नपुंसकता के ज्योतिषीय योग
यौन दुर्बलता या नपुंसकता: शनि व शुक्र एक साथ दशम भाव में हो या शुक्र से छठे या बारहवें भाव में शनि हो जिससे नपुंसकता का योग बनता हैं। विषम राशियों में स्थित सूर्य व चंद्र में परस्पर दृष्ट हो या विषम राशियों से बुध व शनि में परस्पर दृष्ट संबंध हो।
लग्न तथा चंद्रमा विषम राशियों में हो तथा दोनों ग्रह सम राशि में स्थित मंगल से दृष्ट हो या चंद्र विषम राशि में तथा बुध सम राशि में हो तथा दोनों मंगल से दृष्ट हो।
लग्न, चंद्र तथा शुक्र सभी विषम राशियों में हो क्योंकि अपने साथी को यौन रूप से संतुष्ट कर पाने की असमर्थता में यह योग मुख्य हैं।
शुक्र किसी वक्री ग्रह की राशि में हो व लग्नेश लग्न में तथा शुक्र सप्तम में हो या चंद्र-शनि की युति मंगल से चौथे या दसवें भाव में हो।
पंचम या सप्तम भाव में शनि और बुध की युति हो, तो जातक अपनें जीवन साथी को संतुष्ट नहीं कर पाता हैं।
बवासीर के रोग: भाव: यह गुदा का रोग हैं जिसमें सप्तम और अष्टम भाव का महत्व हैं। अगर सप्तम भाव में पाप ग्रहों की उपस्थिति होती हैं तो इस रोग की सम्भावना रहती हैं। अगर एक पर मंगल का प्रभाव आ जाये तो यह योग प्रबल बन जाता हैं। अष्टम भाव में केतु और मंगल की स्थिति भी ऐसी परेशानी का कारण बनती हैं। अष्टम भाव में राहु/केतु की स्थिति भी गुप्त रोग को जन्म देती हैं। ज्योतिष सीखें!
राशि: मंगल की वृश्चिक राशि तो अष्टम भाव की राशि भी हैं इस राशि में पाप प्रभाव हो तब भी यह रोग हो सकता हैं और इस भाव में शनि व राहु या द्वादश भाव में चंद्र और सूर्य का योग हो तो इस रोग की पीड़ा का सामना करना पड़ता हैं। Why Worried? Ask a question and get solutions!
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