष्टम भाव में मंगल होता है, वे रिश्वत में अत्याधिक धन तो लेते है लेकिन कभी भी पकड़े नहीं जाते। स्त्रियों की कुंडलियों में इसका अर्थ पति से अलगाव हो सकता है, क्योंकी यह सप्तम से द्वितीय यानि विवाह भाव से मारक भाव है। मंगल आकस्मिक मृत्यु को भी इंगित करता है। जल तत्व राशि में होने पर डूबने से, अग्नि तत्व राशि में होने पर जलने से या हिंसा से और वायु तत्व राशि में होने पर दिमाग पीड़ित अथवा वायुयान की दुर्घटना से मृत्यु को इंगित करता है। जातक को ज़लने के निशान, खेल मे चोट, कानुनी विवाद, गुप्त लेन-देन से लाभ, गुप्त यौन-संबंघ, अपराधिक वकील, ड्रग डीलर, कान का चिकित्सक, तीखी व अशुभ भाषा, पराक्रमी और गुस्सैल प्रवृति होती है।
नवम भाव में मंगल:-
नवम भाव में मंगल:- जातक उदारचित, प्रसिद्ध, धनवान और शक्ति-सम्पन्न होता है। यदि उच्च, स्वराशि अथवा शुभ ग्रहों के साथ हो तो सौभाग्यवान व तेजस्वी बनाता है। ऐसा जातक आधुनिक दृष्टि से संशोधित करके, रूढ़िवादी विचारो को समाप्त करता है। नवम भाव में स्वराशि का मंगल, राजयोग बनाता है व शासन की अनुकम्पा, धन-सम्पति, फौज़ी, विदेशी यात्राएं, मज़बूत कल्पना शक्ति, घुड़सवारी, सैल्समैन और प्रसिद्धि देता है। अगर मंगल नीच का हो तो पिता, गुरु, अध्यापक एवं भाइयो से अच्छे संबंध नहीं होते है। जातक के पिता इंज़ीनियर या प्रोफेसर होते है व अधिक यात्रा करते है।
दशम भाव में मंगल:-
दशम भाव में मंगल:- दशम भाव का मंगल दिशाबल से युक्त होता है। जातक अपने परिवार का कुलदीपक, साहसी, शक्ति सम्पन्न, सरकारी नेता, शत्रु विजेता, दंभी, प्रसिद्ध, आई.ए.एस. ऑफिसर, कैमिकल व्यापार, पेट्रोलियम व माइनिंग इंज़िनियर, सफल व श्रेष्ठ सेना नायक, धन-सम्पति, भूमि-वाहन और समृद्धि देता है। जातक की जिंदगी मे उतार-चढाव और संघर्ष बना रहता है। ऐसे जातक के पिता सोचने के बज़ाय तुरंत एक्शन लेने को कहते है। मंगल का शनि के साथ होने से जातक सैनिक होता है, अकेला मंगल जंगल मे खडा शिकारी की तरह होता है और वह खेल व मॉर्शल कला मे विशेष रुचि लेता है।
एकादश भाव में मंगल:-
एकादश भाव में मंगल:- जातक प्रभावशाली, उच्च समाजिक स्थिति, भू-सम्पतिवान, शक्तिशाली वक्ता, चतुर, धनवान, दवाईयां, रसायन व इंज़िनीयर, लकड़ी, भूमि, खनिज, धातु, खेल व दीमाग से आय कमाने वाला होता है। ऐसा मंगल जातक को वाणी कठोर, आदेश वाली और तीखी आवाज़ देता है। जातक का बच्चों से वाद-विवाद रहता है और वह स्वयं की बीमारी से लड़ना जानता है, परंतु अपनी मृत्यु से नही लड़ पाता है। वह मांसाहारी भोज़न पसंद करता है और उसकी माता किसी नशे की आदि होती है।
द्वादश भाव में मंगल:-
द्वादश भाव में मंगल:- ऐसा जातक स्वहित को ही प्राथमिकता देता है, इनमे अत्यधिक ऊर्जा व अस्थिर दिमाग होता है। ऐसे जातक का व्यवहार घृणास्पद, भार्या से अलगाव, आग से खतरा, विदेश भ्रमण, प्रबल यौन इच्छा, धार्मिक वकील, चिकित्सक, वैज्ञानिक, तेज़ कल्पना शक्ति, कलात्मक लेखन, पराक्रमी, वाद-विवाद और उसका ज़ीवनसाथी भी तेज़ होता है। मंगल अधिक पीड़ित हो तो यह आँखों की परेशानी, अत्यधिक व्यय, मित्रों से शत्रुवत व्यवहार, कारावास, धन-हानि, कैद, नेत्ररोगी, दुर्बल, मित्रों के लिए कष्टकारी और र्दुबुद्धि देता है।